ड्रापबाक्स में अटका 5.74 लाख बच्चों का डाटा, 31 अक्टूबर तक यूडायस पोर्टल पर ड्रापबाक्स खाली करने का परिषदीय स्कूलों पर पड़ रहा दबाव
बोर्ड परीक्षा के रजिस्ट्रेशन के समय परमानेंट एजुकेशन नंबर नहीं होने से हो सकती परेशानी
लखनऊ : सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा एक से सातवीं तक के 5,74,132 बच्चों का डाटा यू-डायस पोर्टल के ड्रापबाक्स में फंसा हुआ है। पोर्टल पर छात्रों का पूरा रिकार्ड नाम, जन्मतिथि, आधार नंबर और कक्षा की जानकारी दर्ज की जाती है। किसी बच्चे का रिकार्ड तब तक ड्रापबाक्स में रहता है, जब तक उसका डाटा अगले स्कूल में इंपोर्ट (स्थानांतरण) नहीं हो जाता। ऐसे बच्चे जब नौवीं कक्षा में जाएंगे तो बोर्ड परीक्षा के रजिस्ट्रेशन के समय परमानेंट एजुकेशन नंबर नहीं होने से परेशानी हो सकती है।
फिलहाल बड़ी संख्या में बच्चों का डाटा इंपोर्ट नहीं हो पाया है। कई बच्चे पांचवीं या आठवीं पास करने के बाद अपने परिवार के साथ राज्य से बाहर चले गए हैं, जिससे उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा। कुछ बच्चों ने गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों में दाखिला ले लिया है, जिनका डाटा सिस्टम में ट्रांसफर नहीं हो सकता।
परिषदीय स्कूल के प्रधानाध्यापकों - का कहना है कि ड्रापबाक्स खाली कराने का दबाव बेसिक शिक्षा अधिकारियों की ओर से डाला जा रहा है, जबकि कई मामलों में छात्रों की जन्मतिथि, आधार कार्ड और ट्रांसफर सर्टिफिकेट (टीसी) में अंतर है। कुछ के नाम आधार और यू-डायस पोर्टल पर अलग अलग दर्ज हैं, जिससे सिस्टम डाटा स्वीकार नहीं कर रहा। जिन बच्चों का जन्म प्रमाणपत्र या आधार कार्ड नहीं है, उन्हें कुछ स्कूलों ने अस्थायी रूप से '9999' डालकर पंजीकृत किया है।
ग्रामीण इलाकों में स्थिति और गंभीर है। कुछ स्कूल आरटीई (शिक्षा के अधिकार) 2009 के नियमों का उल्लंघन करते हुए कक्षा पांच या आठ पास बच्चों को फिर से निचली कक्षा में दाखिला दे रहे हैं, जिससे भी डाटा ट्रांसफर नहीं हो पा रहा।
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ड्रापबाक्स में डाटा फंसे होने का मतलब यह नहीं है कि बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, बल्कि सिर्फ उनका परमानेंट एजुकेशन नंबर (पेन) नए स्कूल में ट्रांसफर नहीं हो पाया है। एक स्कूल से दूसरे स्कूल में जाने वाले बच्चों का डाटा स्थानांतरित करने की जिम्मेदारी प्रधानाध्यापक की है। अगर किसी बच्चे ने पांचवीं पास करने के बाद निचली कक्षा में प्रवेश ले लिया है, तो संबंधित स्कूल के प्रधानाध्यापक फार्म भरकर इसे ठीक कर सकते हैं। सभी जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों को 31 अक्टूबर तक समीक्षा कर गलत प्रविष्टियों को सुधारने के निर्देश दिए गए हैं
जानिए! ड्रॉप बॉक्स में बच्चों की संख्या में वृद्धि के कारण, यू-डायस पर प्रदर्शित ड्राप आउट वाले बच्चों की संख्या से जिम्मेदारों की चिंता बढ़ी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी 5,74,132 लाख बच्चे स्कूलों से दूर हैं। यू-डायस पर प्रदर्शित ड्राप आउट वाले इन बच्चों की संख्या जिम्मेदारों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। ड्राप बॉक्स में बच्चों की संख्या में इजाफा का सबसे बड़ा कारण जटिल नियम मने जा रहे हैं। कहीं आधार व यू डायस पर बच्चों के नाम मैच नहीं हैं, तो कहीं जन्मतिथि समेत अन्य गड़बड़ियों से मामला फंसा हुआ है। हजारों ऐसे बच्चें हैं जिन्होंने
कक्षा पांच पास करने के बाद गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों या मदरसों में अपना नाम लिखा लिया, यह भी एक कारण बताया जा रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि हजारों बच्चे कक्षा 5 या 8 पास करने के बाद स्कूलों से टीसी लेकर राज्य से बाहर चले गए और उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। ऐसे में इन बच्चों को इम्पोर्ट करवाया जाना संभव नहीं है और इनके नाम भी ड्रॉप बॉक्स में पड़े हैं। इसी प्रकार ड्रॉप बॉक्स में कुछ ऐसे भी बच्चे हैं, जिनके यू-डायस पोर्टल पर जन्म तिथि आधार के अनुसार है और टीसी में अलग है।
ड्रॉप बॉक्स में बच्चों की संख्या में वृद्धि के कारण
बेसिक स्कूलों अभी भी लाखों बच्चों के पास आधार न होना
विद्यालय व विभाग के पास आधार बनाने का विशेष अधिकार न होना
माध्यमिक स्कूलों द्वारा अपने यहां नामांकित बच्चों का इंपोर्ट न करना
गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों पर शिकंजा न कसा जाना
गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में अपना नामांकन कराना
परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति को लेकर बड़ी समस्या सामने आई है। विभागीय जांच में पाया गया कि विभिन्न स्कूलों के ड्राप बाक्स में लाखों बच्चे हैं। ड्राप बाक्स का अर्थ है कि आनलाइन सिस्टम के जरिए छात्र रिकार्ड प्रबंधन। विशेष रूप से विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों को ट्रैक करने के लिए यू डावस प्लस पोर्टल जैसे सिस्टम में इसका उपयोग होता है। लापता बच्चों का कोई विवरण यू डायस पोर्टल पर अभी तक नहीं है। बेसिक शिक्षकों पर इन बच्चों की तलाश का दबाव है और इस दबाव के चक्कर में स्कूलों की पढ़ाई चौपट है।
विभागीय रिपोर्ट के अनुसार, लापता बच्चों की संख्या बढ़ने के कई कारण हैं, पहला पारिवारिक स्थिति ठीक न होने की वजह से बहुत से बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। दूसरा कुछ बच्चे दूसरे स्कूलों में चले गए लेकिन उनके दूसरे विद्यालय में जाने संबंधी विवरण नहीं दर्ज किया गया। तीसरी वजह निजी स्कूलों में प्रवेश के बाद भी बच्चों का नाम सरकारी अभिलेखों से नहीं हटाया गया। इसके अतिरिक्त निर्देशों के बावजूद स्कूलों द्वारा बच्चों के नाम अपडेट या हटाने का कार्य समय से नहीं किया गया।
ड्राप बाक्स में कक्षावार बच्चों की संख्या देखें तो सबसे अधिक आठवीं कक्षा में विद्यार्थी है। खास यह कि काफी विद्यार्थी अब भी पुरानी कक्षा में है। उनको यू डायस पर कक्षोन्नति नहीं किया गया है।
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