प्राथमिक और जूनियर स्कूलों में बाउंड्रीवाल न होने के कारण शाम होते ही अराजकतत्वों का डेरा लगना शुरू हो जाता है। इसके साथ ही सुबह से लेकर शाम तक आवारा मवेशियों का अड्डा स्कूलों में बन रहता है। स्कूलों में निरीक्षण के लिए पहुंचने वाले डिप्टी साहब और बीएसए से प्रधानाध्यापक बाउंड्रीवाल बनवाए जाने की गुहार लगाते हुए अक्सर दिखते है। लेकिन विभागीय कामियों के कारण बाउंड्रीवाल का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाता है। बजट के बाद भी परिषदीय प्राथमिक और जूनियर स्कूलों की बाउंड्रीवाल वर्षों से अधूरी पड़ी है। करीब 640 स्कूल ऐसे में जिनमें बाउंड्रीवाल है ही नहीं। प्राथमिक और जूनियर स्कूल आवारा जानवरों के लिए सैरगाह बन जाते है। शाम होते ही इन स्कूलों में अराजकतत्वों का अड्डा लगना शुरू होता है। स्कूलों में बाउंड्रीवाल न होने के कारण एमडीएम कक्ष में रखा मिडडे-मील का सामान भी सुरक्षित नहीं रहता है। क्योंकि अक्सर चोरों ने स्कूलों में एमडीएम का सामान भी पार कर देते है। ब्लाकों में तैनात शिक्षाधिकारियों द्वारा बाउंड्रीवाल की समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। जबकि बाउंड्रीवाल विहीन स्कूलों के प्रधानाध्यापक साहब से चाहरदीवारी बनाए जाने गुहार लगाते हुए दिखते है।
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