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Thursday, September 14, 2023

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्कूलों में सप्ताह में अब मात्र 29 घंटे होगी पढ़ाई, साल में दस दिन बिना बैग स्कूल आएंगे छात्र



NCF : स्कूलों में अब एक सप्ताह में होगी सिर्फ 29 घंटे पढ़ाई और 180 दिन लगेंगी कक्षाएं, शिक्षा मंत्रालय लाया नया प्रस्ताव

10 दिन बगैर बस्ते के आना होगा अधिकतम 50 मिनट की होगी कक्षा


स्कूलों में नए पाठ्यक्रम लागू होने पर सिर्फ परीक्षा ही नहीं, बल्कि पढ़ाई का भी पैटर्न बदल जाएगा। इसका मुख्य फोकस बच्चों को पढ़ाई के बेवजह दबाव से राहत देना है। यही वजह है कि स्कूलों के लिए जो नया नेशनल कैरीकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) तैयार किया गया है, उसमें स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों के लिए वैश्विक मानकों के आधार पर पढ़ाई के घंटे तय किए गए हैं।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत तैयार नए एनसीएफ के तहत स्कूलों में अब हफ्ते में सिर्फ 29 घंटे पढ़ाई होगी। इसमें सोमवार से शुक्रवार तक पांच से साढ़े पांच घंटे और महीने के दो शनिवार को कुछ घंटे की पढ़ाई होगी। दो शनिवार को छुट्टी रहेगी। प्रत्येक स्टेज पर कक्षाओं का समय अधिकतम 35 मिनट रखा गया है। प्रमुख विषयों से जुड़ी कक्षाओं के लिए प्रत्येक स्टेज के अनुसार 40 से 50 मिनट का समय निर्धारित किया गया है।

एनसीएफ ने वर्ष में छात्रों के लिए 10 दिन ऐसे तय किए हैं, जिनमें उन्हें बगैर बस्ते के स्कूल आना होगा। किताबों की जगह मौखिक और प्रयोगों के जरिये पढ़ाया जाएगा। इस दौरान वर्ष में स्कूलों में सिर्फ 180 दिन ही कक्षाएं लगेगी। वर्ष में राष्ट्रीय अवकाश सहित ग्रीष्म व शीतकालीन छुट्टियों आदि के चलते स्कूल 220 दिन ही खुलते हैं। 20 दिन परीक्षाओं और 20 दिन अलग- अलग गतिविधियों में चले जाते हैं। ऐसे में पढ़ाई सिर्फ 180 दिन ही होती है। इसके आधार पर ही पढ़ाई की पूरा शेड्यूल निर्धारित किया गया है।




NCF : साल में दो बार बोर्ड परीक्षा दे सकेंगे, स्कूली शिक्षा का नया ‘नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क’ किया गया तैयार

पसंद का विषय चुन सकेंगे 11वीं और 12वीं के छात्र

अब 12वीं नहीं, 9वीं से भविष्य बनाने में मिलेगी मदद


नई दिल्ली : शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली शिक्षा का नया ‘नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क’(एनसीएफ) तैयार किया है। इसके तहत बोर्ड परीक्षा साल में दो बार होगी। छात्र-छात्राओं को इसमें सर्वश्रेष्ठ अंक बरकरार रखने का विकल्प मिलेगा। एनसीएफ के अनुसार नौवीं एवं 10वीं कक्षा के छात्रों को तीन भाषाओं का अध्ययन करना होगा, जिनमें दो भारतीय भाषाएं होंगी।


11वीं और 12वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को दो भाषाओं का अध्ययन करना होगा, इनमें से कम से कम एक भाषा भारतीय होनी चाहिए। वर्तमान में नौवीं और 10वीं के छात्र दो भाषाओं का अनिवार्य रूप से अध्ययन करते हैं। वहीं, 11वीं और 12वीं के छात्र एक भाषा का अध्ययन करते हैं।


एनसीएफ में कहा गया कि नौवीं 10वीं के लिए सात विषय अनिवार्य होंगे, जबकि 11वीं-12वीं के लिए छह विषय अनिवार्य होंगे। नए ‘करिकुलम फ्रेमवर्क’ के आधार पर 2024 के शैक्षणिक सत्र के लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार की जाएंगी।


केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार को ‘नेशनल ओवरसाइट कमेटी’ (एनओसी) और ‘नेशनल सिलेबस एंड टीचिंग-लर्निंग मैटेरियल कमेटी’ (एनएसटीसी) की संयुक्त बैठक के दौरान एनसीएफ को राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को सौंप दिया।


पसंद का विषय चुन सकेंगे छात्र 11वीं और 12वीं में विषयों का चयन कला, विज्ञान, वाणिज्य स्ट्रीम तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि छात्र-छात्राओं को अपनी पसंद का विषय चुनने की आजादी मिलेगी।


वर्तमान परीक्षा प्रणाली से तनाव दस्तावेज में कहा गया है कि वर्तमान में जिस तरह से बोर्ड परीक्षाएं ली जाती हैं, उससे किसी एक दिन अपेक्षित प्रदर्शन नहीं करने से परिणाम पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। चूंकि ये परीक्षाएं साल में एक बार ली जाती हैं। ऐसी परीक्षाएं बहुत अधिक मात्रा में तथ्यों से संबंधित होती हैं और इसके कारण तनाव भी पैदा होता है।


तैयारी के बाद परीक्षा दो बार बोर्ड परीक्षा होने से छात्र उस बोर्ड परीक्षा में उपस्थित हो सकता है, जिसके लिए वह तैयार हो। इस प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए समग्र परीक्षा सामग्री बैंक तैयार किया जा सकता है, जिसका उपयोग सॉफ्टवेयर के माध्यम से परीक्षा लेने में किया जा सकता है। दीर्घकाल में सभी बोर्ड को सेमेस्टर प्रणाली अपनाने की सलाह दी गई है।


प्रदर्शन आधारित मूल्यांकन हो

व्यवसायिक शिक्षा, कला शिक्षा, शारीरिक शिक्षा और सेहत एनसीएफ का अभिन्न हिस्सा है। इन मामलों में मूल्यांकन प्रदर्शन आधरित होना चाहिए। सिफारिश की गई है 75 प्रतिशत जोर प्रदर्शन आधारित मूल्यांकन और 25 प्रतिशत मूल्यांकन लिखित परीक्षा पर हो।


छात्रों पर बोर्ड परीक्षा का बोझ कम करना लक्ष्य

एनसीएफ के अनुसार, छात्रों पर बोर्ड परीक्षा के बोझ को कई कदमों के जरिये कम किया जा सकता है। बोर्ड परीक्षा को पाठ्यक्रम के अनुरूप माध्यमिक स्तर पर क्षमताओं का मूल्यांकन करना चाहिए। ये परीक्षाएं छात्र के प्रदर्शन की वैध एवं विश्वसनीय तस्वीर पेश करने वाली होनी चाहिए।


पाठ्य पुस्तकों की कीमतों में आएगी कमी

एनसीएफ के अनुसार, बोर्ड परीक्षाएं महीनों की कोचिंग और रट्टा लगाने की क्षमता के मुकाबले छात्र-छात्राओं की समझ और दक्षता के स्तर का मूल्यांकन करेंगी। कक्षाओं में पाठ्य पुस्तकों को कवर करने की मौजूदा प्रथा से बचा जाएगा और पाठ्य पुस्तकों की कीमतों में कमी लाई जाएगी।


राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का खाका चार स्तरों में बांटा 

एनसीएफ को चार स्तर पर विभाजित किया गया है। पहला बुनियादी स्तर, जिसमें तीन से आठ वर्ष के छात्र आएंगे। दूसरा तैयारी स्तर है, जिसमें आठ से 11 वर्ष के छात्र होंगे। तीसरा मध्य स्तर, जिसमें 11 से 14 वर्ष के छात्र होंगे। चौथा माध्यमिक स्तर, जिसमें 14 से 18 आयु वर्ग के छात्र होंगे।


कक्षा नौ और 10 के छात्रों को तीन भाषाएं पढ़नी होंगी

कक्षा नौ और 10 के छात्रों को अनिवार्य रूप से तीन भाषाओं का अध्ययन करना होगा। इनमें से दो भाषाएं भारतीय मूल की होनी चाहिए। वर्तमान में कक्षा नौ और 10 के छात्र दो अनिवार्य भाषाएं पढ़ते हैं। अब तक नौ से 12 तक के छात्रों को एक अतिरिक्त विषय के विकल्प के साथ अनिवार्य रूप से पांच विषयों का अध्ययन करना पड़ता था। नए पाठ्यक्रम ढांचे में कहा गया है कि विभिन्न चरणों में भाषाओं का अध्ययन छात्रों में लोकतांत्रिक मूल्यों को विकसित करने में मदद करेगा।



