मोबाइल ऐप के जंजाल में बीत रहा समय, स्कूल समय में सूचना दें या पढ़ाएं बेसिक शिक्षक
बेसिक शिक्षा विभाग 30 से अधिक ऐप के जरिए मांग रहा सूचना, शिक्षक बोले, सूचना देते रहेंगे तो बच्चों को पढ़ाएंगे कब
लखनऊः बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से शिक्षकों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाना और ऐप के जरिए पूरा काम कराना धीरे धीरे उनके लिए मुश्किल भरा होता जा रहा है। बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों के फोन में 30 से अधिक ऐप इंस्टॉल है जिनसे विभाग सूचनाएं मांग रहा है। बच्चों की हाजिरी से लेकर ऑनलाइन प्रशिक्षण और अलग अलग विभागीय सूचनाएं हर काम के लिए अलग-अलग ऐप इस्तेमाल करने की बाध्यता से पढ़ाई लिखाई की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।
शिक्षकों के फोन में प्रेरणा, प्रेरणा डीबीटी, दीक्षा, रीड अलांग, निरीक्षण प्लस, उत्सव, समृद्धि, यू डायस, आधार, मिशन प्रेरणा पोर्टल, मानव संपदा सहित 30 से अधिक ऐप इंस्टॉल कराने के निर्देश है। हर गतिविधि के लिए अलग ऐप पर सूचना भरने में शिक्षकों का काफी समय खर्च हो रहा है, जिससे बच्चों को पढ़ाने के लिए समय निकालना मुश्किल हो गया है।
एकल विद्यालयों में सबसे अधिक समस्याः ऐप में सूचनाएं भरने को लेकर सबसे अधिक परेशानियां एकल और शिक्षक विहीन स्कूलों में है। यहां या तो शिक्षक बच्चों को काम देकर फिर ऑफिशियल सूचनाएं देने का काम करते हैं या घर ले जाकर काम करते हैं। नगर क्षेत्र के डालीगंज स्थित प्राथमिक विद्यालय बरौलिया 2 बीते पांच साल से शिक्षक विहीन है। यहां 52 बच्चे हैं। स्कूल में तैनात शिक्षामित्र उबैद अहमद सिद्दीकी ऐप पर सूचनाएं देने का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि विभागीय काम अक्सर घर से करते हैं। कई बार तत्काल मांगने पर स्कूल से भी सूचनाएं देनी पड़ती है तब पढ़ाई बाधित होती है।
नेटवर्क की समस्या से भी परेशान है शिक्षकः शिक्षकों का कहना है कि मोबाइल पर लगातार सूचनाएं भेजने और भरने से ध्यान भटकता है। कई बार तकनीकी दिक्कतों के कारण काम रुक जाता है। अगर सूचना देने में देर हो जाए तो अधिकारियों की नाराजगी झेलनी पड़ती है। शिक्षकों पर बहुत अधिक डिजिटल काम का दबाव बनाया जाने लगा है। शिक्षकों को पढ़ाई और छात्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने देना चाहिए। हर स्कूल तो ब्रॉड बैंड कनेक्शन से जुड़े नहीं है। ऐसे में नेटवर्क न होने के कारण शिक्षकों को नेटवर्क के चक्कर में इधर उधर भागना पड़ता है।
पीएसपीएसए के प्रान्तीय अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने बताया कि हर माह 21 से 23 के बीच प्रधानाध्यापक /इंचार्ज अपने स्कूल की अटेंडेंस लॉक करता है। देखा गया है कि भूलवश कुछ स्कूल अटेंडेंस लॉक करना भूल जाते है और पूरे स्टाफ का वेतन रुक जाता है। ऐसे में लेखाधिकारी कार्यालय को अधिकार मिले की वेतन लॉक करने से पूर्व छुटे हुए शिक्षकों से आवेदन लेकर वेतन लॉक कर सकें। जिससे शिक्षको को परेशानी न हो।
