चार साल े पीपीगंज के वार्ड नंबर तीन में परिषदीय प्राथमिक विद्यालय खुला तो चार से पांच छात्र ही पढ़ने आते थे। आसपास के छात्रों में न पढ़ने में रुचि थी और न अभिभावकों में पढ़ाने का उत्साह। आज स्थिति यह है कि छात्रों की संख्या 200 के पार पहुंच गई है। ठंड हो या बरसात, कभी भी 150 से कम छात्र पढ़ने नहीं आते हैं। शिक्षा का यह माहौल तैयार हुआ है प्रधानाध्यापक रीना सिंह और उनकी टीम की लगन और मेहनत से। 1प्राथमिक शिक्षक नौनिहालों की किताबों को बाजार पहुंचाने में भी संकोच नहीं कर रहे। छात्रों में बांटने की जगह पुस्तकों को खेतों में फेक देना मुनासिब समझ रहे हैं। शिक्षकों की लापरवाही और उदासीनता के बीच पीपीगंज वार्ड नंबर तीन स्थित प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापक और उनकी टीम समाज में शिक्षा का अलख जगा रही हैं। वह न सिर्फ बच्चों को गुणवत्तापरक शिक्षा दे रही हैं, बल्कि उन्हें निश्शुल्क कॉपी, पेन और पेंसिल आदि भी उपलब्ध करा रही हैं, ताकि छात्र कोई बहाना न बना सकें। यही नहीं वह अभिभावकों को भी जागरूक करती हैं। आज स्थिति यह है कि वार्ड नंबर तीन और आसपास शिक्षा का बेहतर माहौल तैयार हो गया है। बकौल प्रधानाध्यापक, समय से किताबें नहीं मिलतीं। ऊपर से कापी और पेन आदि के अभाव में बच्चे स्कूल आने से कतराते हैं। उन्हें स्कूल बुलाने के लिए अपने खर्चे से प्रत्येक महीने कॉपी आदि की व्यवस्था करनी पड़ती है। इसके बाद भी वह स्कूल नहीं आते हैं तो उन्हें बुलाने घर भी चले जाते हैं। इसके लिए उन्हें अभिभावकों का ताना भी सुनना पड़ता है। वह बताती हैं कि शिक्षा का माहौल तो तैयार हो चुका है, लेकिन आज भी अराजकतत्व परेशान करने से नहीं चूकते। प्रधानाध्यापक के मन की टीस उभर आती है। उनका कहना है कि सुबह विद्यालय पहुंचने पर परिसर में बोतलें और गंदगी पसरी रहती हैं। रोजाना सफाई की व्यवस्था भी करनी पड़ती है। 1छात्र को कापी प्रदान करतीं प्रधानाध्यापक रीना सिंह ’ जागरण’ पढ़ाई को लेकर अभिभावकों को जागरूक करती हैं प्रधानाध्यापक रीना 1’ प्राथमिक स्कूल वार्ड नंबर तीन में महज चार साल में बढ़ गए 200 छात्रपीपीगंज कस्बा के वार्ड नंबर तीन में गरीब परिवारों की संख्या अधिक है। वर्ष 2012 में प्राथमिक विद्यालय खुल जाने के बाद भी बच्चे पढ़ने नहीं आते थे। स्कूल खाली रहता था और बच्चे बाहर सड़कों पर खेलते रहते थे। आज स्थिति बदल गई है। पढ़ाई के समय बच्चे सड़क पर नहीं स्कूल में दिखते हैं। कस्बे के जुनेद, श्याम बिहारी, रघुनंदन, मनोज और संजय आदि अभिभावकों बताते हैं कि प्रधानाध्यापक मैडम की यह देन है। वह मोहल्ले में घर-घर पहुंचकर अभिभावकों को जागरूक करती हैं। अधिकतर गरीब और नशे में डूबे अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ने नहीं भेजते। इसके बाद भी मैडम हार नहीं मानती और उन्हें समझाकर बच्चों को स्कूल बुलाती हैं। जिन बच्चों को स्वर और व्यंजन नहीं आता था आज वह अंग्रेजी में कविता सुनाते हैं।
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