दो साल पहले शुरू हुए यूपी के 226 राजकीय हाईस्कूल अब बंद होंगे। इसकी वजह यह है कि राज्य और केंद्र के अफसरों की लेटलतीफी के कारण इनकी बिल्डिंग की निर्माण लागत बढ़ गई। केंद्र बढ़ी हुई लागत देने को तैयार नहीं है। ऐसे में यूपी सरकार ने भी इन स्कूलों को बनवाने से हाथ खड़े कर दिए हैं। केंद्र से कहा है कि इन्हें 2015-16 वाले स्कूलों के साथ समायोजित कर दिया जाए।
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के तहत 2009 से केंद्र सरकार लगातार नए राजकीय हाईस्कूलों के निर्माण के लिए आर्थिक मदद देता है। अब तक 1505 नए स्कूल खुल चुके हैं। इनमें से ज्यादातर कि बिल्डिंग भी बन चुकी है। जिनकी बिल्डिंग नहीं बनी है, वे जूनियर हाईस्कूलों के प्रांगण में चलाए जा रहे हैं। वहां अन्य राजकीय विद्यालयों से कुछ शिक्षक अटैच कर दिए जाते हैं।
2015-16 के साथ समायोजन की तैयारी
केंद्र ने यूपी को 2013-14 में 226 स्कूलों की मंजूरी दी थी। मंजूरी के बाद ये जूनियर हाईस्कूलों के प्रांगण में शुरू हो गए। उसके बाद कई बैठकों के बाद धनराशि जारी होने में समय लग गया। इसी बीच 2015-16 के 258 स्कूलों को मंजूरी मिल गई। केंद्र ने 2013-14 के स्कूलों की लागत प्रति स्कूल 58 लाख रुपये तय की थी। वहीं 2015-16 में 75 लाख तय हुई। अब प्रदेश सरकार का कहना है कि केंद्र से दो साल पहले मंजूर स्कूलों के निर्माण के लिए देर से धनराशि मिली। इस वजह से लागत बढ़ गई। ऐसे में यदि उन्हें बनवाना मुश्किल है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि 2013-14 और
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