DISTRICT WISE NEWS

अंबेडकरनगर अमरोहा अमेठी अलीगढ़ आगरा इटावा इलाहाबाद उन्नाव एटा औरैया कन्नौज कानपुर कानपुर देहात कानपुर नगर कासगंज कुशीनगर कौशांबी कौशाम्बी गाजियाबाद गाजीपुर गोंडा गोण्डा गोरखपुर गौतमबुद्ध नगर गौतमबुद्धनगर चंदौली चन्दौली चित्रकूट जालौन जौनपुर ज्योतिबा फुले नगर झाँसी झांसी देवरिया पीलीभीत फतेहपुर फर्रुखाबाद फिरोजाबाद फैजाबाद बदायूं बरेली बलरामपुर बलिया बस्ती बहराइच बागपत बाँदा बांदा बाराबंकी बिजनौर बुलंदशहर बुलन्दशहर भदोही मऊ मथुरा महराजगंज महोबा मिर्जापुर मीरजापुर मुजफ्फरनगर मुरादाबाद मेरठ मैनपुरी रामपुर रायबरेली लखनऊ लख़नऊ लखीमपुर खीरी ललितपुर वाराणसी शामली शाहजहाँपुर श्रावस्ती संतकबीरनगर संभल सहारनपुर सिद्धार्थनगर सीतापुर सुलतानपुर सुल्तानपुर सोनभद्र हमीरपुर हरदोई हाथरस हापुड़

Saturday, January 7, 2023

संस्कृत स्कूलों में भी पढ़ते हैं गैर हिंदू बच्चे, मदरसा बोर्ड के चेयरमैन ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के पत्र पर जताई नाराजगी

संस्कृत स्कूलों में भी पढ़ते हैं गैर हिंदू बच्चे, मदरसा बोर्ड के चेयरमैन ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के पत्र पर जताई नाराजगी


लखनऊ : उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन डा. इफ्तिखार अहमद जावेद ने शनिवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से अपने पत्र पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। इस पत्र में आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से गैर-मुस्लिम बच्चों को प्रवेश देने वाले मदरसों का निरीक्षण कर रिपोर्ट देने के लिए कहा था। बोर्ड के चेयरमैन ने पत्र पर नाराजगी जताते हुए कहा कि गैर हिंदू बच्चे भी संस्कृत स्कूलों में पढ़ने जाते हैं।


डॉ. इफ्तिखार ने कहा कि उन्हें मीडिया के जरिए इस पत्र की जानकारी मिली है। उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि हमारे यहां मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के तहत बच्चों को आधुनिक शिक्षा दी जा रही है।


मदरसों में केवल धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा रही है। मिशनरी स्कूलों में हर धर्म के बच्चे पढ़ते हैं। मैं खुद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ा हूं। इस तरह के पत्र से सरकार की सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की भावना से काम करने में असहज स्थिति पैदा होगी। इसलिए इस पत्र पर पुनर्विचार किया जाए। 8 दिसंबर को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सचिवों मुख्य को पत्र लिख कर उन्हें गैर-मुस्लिम बच्चे जहां पढ़ रहे हैं ऐसे सभी मदरसों की विस्तृत जांच कर रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए थे।


राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का नया फरमान, मदरसों से गैर मुस्लिम बच्चों छात्र-छात्राओं को चिन्हित करते हुए RTE के तहत सामान्य शिक्षण संस्थानों में दाखिला करवाया जाए।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने फरमान जारी किया है कि देश भर के अनुदानित व मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम छात्र-छात्राओं को चिन्हित किया जाए और उन्हें वहां से निकाल कर शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सामान्य शिक्षण संस्थानों में दाखिल करवा कर उनके पठन-पाठन की व्यवस्था करवाई जाए।


 आयोग की चेयरमैन प्रियंका कानूनगो की ओर से बीती 8 दिसम्बर को सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को इस बारे में पत्र भेजा गया है। इस पत्र के मुताबिक मदरसा एक ऐसा शिक्षण संस्था है जहां धार्मिक शिक्षा दी जाती है। आयोग को विभिन्न स्रोतों से ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि ऐसे मदरसे जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त व अनुदानित हैं, वहां गैर मुस्लिम छात्र-छात्राओं को सामान्य शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा का पठन-पाठन की व्यवस्था होती है और मदरसों के छात्र-छात्राओं को सरकारी वजीफा भी मिलता है।


 आयोग के अनुसार यह व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का खुला उल्लंघन है। आयोग ने सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिये हैं कि ऐसे अनुदानित व मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच करवाई जाए जहां गैर मुस्लिम बच्चे पढ़ रहे हैं।  ऐसे बच्चों का भौतिक सत्यापन हो और उसके बाद इन बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून के तहत अन्य सामान्य शिक्षण संस्थानों में दाखिल करवा कर उनके पठन-पाठन की उचित व्यवस्था करवाई जाए। इसके अलावा गैर चिन्हित या गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की भी जांच करवाई जाए और वहां भी गैर मुस्लिम बच्चों को चिन्हित कर अन्य सामान्य शिक्षण संस्थानों उनके पठन-पाठन की व्यवस्था करवाई जाए। आयोग ने संसद द्वारा अगस्त 2009 में पारित किये गये शिक्षा का अधिकार कानून का हवाला दिया है, जिसके अनुसार यह राज्य का दायित्व है कि वह छह से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे की नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करे।


 पैदा हुआ नया विवाद
 आयोग के इस पत्र को लेकर एक नया विवाद भी पैदा हो गया है। उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन डा. इफ्तेखार जावेद ने कहा है कि अभी उनके संज्ञान में यह विषय नहीं आया है और न ही उन्हें आयोग का ऐसा कोई पत्र ही मिला है लेकिन अगर आयोग ने ऐसा कोई आदेश जारी किया है तो यह उचित नहीं है बल्कि शिक्षा के मामले में धार्मिक भेदभाव पैदा करने वाला आदेश है। इस पर पुर्नविचार की जरूरत है।


मदरसा शिक्षकों के संगठन आल इण्डिया मदारिस-ए-अरबिया के महासचिव वहीदुल्लाह खान का कहना है कि आयोग का यह आदेश आपस में भेदभाव नफरत बढ़ाने वाला कदम है। इस बारे में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सभी को विरोध पत्र भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि सुदूरवर्ती गांव कस्बों में जहां स्तरीय स्कूल-कालेज नहीं हैं वहां मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चे भी पढ़ते हैं चूंकि इन मदरसों की फीस बहुत कम होती है या फिर फीस नहीं भी ली जाती है। 



क्या है निहितार्थ-
रा्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के इस पत्र का निहितार्थ मेरी समझ से तो यही है कि मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम बच्चों को इस्लामी धार्मिक शिक्षा देकर उनका धर्मांतरण करवाया जाता है। जबकि वास्वतिकता यह है कि मदरसों में कक्षा एक से आठ तक कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती है। उर्दू भी एक ऐच्छिक विषय के तौर पर ही पढ़ाया जाता है। हाईस्कूल व इण्टर की कक्षाओं में इस्लामी धर्मशास्त्र की शिक्षा दी जाती है।
 


संस्कृत विद्यालयों की स्थिति 

आल इण्डिया टीचर्स एसो. राष्ट्रीय महासचिव वहीदुल्लाह खान ने कहा कि संस्कृत विद्यालयों में तो पूरी तरह धार्मिक शिक्षा दी जाती है। वहां शुरुआत से ही वेद, पुराण पढ़ाए जाते हैं यहां तक प्रार्थना भी हिन्दू धर्म की वंदना ही होती है।

No comments:
Write comments