क्लास में पढ़ाने के बजाय पोर्टल में उलझे गुरु जी! सरकारी स्कूलों में 33 से अधिक ऐप-पोर्टल पर डेटा फीडिंग का बोझ
शिक्षकों के फोन में 33 ऐप! बच्चों को पढ़ाएं या सूचना दें? बच्चों की उपस्थिति से लेकर हर गतिविधि के लिए अलग-अलग ऐप
शिक्षक कहते हैं कि मोबाइल पर सूचनाएं दें तो अभिभावक लगाते हैं आरोप
कहते हैं पढ़ाते नहीं, दिनभर चलाते हैं मोबाइल, न दें तो अफसर नाराज
प्रयागराज। परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों के लिए स्मार्टफोन जी का जंजाल बन गया है। पढ़ाई-लिखाई और प्रशिक्षण से लेकर तरह-तरह की सूचनाएं देने का इस कदर दबाव है कि एक शिक्षक के स्मार्टफोन पर औसतन तीन दर्जन तक मोबाइल एप मिल जाएंगे। इन पर उपस्थिति दर्ज करने से लेकर, मिड-डे-मील वितरण, ऑनलाइन रिपोर्टिंग, छात्र मूल्यांकन और दैनिक गतिविधियों की निगरानी तक की सूचना देना अनिवार्य है।
स्कूल टाइम के अलावा शिक्षक घर पर भी घंटों ऑनलाइन सूचनाएं देने में ही बिता देते हैं। शिक्षकों का कहना है कि इतना अधिक डिजिटल काम का दबाव में उनकी मुख्य जिम्मेदारी पढ़ाने से ध्यान भटका रहा है। हर काम के लिए अलग-अलग एप से सूचनाएं भरने में काफी समय लग जाता है और तकनीकी समस्याओं के कारण भी दिक्कत होती है क्योंकि वह तकनीकी रूप से इतने दक्ष नहीं हैं।
एप के अलावा व्हाट्सएप पर बेसिक शिक्षा विभाग के कई ग्रुप भी बने हैं जिन पर शिक्षकों से जवाब तलब और सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। यही नहीं यू-डाइस पोर्टल पर जो बच्चे आठवीं पास कर चुके हैं उनको ड्रॉपबॉक्स में डालकर यह भी पता करना शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि उसने कक्षा नौ में किस स्कूल में प्रवेश लिया है। यह पता चलने पर उस स्कूल से संपर्क कर उनसे बच्चों को इंपोर्ट करने के लिए कहना पड़ता है।
मोबाइल पर सूचनाएं देने बैठें तो अभिभावकों कहते हैं कि शिक्षक कक्षा में पढ़ाने के बजाय मोबाइल पर समय बिताते हैं। अगर शिक्षक सूचनाएं नहीं देते, तो विभागीय अधिकारी कार्रवाई की धमकी देने लगते हैं। प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि हमें खुद नहीं पता कि कितने एप चल रहे हैं। पढ़ाने के लिए हमें समय चाहिए लेकिन एप पर सूचनाएं देने में ही काफी समय निकल जाता है। सरकार को चाहिए हमसे केवल पढ़ाई कराएं और ऑनलाइन काम करवाने के लिए कंप्यूटर ऑपरेटर की नियुक्ति कर दी जाए।
स्मार्टफोन पर हैं इतने ऐप
प्रेरणा, प्रेरणा डीबीटी, दीक्षा, रीड अलांग, निपुण प्लस, शारदा, उल्लास, समर्थ, यू-डाइस, आई गॉट कर्मयोगी, निपुण टीचर, एम आधार, हरितिमा, इको क्लब, ज्ञान समीक्षा, स्विफ्ट चैट, परख, किताब वितरण, गूगल मीटख, इंस्पायर, एसएचवीआर, फिट इंडिया, एसजीपी, उमंग, पीएफएमएस, एफएसएसएआई, एनआईएलपी, ई-कवच, एनबीएमसी, जूम, उपस्थिति के लिए प्रेरणा पोर्टल, मानव संपदा आदि।
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