उपेक्षा
यह हैं आंकड़े बरेली जनपद में परिषदीय विद्यालयों की संख्या तीन हजार से अधिक है। इनमें सात हजार से अधिक शिक्षक तैनात हैं। चार लाख से अधिक बच्चे यहां शिक्षा पा रहे हैं। इसके अलावा 550 से अधिक कांवेंट स्कूलों में भी दो लाख से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। आरटीई के मानकों की बात करें तो 30 बच्चों पर एक शिक्षक चाहिए लेकिन प्राइमरी स्कूलों में 100 से 150 बच्चों पर एक-एक शिक्षक तैनात हैं। तमाम स्कूलों के फर्श टूट हुए हैं। शौचालय नहीं बने हैं। पानी भी बच्चे घरों से ले जा रहे हैं। स्कूल में फर्नीचर की बजाय जमीन पर बैठकर पढ़ना पड़ रहा है। इनकी छतें बरसात में टपकती हैं। बच्चों के तन पर अच्छी यूनीफार्म तक नहीं हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर साल 50 करोड़ रुपये खर्च होते हैं लेकिन सिर्फ कागजों में। 1
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जागरण संवाददाता, बरेली : शिक्षा देश के विकास की धुरी मानी जाती है। सबसे पहले आती है प्राथमिक शिक्षा। यही शिक्षा एक भवन में नींव की तरह काम करती है। जितनी मजबूत आपकी नींव होगी उतना भवन मजबूत होगा। यानी बेसिक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है। यह सभी सुविधाओं के बीच ठीक से मिल जाए तो नौनिहालों का मार्गदर्शन अच्छा हो जाता है और वह देश के विकास में योगदान करते हैं लेकिन बरेली में बेसिक शिक्षा बदहाल है। अफसरों की छोड़ दें तो सबसे बड़ा जिम्मा माननीयों का बनता है। अपने क्षेत्र के वोटरों के बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का लेकिन उन्होंने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। कमीशन के फेर में निजी स्कूलों के भवनों पर हर माह माननीयों की निधि से प्लास्टर होता रहा लेकिन असली वोटरों के नौनिहालों के सरकारी स्कूली भवनों की छत तक यह नहीं डलवा सके। जनता हर बार चुनाव में शिक्षा की बात करती है। माननीय हामी भी भरते हैं लेकिन उन्होंने इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया। बदलाव बेसिक शिक्षा बरेली का बड़ा मुद्दा है। अब जनता फिर से उसी मुद्दे पर माननीयों से बात कर रही है लेकिन देखना यह है कि यह मुद्दा फिर से कितना सफल हो पाता है। 1ये है जरूरी : माननीयों का आंकड़ों देखें तो पिछले पांच साल में दस करोड़ से अधिक रुपये स्कूलों के भवन निर्माण, फर्नीचर आदि के लिए दिया है। यह सभी निजी स्कूल हैं। किसी सरकारी स्कूल में किसी भी माननीय ने धेला तक नहीं लगाया। यदि माननीय अपनी निधि का दस फीसद भी शिक्षा पर खर्च कर देते तो बेसिक शिक्षा दलदल से निकल सकती है। विधानसभा में सवाल उठाकर नए मॉडल स्कूल खोले जा सकते हैं जो निजी स्कूलों को टक्कर दे सकें। सरकारी स्कूलों की ओर लोगों को रुझान बढ़ सके लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।
माननीयों ने कभी नहीं उठाया शिक्षकों की तैनाती का मुद्दा, निजी स्कूल चमकाते रहे, असली वोटरों के बच्चे जर्जर स्कूलों में पढ़ रहे
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