बढ़े मानदेय की आस में अधेड़ हुए शिक्षामित्र, मानदेय बढ़ाने की मांग, छुट्टियों का नहीं मिलता मानदेय
करीब 25 साल पहले शिक्षा मित्र के रूप में भर्ती हुए, बाद में शासनादेश जारी कर इन्हें सहायक शिक्षक बनाया गया। अच्छा वेतन मिलना शुरू हो गया लेकिन हाईकोर्ट ने इन सहायक शिक्षकों को वापस शिक्षा मित्र बना दिया। तत्कालीन सरकार सुप्रीम कोर्ट भी गई लेकिन उच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी।
1 लाख 42 हजार शिक्षा मित्र मात्र दस हजार रुपये के मानदेय पर प्राथमिक विद्यालय में नौनिहालों का भविष्य संवार रहे है। बच्चों का भविष्य सेवारते-संवारते इनका वर्तमान अंधकार मय हो गया है। परिवार की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहे। अपने बच्चों की शिक्षा, मेडिकल, माता-पिता की देखभाल, घर का किराया ऐसी न जाने कितनी मूलभूत जरूरते हैं जिन्हें पूरा करने के लिए शिक्षा मित्र बढ़े हुए मानदेय का इंतजार कर रहे हैं।
प्राइमरी स्कूलों के चच्चों का भविष्य संवार रहे शिक्षामित्रों का भविष्य अधर में हैं। प्रदेश के 1.42 लाख शिक्षामित्र आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं 125 वर्ष पहले सेवा में आए शिक्षामित्र मानदेय कहने की आस में अधेड़ हो गए हैं। 10 हजार रुपये मानदेय में अपने बच्चों की पढ़ाई, परिचारका चालन पोषण च इलाज का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं। ब्लडप्रेसर डायटीन समेत दुसरी बीमारियों से पीड़ित हैं। इस मानदेय में ठीक से इल्कज तक नहीं करा पा रहे हैं।
सहायक शिक्षक बनने के चाट से दोबारा बनाए गार शिक्षामित्र सरकार से मानदेय बढ़ाने की बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं। शिक्षामित्र मानदेव चढ़ोतरी के लिये धरना प्रदर्शन त मिभागीय मंत्री और अफसरों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन मानदेय नहीं बढ़ा। अब इन्हें उस पल का सबसे इंतजार है। शासनदेश के बचाव नूद शिक्षामित्रों को मृत विद्यालय नहीं भया गया है। शिक्षामित्र इतने कम मानदेय पर 20 से 50 किमी. दूर पढ़ाने नहाने के लिय सनपुर है।
1999 में भर्ती हुए शिक्षामित्र प्रदेश सरकार ने वर्ष 1999 में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिये 2250 प्रति माह के मानदेय पर शिक्षामित्र भर्ती किये। वर्ष 2009 तक प्रदेश में 1.72 शिक्षामित्र सेला में लिये गए। वर्ष 2014 में तत्कालीन सपा सरकार ने शिक्षामित्रों का सहायक शिक्षक के पद समायोजन का शासनादेश जारी किया।
प्रदेश भर के 1.37 शिक्षामित्र की प्रतिक्षण देकर सहायक शिक्षक के पद पर समायोजित किया। इन्हें शिक्षकों के समान। समान वेतन और अन्य सुविधाएं मिलनेल एक वर्ष 2015 में हाईकोर्ट शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक लगा दी। सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया। हालांकि कोर्ट ने सरकार को शिक्षकों की खुली भर्ती के जरिये लम्बे समय से सेवाएं देशी शिक्षामित्रों की सेवा अवधि के अनुसार तम अंक के भरांक के साथ पथन करने करने के निर्देश जारी किये। दो अलग-अलग शिक्षक भर्ती में करीब 15 हजार शिक्षामित्र ती शिक्षक बन पाए। बाकी शिक्षामित्र के पद पर कार्य कर रहे हैं।
लखनऊमें 1925 शिक्षामित्र दे रहे संचाएं लखनऊ के अलग-अलग प्राइमरी स्कूलों में 1925 शिलमित्र सेवाएं दे रहे हैं। नई स्कूल शिक्षामित्रों के भरोसे यत यो हैं। बच्चों को पढ़ाने से लेकर सारे काम निपटा रहे हैं। स्कूलों में परीक्ष अन्य महत्वपूर्ण काम आने पर महिला शिक्षक सीसीएल व मेडिकत अवकाश लेकर घर बैठ नाती हैं। स्कूल में परीक्षा से लेकर अन्य कामों की जिम्मेदारी शिक्षामित्रों पर आ जाती है। फिर भी शिक्षामित्र बिना छुट्टी लिपे जिम्मेदारी निभा रहे हैं लेकिन इनके मानदेय बढ़ाने पर विभागीय अधिकारियों से लेकर सरकार चुप्पी साधे हुए है।
छुट्टियों का नहीं देते मानदेय
शिक्षामित्रों का कहना है कि इन्हें सिर्फ 11 माह का मानदेय मिलता है। 14 जनवरी के बीच शीतकालीन और जून में ७ दिन गर्मियों की छुट्टियां होती है। इन छुट्टियों का मानदेय शिक्षामित्रों को नहीं मिलता है। जबकि शिक्षकों को इन दिनों का वेतन दिया जाता है। इतने कम मानदेय में दो महीने 15-15 दिन का मानेदय काटने पर सिर्फ चांच-पाच हजार रुपये मिलता है। इसमें पूरे महीने घर का राशन तक नहीं आता है। सरकार को चाहिए कि कस्तूरबा गाभी आवासीय बालिका विद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों की तरह 11 नाह 29 दिन वा मानेवव है। मानदेय भी बढ़ाया जाए। इतने कम मानदेय में जीवन यापन करना बहुत मुश्किल ही सहा है।
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