जागरण संवाददाता, डुमरियागंज, सिद्धार्थनगर : सब पढ़े सब बढ़ें, इन दिनों यह नारा जिधर देखो जोर-शोर से सुनाई पड़ रहा है, मगर यह नारा कैसे चरितार्थ होगा जब स्कूलों में किताबों का टोटा पड़ा हो। नए शिक्षा सत्र में 12 दिन बीत चुके हैं, पर परिषदीय से लेकर माध्यमिक विद्यालयों में एक भी नि:शुल्क पुस्तकें अभी तक नहीं पहुंच सकी है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू है परंतु शासन से लेकर शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी नि:शुल्क किताबें उपलब्ध कराने में कितने गंभीर हैं, किसी की समझ से परे है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शिक्षा का अधिकार अधिनियम सफल भी हो तो कैसे हो?1शासन द्वारा पिछले साल से शिक्षा का नया सत्र अप्रैल से प्रारंभ किया गया। परंतु इसकी तैयारी सिफर रही है। कहने को तो सर्वशिक्षा अभियान अन्तर्गत गांव से लेकर न्याय पंचायत व ब्लाक स्तर पर जागरूकता रैली पूरे जोर-शोर के साथ शुरू हुई। शत-प्रतिशत नामांकन पर जोर दिया गया। कांवेंट स्कूलों की चकाचौंध में वैसे ही परिषदीय विद्यालय बच्चों के नामांकन में जद्दोजेहद कर रहे हैं, जैसे-तैसे जिनका प्रवेश भी हो चुका है, उनके लिए पढ़ाई की कोई किताबें ही उपलब्ध नहीं है।1बताते चलें कि परिषदीय स्कूलों में कक्षा 1 से आठ तक बच्चों के अलावा मान्यता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों में नि:शुल्क पुस्तक वितरण की व्यवस्था है। नए सत्र में बारह दिन बीत गए, अभी किताबों का कुछ पता नहीं है, वैसे जो आसार दिखाई दे रहे हैं, उसके चलते इस पूरे महीने शायद ही बच्चों को किताबें नसीब हो सके। विभागीय स्तर पर हिदायत दी गई है कि जब तक किताबें नहीं मिलती है, बच्चों को पुरानी ही पुस्तकें उपलब्ध कराकर उन्हें पढ़ाया जाए, परंतु छोटे-छोटे बच्चों की पुरानी किताबें जब सुरक्षित ही नहीं बचती हैं तो फिर भला उसे किसी दूसरे बच्चे तक पहुंचाना कहां तक संभव है। मतलब हर जगह किताबों को लेकर अफरा-तफरी की स्थिति बनी हुई है। सोचनीय विषय यह है कि जब पुस्तकें हैं ही नहीं तो बच्चे आखिर कैसे शिक्षा ग्रहण करेंगे। यही वजह है कि इन दिनों इन दिनों अधिकांश बच्चों का विद्यालयों में आना और खेल कूदकर वापस घर लौट जाना मजबूरी में पार्ट बन गया है।
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