57 लाख रुपये का मकान भत्ता घोटाला उजागर होने पर शिक्षा विभाग में खलबली मची है। अधिकारी एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में लगे हैं। बीएसए डा. एमपी वर्मा का कहना है कि यह मामला उनके बागपत में आने से पहले का है। वित्त एवं लेखाधिकारी की जिम्मेदारी बनती है कि बिल चेक करने के बाद ही वेतन भुगतान करते। वित्त एवं लेखाधिकारी को लिखेंगे कि आडिट में मकान भत्ता में जो 57 लाख रुपये की अनियमितता प्रकाश में आई है उसका निस्तारण कराएं। दूसरी ओर वित्त एवं लेखाधिकारी नंदकिशोर ने कहा कि वेतन बिल बीईओ पास करते हैं इसलिए अनियमितता के जिम्मेदार हम नहीं बीईओ हैं।
600 ग्रामीण शिक्षकों को गांव के बजाय शहरी मकान भत्ता देने से 57 लाख रुपये की चपत लगने का मामला तूल पकड़ चुका है। ‘दैनिक जागरण’ में खबर छपते ही सीडीओ जेपी रस्तोगी गोलमाल की जानकारी करने शिक्षा विभाग के दफ्तर पहुंचे व बीएसए से लिखित में पूछा कि-ग्रामीण अध्यापकों को शहरी मकान भत्ता देने का खेल कैसे हुआ और किसने किया?जागरण के शनिवार के अंक में 600 ग्रामीण अध्यापकों पर लुटाए गए 57 लाख रुपये शीर्षक से खबर प्रमुखता से प्रकाशित होने पर मामले का भंडाफोड़ हुआ। सीडीओ ने बताया कि खबर पढ़कर उन्हें पता चला कि शिक्षा विभाग में अध्यापकों को नियम विरुद्ध शहरी क्षेत्र का मकान भत्ता दिया गया। हकीकत का पता लगाने के लिए वे खुद बेसिक शिक्षा विभाग के दफ्तर पहुंचे और कर्मियों से मकान भत्ते में हुए खेल के संबंध में पूछताछ की।सीडीओ ने बीएसए से लिखित में जवाब तलब किया कि मकान भत्ता घोटाला कैसे हुआ है? ग्रामीण अध्यापकों को शहरी दर से मकान भत्ता किस अधिकारी के आदेश से मिला? सालों से जारी उक्त खेल को पकड़ा क्यों नहीं गया है?1मामला प्रकाश में आने के बाद क्या उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया? जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई? यदि नहीं तो क्यों? शिक्षकों से वसूली की कार्रवाई शुरू की गई या नहीं? सीडीओ ने कहा कि यह मामला बहुत गंभीर है। दोषी कर्मियों और अधिकारियों पर कार्रवाई कराई जाएगी। बता दें कि साल 2013-2014 व 2014-2015 में 600 ग्रामीण अध्यापकों को नियम विरुद्ध शहरी मकान भत्ता दिया गया है।
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