आरटीई : एलडीए 25% सीटों पर मुफ्त दाखिले की शर्त पर देता है स्कूलों को जमीन
रियायती दरों पर ली जमीन, अब फ्री एडमिशन में आनाकानी
किसी भी स्कूल ने नहीं दिया गरीबों को फ्री एडमिशन
स्कूलों को उन्होंने रियायती दर पर जमीन दी है। वहीं, सूत्र बताते हैं कि राजधानी में 80 से ज्यादा और प्रदेश में इनका आंकड़ा तीन हजार के पार है। आवास और शहरी नियोजन विभाग ने बुधवार को जानकारी करने पर केवल इतना ही कहा कि राजधानी लखनऊ में विकास प्राधिकरण और आवास विकास स्कूल खोलने के लिए रियायती दरों पर जमीन उपलब्ध कराते हैं। बाकी पूरे प्रदेश में इस तरह की रियायती जमीन देने का काम जिला अधिकारियों का है।
आरटीई से अलग है शपथ-पत्र का नियम
अमूमन 25 प्रतिशत सीटों के मुफ्त दाखिले की बात राइट टू एजुकेशन के दाखिले को ही समझा जाता है, लेकिन यह नियम अलग है। आरटीई के तहत जो मुफ्त दाखिले दिए जाते हैं, उनका प्रशासन की ओर से 450 रुपये प्रति छात्र के हिसाब से भुगतान किया जाता है, जबकि एलडीए से रियायती दर पर जमीन लेने वाले स्कूलो को 25 प्रतिशत सीटों पर अलग से मुफ्त दाखिले लेने हैं, जिसका कोई भुगतान नहीं किया जाना है।• नगर निगम से मिली जानकारी के मुताबिक इंटरमीडिएट तक के सभी प्रकार के विद्यालयों का हाउस टैक्स माफ किया जाता है। निजी विद्यालयों को भी हाउस टैक्स माफ है, उनसे वाटर टैक्स लिया जाता है। यह टैक्स हाउस टैक्स का 15 फीसदी होता है।
ये
मिलती है रियायतें• गरीब विद्यार्थियों को पढ़ाने के शपथ-पत्र की वजह से स्कूलों को नॉर्मल रेट पर जमीन उपलब्ध कराई जाती है। साथ ही उस रेट में भी 40 फीसदी का डिस्काउंट किया जाता है।
एलडीए की ओर से पिछले 20 साल से स्कूलों को जमीन में छूट दी जा रही है, लेकिन जमीन लेने के बाद स्कूल ने गरीबों को मुफ्त दाखिला दिया या नहीं इसकी कोई मॉनिटरिंग ही नहीं है। एलडीए के अधिकारियों ने आज तक इसके लिए कोई कमिटी ही नहीं बनाई, जो यह चेक करें कि जितने स्कूलों ने रिआयती दर पर जमीन ली है वह एडमिशन कर रहे हैं या नहीं। एलडीए के सचिव श्रीश चंद्र वर्मा ने बताया कि स्कूल को छूट पर जमीन तो दी जाती है, लेकिन इसका कोई आंकड़ा नहीं है कि कितने स्कूलों ने एडमिशन दिए हैं या नहीं।
जमीन देने के बाद कोई मॉनिटरिंग नहीं
40 हजार की जगह सिर्फ 700 दाखिले
राइट टू एजुकेशन का भी शहर का कोई स्कूल पालन नहीं कर रहा हैं। शहर में सीबीएसई के लगभग 100 स्कूल व सीआईएससीई बोर्ड के 80 स्कूल हैं, जबकि यूपी बोर्ड के 300 से अधिक स्कूल हैं। एक सेक्शन के हिसाब से भी हर स्कूल में नर्सरी और क्लास वन में 80 सीटें होती है। ऐसे में शहर के स्कूलों में हर साल आरटीई के 40 हजार दाखिले होने चाहिए, लेकिन आलम ये है कि पिछले साल सबसे अधिक 700 दाखिले हुए थे। वहीं, इस बार 150 ही आवेदन अब तक आए हैं।
आरटीई के तहत सभी स्कूलों से उनकी सीटों की संख्या पूछी गई थी। इसका ब्योरा भेजने की अंतिम 21 मार्च थी, इसके बावजूद किसी भी स्कूल ने सीटों का ब्योरा नहीं भेजा। जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग से 15 दिन गुजरने क बाद भी अब तक स्कूलों को नोटिस तक नहीं जारी किया गया है।
स्कूलों में कितनी सीटें ये तक पता नहीं
सीटों का ब्योरा नहीं देने वाले स्कूलों को नोटिस जारी किया जा रहा है। इसमें जो स्कूल जवाब नहीं देंगे, उनकी सम्बद्धता तक रद की जा सकती है। - राजशेखर, डीएम• एनबीटी टीम, लखनऊ
लखनऊ विकास प्राधिकरण, आवास विकास और निजी विद्यालयों के संचालकों की मुनाफे की साठगांठ गरीब विद्यार्थियों पर भारी पड़ रही है। निजी विद्यालयों के संचालकों ने स्कूल खोलने के लिए विकास प्राधिकरण और जिला अधिकारियों से रियायती दर पर जमीन ली। रजिस्ट्री करवाते समय 25 फीसदी गरीब विद्यार्थियों को मुफ्त पढ़ाने का शपथ-पत्र भी दिया। इसके बाद जब स्कूल चलने लगा तो प्राइवेट स्कूलों की नीयत बदल गई। निजी स्कूलों (माइनॉरिटी संस्थाओं को छोड़कर) ने किसी भी तरह की रियायत गरीब विद्यार्थियों को नहीं दी। निजी स्कूल तो मुनाफे की लालच में वादा भूले ही, सरकारी विभागों को भी इस शपथ-पत्र पर अमल कराने की सुध नहीं आई। कारण स्कूलों के मुनाफे के इस धंधे में साझेदारी तो सस्ती जमीन की व्यवस्था करवाने वाले अधिकारियों की भी है।
सस्ती जमीन दिलाकर प्राइवेट स्कूलों का करने में अधिकारियों की दिलचस्पी कितनी है, इस बात का अंदाजा केवल इतने से ही लगाया जा सकता है कि शासन के पास सेंट्रलाइज्ड डेटा तक नहीं है कि कितने
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