जागरण संवाददाता,बस्ती : कांवेंट के मुकाबले परिषदीय स्कूलों को खड़ा करने की प्रदेश सरकार की योजना पर सरकारी नीतियां ही बट्टा लगा रही हैं। एक अप्रैल से नया सत्र शुरू तो हो गया पर बच्चे पढ़ें कैसे जब उनके बैग में कोर्स की किताबें ही नहीं हैं। कहना न होगा कि सरकारी स्कूलों में योग्य शिक्षक, बगैर फीस, मुफ्त किताबें, दोपहर का भोजन सब कुछ होने के बाद भी छात्र संख्या न बढ़ने का मूल कारण यही है कि सरकार द्वारा लागू की गईं योजनाओं के बच्चों तक पहुंचने में आधा सत्र निकल जाता है। ऐसे में जागरूक व सक्षम अभिभावक बच्चे का नुकसान न हो इसलिए उन्हें कांवेंट स्कूल में दाखिल कराते हैं। अब सरकार चाहे लाख नियम कानून बना ले, कोई भी अभियान चला ले पर सरकारी स्कूल में जाते वही हैं जिनके पास या तो अन्य किसी स्कूल का विकल्प नहीं होता है अथवा जो आर्थिक रूप से काफी कमजोर होते हैं और अपने बच्चों को किसी निजी स्कूल में नहीं भेज सकते। वर्तमान समय में परिषदीय स्कूलों में शैक्षिक सत्र शुरू हो गया। एक ओर नए बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए अभियान चल रहे हैं वहीं दूसरी तरफ नियमित कक्षाएं भी चलाई जा रही हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक शिक्षक ने कहा कि विभाग का यह स्पष्ट निर्देश था कि तीस मार्च को बच्चों को अंकपत्र वितरित करते समय उनकी किताबें अवश्य जमा करा ली जाएं। उस दिन शिक्षकों ने प्रयास भी किया लेकिन कुछ बड़े बच्चों की ही किताबें जमा हो सकीं। कक्षा पांच से नीचे बच्चों की किताबें इस लायक नहीं बची थीं कि उन्हें नए बच्चों को दिया जा सके। विद्यालय में कोर्स के किताबों की एक प्रति मौजूद रहती है उनसे भी बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। दूसरी तरफ जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी डा. संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि बच्चों की पुरानी किताबों से काम चलाया जा रहा है। किताबें अगस्त से अक्टूबर के बीच आएंगी। इसके बाद ही उन्हें बच्चों में वितरित किया जा सकेगा।
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