अब साल में दो बार होंगी बोर्ड परीक्षाएं

नई दिल्ली ।  शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली शिक्षा का नया राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा (एनसीएफ) तैयार कर लिया है। इसके तहत बोर्ड परीक्षाएं अब साल में दो बार होंगी। छात्र - छात्राओं को सर्वश्रेष्ठ अंक चुनने का विकल्प दिया जाएगा। इसके साथ ही कक्षा 11वीं और 12वीं के छात्र-छात्राओं को दो भाषाओं का अध्ययन करना होगा। इनमें से कम-से-कम एक भाषा भारतीय होनी चाहिए।

मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुसार नया पाठ्यक्रम ढांचा तैयार है। इसके आधार पर 2024 के शैक्षणिक सत्र के लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार की जाएंगी।

इस समय बोर्ड परीक्षा में छात्रों का काफी कुछ दांव पर लगा होता है। बोर्ड परीक्षा के लिए छात्रों को महीनों तक कोचिंग लेनी पड़ती है। अब रट्टा लगाने की क्षमता के बजाय बोर्ड परीक्षा के जरिये छात्रों की दक्षता और समझ का आकलन किया जाएगा। पाठ्यक्रम ढांचे के अनुसार, छात्रों को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए पर्याप्त समय और अवसर मिले, इसकी खातिर साल में दो बार बोर्ड परीक्षाएं आयोजित जाएंगी। दो बार परीक्षा देने के बाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ स्कोर बनाए रखने की अनुमति होगी।

कक्षा 11वीं और 12वीं में विषयों का चयन कला, विज्ञान और वाणिज्य 'स्ट्रीम' तक सीमित नहीं रहेगा। इसमें लचीलापन लाया जाएगा और छात्र-छात्राओं को अपनी पसंद का विषय चुनने की आजादी मिलेगी। नए पाठ्यक्रम ढांचे के अनुसार, स्कूल बोर्ड उचित समय में मांग के अनुसार परीक्षा की पेशकश करने की क्षमता विकसित करेंगे। कक्षा में पढ़ाई के दौरान पाठ्यपुस्तकों को कवर करने की मौजूद प्रथा से बचा जाएगा।

एनसीएफ में कहा गया है यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्रों को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए पर्याप्त समय और अवसर मिले, बोर्ड परीक्षाएं साल में कम से कम दो बार आयोजित की जानी चाहिए। इसके बाद छात्र उन विषयों की बोर्ड परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। इस प्रक्रिया को एक व्यापक 'टेस्ट बैंक' के माध्यम से संभव बनाया जा सकता है। इसका उपयोग उपयुक्त साफ्टवेयर के जरिये किया जा सकता है। इससे निकट भविष्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वर्णित आन डिमांड परीक्षाओं की ओर कदम बढ़ाया जा सकेगा । शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि लंबी अवधि में, सभी बोर्डों को सेमेस्टर या टर्म-आधारित सिस्टम में बदल दिया जाना चाहिए, जहां छात्र किसी विषय का अध्ययन पूरा करते ही उसमें परीक्षा दे सकते हैं। इससे एक बार होने वाली परीक्षा की तुलना में छात्रों की अध्ययन सामग्री का भार हल्का हो जाएगा।


ऑन डिमांड परीक्षा : बच्चे जब चाहें तब होगा इम्तिहान

एनसीएफ, 2023 में फिलहाल परीक्षा में सुधार के लिए बोर्ड परीक्षाएं साल में दो बार कराई जाएंगी। हालांकि, इसमें प्रावधान किया गया है कि भविष्य में इस नए पाठ्यक्रम के अनुसार, स्कूल बोर्ड उचित समय में मांग के अनुसार यानी ऑन डिमांड परीक्षा का मौका भी देंगे।

