यह नजारा वाकई हैरान करने वाला था। जिनके ऊपर स्कूल से वंचित बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने की जिम्मेदारी है उन्हीं के दफ्तर में सरकारी व्यवस्था का माखौल उड़ाया जा रहा था। लाचार बचपन अपने नाजुक हाथों से जिम्मेदारों के जूते पर पालिश कर चमकाने में जुटा था। निश्चित रूप से यह दृश्य दूसरों के अंतर्मन को झकझोर रहा था मगर उस बालक की वेदना जिम्मेदारों के ठहाकों के शोर में दब कर रह गई।
बुधवार को दिन में डेढ़ बजे रोज की भांति जिला बेसिक शिक्षा कार्यालय पर चहल पहल रही। अलग-अलग कमरे में कर्मचारी अपने काम संपादित करने में जुटे हुए थे मगर बेसिक शिक्षा अधिकारी के कक्ष का नजारा कुछ और ही था। बाहर कुछ शिक्षक -शिक्षिकाएं बीएसए से मिलने के इंतजार में थीं। दरवाजे पर बैठा एक बालक एक शिक्षक के चप्पल को पालिश कर चमकाने में जुटा था। मगर किसी के मन में मासूम की शिक्षा के प्रति संवेदना नहीं जगी। जिस सर्व शिक्षा अभियान के द्वारा स्कूल चलो अभियान को साकार करने का सपना सरकार देख रही है वह यहां तार-तार नजर आ रहा है। शहर की सड़कों पर दर्जनों मासूम हाथ में ब्रश और पालिश लेकर घूमते दिख जा रहे हैं। प्रत्येक वर्ष शैक्षिक सत्र के आरंभ पर शिक्षा विभाग द्वारा रैली, गोष्ठियों के माध्यम से स्कूल से वंचित बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए जन जागरण अभियान चलाया जाता है मगर बेसिक शिक्षा कार्यालय का यह दृश्य चिराग तले अंधेरा की कहावत चरितार्थ कर रहा था।बीएसए कक्ष के बाहर जूता पालिश करता बालक ’
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