सरकार की उदासीनता, विभागीय बदइंतजामी और शिक्षकों की लापरवाही ने सर्व शिक्षा अभियान की धार को और कुंद कर दिया है। चाहे वह राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान हो या मध्याह्न् भोजन, गर्म दूध व फल वितरण योजना। कोई भी योजना परवान नहीं चढ़ सकी है। परिषदीय विद्यालयों में तो आधा सत्र की पढ़ाई बिना किताब ही पूरी हो गई। रही सही कसर अनियमितताओं ने पूरी कर दी। वर्ष र्पयत शिक्षा की गाड़ी पटरी पर नहीं दौड़ सकी है।
परिषदीय शिक्षा के उन्नयन को लेकर मुख्य विकास अधिकारी डा.मन्नान अख्तर ने अहम कदम उठाया है। शिक्षकों को नियमित करने तथा विद्यालय में शैक्षिक माहौल स्थापित करने के लिए उन्होंने ‘शिक्षक डायरी’ अनिवार्य की है। डायरी लागू करने से पहले ब्लाक स्तर पर कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं। सीडीओ खुद कार्यशालाओं में पहुंचकर परिषदीय शिक्षा की गिरती साख को बचाने का आह्वान करते हैं, लेकिन ढाक के तीन पात वाली कहावत यहां भी चरितार्थ होती है। शिक्षकों की उदासीनता और नामांकन के सापेक्ष छात्रों की उपस्थिति को जिलाधिकारी संध्या तिवारी ने भी गंभीरता से लिया है। उनके दिशा-निर्देशन में औचक जांच में प्राथमिक विद्यालयों में व्यवस्था की पोल खुल गई। अधिकतर विद्यालयों में नामांकन के सापेक्ष छात्रों की संख्या कम पाई गई। अव्यवस्था और गैरहाजिरी पर बीएसए को 19 दिसंबर को ही 51 परिषदीय विद्यालय के प्रधानाध्यापकों का वेतन अगले आदेश तक रोकना पड़ा। सैकड़ों विद्यालयों में पीने के पानी और शौचालय की समुचित व्यवस्था नहीं है। मध्याह्न् भोजन नहीं बनने, दूध और फल वितरण में लापरवाही पर 10 ग्राम प्रधानों के भी खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की गई है। शिक्षकों की लापरवाही का आलम यह है कि वह बिना बताए वर्षो से गायब रहते हैं। विभाग के लोगों की मिलीभगत से उनका नियमित वेतन भी बनता रहता है। स्थानांतरण और संबद्धता के नाम पर भी पूरे वर्ष खेल चलता रहा है। सचिवालय और मंत्रलय की आड़ में मनमाने ढंग से शिक्षकों का स्थानांतरण हुआ है।
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