न किताबे। न पढ़ाई। केवल परीक्षाएं। बात हो रही है परिषदीय विद्यालयों की। एक अप्रैल से सत्र शुरू हुए छह महीने बीत चुके है। वही विद्यालयों में बच्चों के पास पूरी किताबे तक नहीं। फिर भी नाम के लिए सोमवार से छमाही परीक्षाएं कराई जाएगी। ऐसे में बच्चों का भविष्य भगवान भरोसे है।
परिषदीय विद्यालयों में एक अप्रैल से शैक्षिक सत्र शुरू हुआ था। लेकिन किताबों के टेंडर का मामला कोर्ट में लंबित होने के कारण किताबे नहीं छप पाई। इस पर शासन ने पुरानी किताबों से पढ़ाई शुरू कराए जाने का फरमान जारी कर दिया। बीच में दो महीने का ग्रीष्मावकाश के बावजूद किताबे नहीं मिल पाई। अगस्त के अंत में शासन की ओर से पहली खेप में किताबें मुहैया कराई गई। लेकिन यह किताबें ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई। शासन की ओर से कई बार किताबे भेजी जा चुकी है। इसके बावजूद बच्चों के पास किताबें नहीं है। उच्च प्राथमिक विद्यालयों का हाल इस मामले में सही है। क्योंकि कक्षा छह, सात और आठ की लगभग सभी किताबें आ गई है। लेकिन प्राइमरी का हाल बेहाल है। प्राइमरी में केवल 32 फीसदी किताबे ही अभी तक आ सकी है। जिन्हें विद्यालयों को भिजवा दिया गया।
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