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Monday, October 12, 2020

लंबे समय से बंद पड़े विद्यालयों को खोलना अब है तो जरूरी, लेकिन संसाधनों का अभाव बढ़ा सकता है स्कूलों की मुश्किलें

लंबे समय से बंद पड़े विद्यालयों को खोलना अब है तो जरूरी, लेकिन संसाधनों का अभाव बढ़ा सकता है स्कूलों की मुश्किलें

 
सच कहा जाए तो अब इसके सिवा कोई और चारा नहीं है कि कोरोना संक्रमण काल के बीच ही माध्यमिक स्तर के विद्यालयों को खोला जाए। यही वजह है कि सरकार ने कक्षा नौ से बारह तक के छात्रों के लिए 19 अक्टूबर से कक्षाएं शुरू करने का फैसला किया है। इसके लिए प्रोटोकाल का निर्धारण भी कर दिया गया है जो कागजों पर तो संतोषजनक लगता है लेकिन यदि सरकारी और निजी विद्यालयों की स्थिति देखें तो इसका पालन करा पाना बड़ी चुनौती होगी। विशेष तौर से ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों के लिए यह एक बड़ी परीक्षा है क्योंकि सत्र को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें भी कक्षाएं शुरू करनी ही पड़ेंगी। 


सरकार ने विद्यालयों में अधिकांश काम आनलाइन करने पर ही जोर दिया है। यहां तक कि एडमिशन और पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग भी आनलाइन ही होगी। यदि विद्यालय इसके लिए संसाधन बना सकेंगे तो निश्चित तौर पर उनके लिए यह नया अनुभव भी होगा। हालांकि माध्यमिक शिक्षा विभाग छात्रों के लिए तीस फीसद पाठ्यक्रम पहले ही कम कर चुका है, फिर भी शिक्षण कार्य को नए सिरे से नियोजित करना पड़ेगा।


छात्र संख्या को आधार बनाएं तो माध्यमिक शिक्षा परिषद से संबद्ध विद्यालयों को कक्षाएं प्रारंभ करने में शुरुआती तौर पर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। राज्य में निजी, सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों की कुल संख्या लगभग 27 हजार है और हर साल हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा में ही लगभग साठ लाख छात्र बैठते हैं। इनमें व्यक्तिगत छात्र भी शामिल हैं और उन्हें हटा दें तो भी इतना बड़ी संख्या के छात्रों के लिए कक्षाएं शुरू कराना आसान न होगा।


 सीबीएसई और सीआइएससी बोर्ड से संबद्ध विद्यालयों के लिए यह उतनी परेशानी की बात नहीं होगी क्योंकि एक तो अधिकांश विद्यालय नगरीय क्षेत्र में हैं और दूसरे उनके पास संसाधन भी तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। राहत की बात यही है कि सरकार ने नियमों को छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के अनुकूल रखने पर जोर दिया है ताकि लोग नई व्यवस्था से बहुत असहज न महसूस करें।

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