खंड शिक्षा अधिकारियों (BEO) की पदोन्नति प्रक्रिया शुरू होते ही नया विवाद खड़ा, राजकीय शिक्षक संघ ने आपत्ति जताते हुए प्रक्रिया को तत्काल रोकने की रखी मांग
राजकीय शिक्षक संघ ने अपर प्रमुख सचिव माध्यमिक को लिखा पत्र, कहा- यह पदोन्नति नियम के विपरीत, लगे रोक
समूह ख में खंड शिक्षा अधिकारियों की पदोन्नति पर जताई आपत्ति
लखनऊ। माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा समूह ख के पदों पर खंड शिक्षा अधिकारियों (बीईओ) की पदोन्नति शुरू किए जाने पर नया विवाद खड़ा हो गया है। राजकीय शिक्षक संघ ने इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताते हुए विभाग के अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा को पत्र लिखा है। संघ ने मांग की है कि इस पदोन्नति प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए, क्योंकि यह मौजूदा सेवा नियमों और सांविधानिक प्रावधानों के विपरीत है।
विवाद की जड़ माध्यमिक शिक्षा निदेशक की ओर से 4 दिसंबर को जारी एक पत्र है, जिसमें शैक्षिक सामान्य शिक्षा संवर्ग समूह ख (उच्चतर) के पद पर पदोन्नति के लिए खंड शिक्षा अधिकारियों की गोपनीय आख्या (एसीआर) मांगी गई थी। अपर शिक्षा निदेशक सुरेंद्र कुमार तिवारी के हस्ताक्षर से जारी इस पत्र के बाद संघ ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय महामंत्री अरुण यादव और प्रांतीय संरक्षक रामेश्वर पांडेय ने तर्क दिया कि दो अलग-अलग नियुक्ति स्त्रोत और भिन्न ग्रेड पे वाले कर्मचारियों की पदोन्नति एक साथ करना पूरी तरह से विधि विरुद्ध है। संघ ने आरोप लगाया कि कुछ अधिकारियों ने भ्रष्टाचार के माध्यम से पूर्व पदोन्नति कोटा को असांविधानिक रूप से संशोधित कराया है। संघ ने पुरजोर मांग की है कि जब तक उच्च न्यायालय में दाखिल वाद का निर्णय नहीं आ जाता, तब तक इस पूरी पदोन्नति प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए।
संघ के मुख्य तर्क
अलग-अलग विभाग और ग्रेड पे :
खंड शिक्षा अधिकारी बेसिक शिक्षा विभाग के कर्मचारी हैं, जिनका ग्रेड पे 4800 है। वहीं, प्रधानाध्यापक/प्रधानाध्यापिका माध्यमिक शिक्षा विभाग के कर्मचारी हैं, जिनका ग्रेड पे 5400 है।
सेवा नियमावली का उल्लंघन :
प्रधानाध्यापक के पद 100% माध्यमिक शिक्षा के सहायक अध्यापक और प्रवक्ताओं की पदोन्नति से ही भरे जाते हैं। बेसिक शिक्षा के कर्मचारियों का माध्यमिक शिक्षा के पदों पर पदोन्नति पाना सेवा नियमावली के विरुद्ध है।
न्यायालय में विचाराधीन मामला :
संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला पहले से ही उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। ऐसे में अंतिम निर्णय आने से पहले पदोन्नति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना सीधे तौर पर न्यायालय के आदेश की अवमानना होगी।
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