हरदोई स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिकाएं बच्चों की तरह लड़ रहे हैं। अहिरोरी विकास खंड के कराई गांव में आपसी गुटबाजी को लेकर सामने आया मामला पहला नहीं है। इससे पहले भी कई विकास खंडों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। विभाग विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की बात कह रहा है लेकिन अखाड़ा बने विद्यालय पूरी व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। हालांकि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का कहना है कि मामला गंभीर है और वह अपने स्तर से पूरे मामले की जांच कराएंगे। उच्च प्राथमिक विद्यालय कराई की प्रधानाध्यापिका राधा शुक्ला व सहायक अध्यापिका आभा मिश्र के बीच चल रहा विवाद और गुटबाजी बुधवार को सरेआम हो गया था। बच्चों के सामने दोनों के बीच जमकर विवाद हुआ। प्रधानाध्यापिका ने शिक्षिका पर मिड-डे मील में कुछ मिला देने का आरोप लगा दिया। दोनों के बीच इतना विवाद हुआ कि पुलिस मौके पर बुलानी पड़ी। हालांकि मामला थाने तक पहुंचते पहुंचते आपस में ही निपट गया और प्रधानाध्यापिका व सहायक अध्यापिका ने लिखित समझौता कर लिया। समझौते में मिड-डे मील में कुछ मिलाने की बात तक का जिक्र तक नहीं किया गया। प्रधानाध्यापिका का कहना था उनका विवाद चल रहा है और उन्होंने सहायक अध्यापिका को रसोईं की तरफ जाने से मना किया था, लेकिन बार बार वह न केवल वहीं जा रही थी बल्कि उन्होंने खाने में मिलाने की धमकी भी दी थी। ग्रामीणों और बच्चों के सामने बवाल के बाद दोनों के बीच समझौता तो हो गया लेकिन इस घटना ने पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी है। शासन और प्रशासन भले ही गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की बात कह रहा है लेकिन विद्यालयों में अध्यापक लड़ रहे हैं। सुरसा, मल्लावां में भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। अब जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी मसीहुज्जमा सिद्दीकी ने बताया किसी भी पक्ष ने कोई लिखित शिकायत नहीं की, हां पुलिस तक मामला पहुंचने की उन्हें जानकारी मिली थी, इसकी जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी।
गुटबाजी का शिकार हो रहे बच्चे:
सवाल इस बात का नहीं कि विद्यालयों में शिक्षिकाओं में विवाद हुआ सवाल तो इस बात है कि बच्चों को हथियार बनाने की कोशिश हुई। प्रधानाध्यापिका का आरोप था कि सहायक अध्यापिका ने उन्हें फंसाने के लिए मिड-डे मील में कुछ मिलाने की धमकी दी थी। हालांकि सहायक अध्यापिका बना कर रही हैं लेकिन बच्चों को पढ़ाने वालों को दिमाग में ही ऐसी बात आ जाना गंभीर बात है। गुटबाजी तो हर जगह और करीब करीब अधिकांश विद्यालयों में चल रही है तो क्या बच्चों को हथियार बनाया जाएगा और विवाद का बच्चे ही शिकार हो रहे हैं। बीएसए भी इसे गंभीर बात मान रहे हैं।
फेंके गए खाने का कौन देगा हिसाब:
बच्चों के मिड-डे मील में कुछ मिला देने की आशंका को लेकर गांव वालों के सामने कूड़े में खाना फेंक दिया गया। बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए शुरु की गई व्यवस्था किस तरह से मनमानी का शिकार हो रही है यह इसकी पोल खोल रहा है। अब खाने में कुछ था या नहीं, आरोप सही थे या नहीं यह तो अलग बात है लेकिन प्रति बच्चे के हिसाब से भेजी जाने वाली धनराशि और परिवर्तन लागत का हिसाब कौन देखा।
शासनादेश का नहीं हो रहा पालन:
विद्यालय में खाना खाने से कोई अप्रिय घटना न हो। इसके लिए शासन ने पूरी व्यवस्था बनाई। अधिकारियों को साफ निर्देश दिया गया कि रोजाना बनने वाले मिड-डे मील का नमूना सुरक्षित रख लिया जाए और इसे विद्यालय बंद होने के पूर्व या फिर अगले दिन फेंका जाए। जिससे कि अगर मिड-डे मील में कोई गड़बड़ी है या फिर आशंका है तो उसकी जांच कर दूध का दूध पानी का पानी हो जाए लेकिन एक दो विद्यालयों को छोड़ दें तो अधिकांश में इसका पालन नहीं हो रहा है। अधिकारी भी इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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