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Thursday, April 7, 2016

शिक्षा को लेकर पैरंट्स की बढ़ती जागरूकता कहें या स्कूली शिक्षा व्यवस्था की गिरती साख , 66 हजार घरों के सर्वे पर आधारित आंकड़े बच्चों को मिल रही ट्यूशन की बैसाखी

ट्यूशन की बैसाखी

इसे बच्चों की शिक्षा को लेकर पैरंट्स की बढ़ती जागरूकता कहें या स्कूली शिक्षा व्यवस्था की गिरती साख, लेकिन देश में प्राइवेट ट्यूशन का चलन लगातार जोर पकड़ता जा रहा है। नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में 7.1 करोड़ स्टूडेंट्स प्राइवेट ट्यूशन ले रहे हैं, जो विद्यार्थियों की कुल संख्या का 26 फीसदी है। गौर करने की बात है कि इस मामले में परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि की कुछ खास भूमिका नहीं है। अमीर ही नहीं, गरीब परिवार भी बच्चों को ट्यूशन दिलाने की जरूरत पूरी शिद्दत से महसूस करते हैं। एनएसएसओ के ये आंकड़े 2014 के पूर्वार्ध में किए गए 66 हजार घरों के सर्वे पर आधारित हैं। जाहिर है कि नमूनों के तौर पर इकट्ठा किए गए आंकड़ों का विस्तार करके यह नतीजा निकाला गया है। इसीलिए जनगणना रिपोर्ट के आंकड़े अक्सर एनएसएसओ से अलग होते हैं। जैसे, 2011 की जनगणना रिपोर्ट ने देश में कुल स्टूडेंट्स की संख्या 31.5 करोड़ बताई थी जबकि एनएसएसओ के हिसाब में यह संख्या 27.3 करोड़ मानी गई। इस लिहाज से देखा जाए तो प्राइवेट कोचिंग करने वाले छात्रों की संख्या और ज्यादा हो सकती है। मगर, इस मामले में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि आखिर इन बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन की जरूरत क्यों महसूस होती है/ 89 फीसदी से भी ज्यादा लोगों का जवाब था कि उनकी कोशिश अपने बच्चों की बुनियादी शिक्षा का स्तर सुधारने की है। दूसरे शब्दों में कहें तो उनका मानना है कि स्कूली शिक्षा का स्तर ठीक नहीं है, लिहाजा अतिरिक्त ट्यूशन जरूरी है। यहां इस सवाल की गुंजाइश बनती है कि स्कूली शिक्षा सचमुच स्तरहीन है या प्राइवेट ट्यूशन लॉबी के प्रचार की वजह से लोग मनोवैज्ञानिक दबाव में आकर ऐसा सोचने लगे हैं। लेकिन दोनों ही स्थितियों में इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि पैरंट्स और स्टूडेंट्स की राय स्कूली शिक्षा के स्तर को लेकर कुछ गड़बड़ सी ही है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने का एलान जरूर किया है, पर दोनों तरह के स्कूलों को प्राइवेट ट्यूशन की बैसाखी से मुक्त कराने का टारगेट उसने भी अपने सामने नहीं रखा है।

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