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Friday, February 9, 2024

उत्तर प्रदेश में कुपोषण से नाटे रह गए 44 प्रतिशत बच्चे, बाल विकास विभाग की छह साल की उम्र तक के बच्चों की रिपोर्ट में खुलासा

उत्तर प्रदेश में कुपोषण से नाटे रह गए 44 प्रतिशत बच्चे, बाल विकास विभाग की छह साल की उम्र तक के बच्चों की रिपोर्ट में खुलासा



कानपुर। कुपोषण कद का दुश्मन बन रहा है। भारत में उम्र के सापेक्ष बच्चों की लंबाई कम है। औसतन हर चौथा बच्चा नाटेपन का शिकार है। वजन भी मानक से कम है। यूपी में 44 प्रतिशत बच्चों पर इसका असर देखा गया है और कई जिलों में तो यह आंकड़ा 50 फीसदी से भी ज्यादा है। बिहार व झारखंड मे क्रमशः 42.9 व 32 फीसदी, तो उत्तराखंड में 27 फीसदी बच्चे 'ग्रोथ फेल्योर' से पीड़ित है।


यूपी बाल विकास विभाग की ओर से जनवरी 2024 में 75 जिलों में संचालित 1.88 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों के छह साल से कम उम्र के 1.89 करोड़ बच्चों की जांच की गई, तो 83.38 लाख बच्चे गंभीर या मध्यम रूप से कम लंबाई के पाए गए। विशेषज्ञों के मुताबिक, कम लंबाई का कारण कुपोषण और आनुवांशिक दोनों हो सकते हैं लेकिन इन बच्चों का कम वजन कुपोषण की तस्दीक कर रहा है।


उत्तराखंड में पांच साल तक के 27 प्रतिशत बच्चे कुपोषण की वजह से नाटे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में पांच साल तक के बच्चों की कुल संख्या 13 लाख 48 हजार है। आईसीडीएस के उपनिदेशक विक्रम सिंह के अनुसार उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में वंशानुगत कारकों की वजह से ऊंचाई कम रहती है। कुपोषण का भी शारीरिक विकास पर असर पड़ता है। 


बिहार में नाटेपन का शिकार शून्य से पांच वर्ष के बच्चों की संख्या 48.3 से घटकर 42.9 फीसदी हो गई है। 5.4% की गिरावट को आंगनबाड़ी केंद्रों पर कुपोषण के खिलाफ जारी सुधार कार्यक्रमों से जोड़कर देखा जा रहा है। झारखंड में स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस रिम्स तथा यूनिसेफ द्वारा तैयार आंकड़ों के अनुसार, जन्म के बाद छह माह तक के 32% बच्चे ग्रोथ फेल्योर के शिकार हैं।



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