इसके लिए स्कूलों और बोर्ड को प्लेटफॉर्म तैयार करना होगा। बच्चे जब भी खुद को तैयार पाएंगे, वे परीक्षा की मांग रख सकते हैं। इसके लिए व्यापक स्तर पर बोर्ड को प्रश्नों का बैंक तैयार करना होगा और परीक्षा के समय उपयुक्त सॉफ्टवेयर की मदद ली जाएगी।


कोचिंग और रट्टा लगाने से मिलेगी निजात

केंद्रीय शिक्षा मंत्री प्रधान ने कहा, विद्यार्थियों को अब कोचिंग और रट्टा लगाने से निजात मिलेगी। बोर्ड परीक्षा के साथ अन्य कक्षाओं के मूल्यांकन में भी बदलाव होगा। इसमें छात्र की समझ और दक्षता के आधार पर मूल्यांकन होगा।


6वीं से 8वीं कक्षा में लिखित परीक्षा पर जोर

छठवीं से आठवीं कक्षा में पहली बार लिखित परीक्षा पर जोर होगा। यहां शिक्षक कक्षा में विषयों पर विस्तार से पढ़ाई करवाएंगे। यहां पर विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, वोकेशनल एजुकेशन विषयों को जोड़ा जाएगा। यहां आकलन के साथ-साथ लिखित परीक्षा पर भी जोर होगा। इसमें छात्रों की कक्षा और उम्र के आधार पर समझ तथा ज्ञान को भी परखा जाएगा।


पहली से पांचवीं तक औपचारिक परीक्षा नहीं आकलन के आधार पर मिलेगा ग्रेड

अमर उजाला ब्यूरो

नई दिल्ली। स्कूलों में नर्सरी, केजी, एलकेजी स्कूली शिक्षा का हिस्सा होंगे लेकिन पहली कक्षा से छात्र पहली बार किताब देखेंगे। पहली और दूसरी कक्षा के छात्र सिर्फ दो किताबें भाषा और गणित विषय की पढ़ेंगे। पहली से पांचवीं कक्षा तक औपचारिक परीक्षा की बजाय आकलन होगा। आकलन के आधार पर ग्रेड दिया जाएगा।

आकलन में लिखित परीक्षा के बजाय शिक्षक कक्षा में छोटे-छोटे वर्कशीट पर टेस्ट और अपने आकलन के आधार पर छात्रों को ग्रेड देंगे। पांचवीं कक्षा तक छात्रों को खेल-खेल में भाषा, गणित, मानवीय मूल्य, भारतीय परपंरा दुनिया के घटनाक्रम से जोड़ेंगे। वहीं तीसरी, चौथी और पांचवीं कक्षा के छात्रों को भाषा, विज्ञान, गणित, शारीरिक शिक्षा के साथ लिखने, पढ़ने और बोलने में माहिर किया जाएगा। इन तीन कक्षाओं में गणित और भाषा पर विशेष रूप से काम होगा। कक्षा, उम्र के आधार पर हर विषय पर आकलन होगा और कमियों को दूर किया जाएगा।

अब 12वीं नहीं, 9वीं से भविष्य बनाने में मिलेगी मदद : 9वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं को सेकंडरी स्टेज में रखते हुए दो भागों में बांटा गया है। इसमें कई बड़े बदलाव किए गए हैं। कक्षा 10वीं को पूरा करने के लिए छात्रों को कक्षा नौंवी और 10वीं के दो वर्षों में कुल आठ आठ पाठ्यक्रम में से प्रत्येक से दो आवश्यक पाठ्यक्रम पूरे करने होंगे। उदाहरण के तौर पर अभी 10वीं बोर्ड परीक्षा के छात्रों को कम से कम पांच विषयों की पढ़ाई करनी होती है लेकिन नए नियमों में आठ विषयों को रखा गया है। इसमें ह्यूमैनाटिज, मैथमेटिक्स व कंप्यूटिंग, वोकेशनल एजुकेशन, फिजिकल एजुकेशन, आस एजुकेशन, सोशल साइंस, साइंस और इंटर डिसिप्लिनरी है।

वहीं, 11वीं और 12वीं कक्षा में छात्रों को अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए विषय चुनने की आजादी मिलेगी। 12वीं कक्षा तक छात्रों को 16 मनपसंद कोर्स की पढ़ाई करनी अनिवार्य रहेगी। इसका अर्थ है कि अब छात्र को कक्षा नौवीं से अपने भविष्य को लेकर तैयारी शुरू करनी होगी।

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