स्थानांतरण प्रमाणपत्र से तय नहीं की जा सकती उम्र : हाईकोर्ट
कोर्ट ने कन्नौज की बाल कल्याण समिति का आदेश किया रद्द
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि स्कूल का स्थानांतरण प्रमाणपत्र (टीसी) जन्म प्रमाणपत्र नहीं है। इसके आधार पर किसी की उम्र तय नहीं की जा सकती। इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति जफीर अहमद की खंडपीठ ने कन्नौज की बाल कल्याण समिति की ओर से टीसी के आधार पर बालिग पीड़िता को बाल गृह (बालिका) भेजे जाने वाले आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही उसे तत्काल रिहा करते हुए उसकी स्वतंत्र इच्छा से जाने देने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जेजे एक्ट की धारा-94 के तहत टीसी जन्म प्रमाणपत्र के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करता। इसे जन्म प्रमाणपत्र नहीं माना जा सकता। मामला ऐसे दंपती से जुड़ा है, जिन्होंने 2023 में शादी की थी। पीड़िता ने कोर्ट में स्पष्ट कहा कि वह 19 वर्ष की है।
मेडिकल जांच व आधार कार्ड के आधार पर भी वह बालिग है। इसके बावजूद बाल कल्याण समिति ने स्कूल के टीसी के आधार पर उसे नाबालिग मानते हुए कानपुर नगर स्थित सरकारी बालगृह भेज दिया।
इसके खिलाफ पीड़िता और उसके पति ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर रिहाई की मांग की। वहीं, याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार के अधिवक्ता ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई। कहा, बाल कल्याण समिति न्यायिक शक्तियों वाला प्राधिकरण है। इसके खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने राज्य की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। कहा कि अगर हिरासत में भेजे जाने का आदेश अधिकार क्षेत्र के बाहर पारित हुआ है तो हाईकोर्ट को याचिका सुनने का पूरा अधिकार है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय है। कोर्ट ने पाया कि बाल कल्याण समिति ने न तो स्कूल रिकॉर्ड की प्रामाणिकता की जांच की, न प्रधानाचार्य का बयान लिया और न ही दस्तावेज को कानूनी प्रकिया के मुताबिक सिद्ध कराया।
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