परिषदीय स्कूलों में पढ़ाई की गुणवक्ता को उत्तम बनाने के लिए शासन तरह-तरह के दावे तो करता है। किंतु खुद द्वारा किए गए दावे में भी खोखला निकल रहा है। शैक्षिक सत्र के पांच माह बीतने के बाद भी शासन से किताबें तक नहीं आ सकी हैं। ऐसे में परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे बिन किताबों के कैसे देश के कर्ण धार बनेंगे। यह एक बड़ा सवाल है। प्राथमिक शिक्षा में सुधार के बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार खुद बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करती नजर आ रही है। जिले में कुल 1337 प्राथमिक व 432 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में एक लाख 75 हजार दो सौ छात्र-छात्रएं अध्ययनरत हैं। इन बच्चों का भविष्य खतरे में चल रहा है। शासन ने परिषदीय स्कूलों के खिलाफ गलत धारणा रखने वाले बच्चों के अभिभावकों को आकर्षित करने के लिए कान्वेंट की तर्ज पर भले ही अप्रैल माह से नए शैक्षिक सत्र के संचालन के करने के लिए कहा हो। किंतु शासन अपने ही निर्णय पर कायम नहीं है। शासन ने पांच अगस्त को भाषा की किताबों के वितरण के लिए सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र तो जरुर भेज दिया, लेकिन जिन किताबों से बच्चों का भविष्य निर्माण होना है। उसका अभी तक कोई अता-पता नहीं है। ऐसे में देश के कर्ण धार का निर्माण कैसे होगा।
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