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Friday, December 19, 2025

सेवानिवृत्ति के बाद 33 वर्ष पुरानी नियुक्ति की वैधता पर सवाल उठाना मनमानापन, हाईकोर्ट ने की विद्यालय प्रबंधन की अपील खारिज, कर्मचारी को सेवानिवृत्ति लाभों समेत सभी बकाया ब्याज भुगतान का आदेश

सेवानिवृत्ति के बाद 33 वर्ष पुरानी नियुक्ति की वैधता पर सवाल उठाना मनमानापन, हाईकोर्ट ने की विद्यालय प्रबंधन की अपील खारिज, कर्मचारी को सेवानिवृत्ति लाभों समेत सभी बकाया ब्याज भुगतान का आदेश


प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद दशकों पुरानी नियुक्ति की वैधता को चुनौती देना या उसे रद्द करना प्रशासनिक विफलता ही नहीं, बल्कि गैरकानूनी और मनमानापन भी है। इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति अजित कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद इंटर कॉलेज कुशीनगर की प्रबंध समिति की विशेष अपील खारिज कर सेवानिवृत्त शिक्षक शंभू राव की अपील स्वीकार कर ली।


कर्मचारी की ओर से अधिवक्ता केके राव व प्रबंधन की ओर से अधिवक्ता गिरजेश तिवारी ने पक्ष रखा। कोर्ट ने कहा कि नियोक्ता और कर्मचारी का संबंध सेवानिवृत्ति के साथ ही समाप्त हो जाता है। धोखाधड़ी या जालसाजी के पुख्ता सबूतों के बिना वर्षों बाद पुरानी फाइलों को फिर से खोलना उचित नहीं है। शंभू राव की नियुक्ति 1989 में सहायक शिक्षक के रूप में हुई थी और वे 2022 में सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्ति के ठीक बाद शिक्षा विभाग ने उनकी शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए 1989 में दी गई नियुक्ति की स्वीकृति को वापस ले लिया था। इस कार्रवाई को अदालत ने अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया। क्योंकि, विभाग यह साबित करने में विफल रहा कि कर्मचारी ने कोई दस्तावेज फर्जी तरीके से प्रस्तुत किए थे।

 हालांकि, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यदि योग्यता को लेकर कोई संदेह था तो उसकी जांच नियुक्ति के समय ही की जानी चाहिए थी। 33 वर्षों की निरंतर सेवा और सरकारी खजाने से वेतन प्राप्त करने के बाद अंतिम समय में ऐसे कदम उठाना प्रशासनिक स्थिरता के सिद्धांतों के विरुद्ध है। इसी के साथ अदालत ने प्रबंधन की ओर से दाखिल अपील खारिज कर दी।

इसके अतिरिक्त अदालत ने सेवानिवृत्ति बकाया के भुगतान में देरी पर कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने पाया गया कि कर्मचारी को उसके जीपीएफ, पेंशन और अन्य देय राशि के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और अवमानना याचिका दायर करने के बाद ही भुगतान किया गया। अदालत ने कहा वेतन और पेंशन कर्मचारी का कानूनी अधिकार है। इसमें देरी होने पर उसे उचित ब्याज मिलना चाहिए। लिहाजा, कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि शंभू राव को उनके सभी सेवानिवृत्ति लाभों पर देय तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक छह प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया जाए।

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