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Monday, September 1, 2025

केंद्रीय विद्यालयों में सीटीईटी अनिवार्य, एलटी भर्ती में छूट, प्रतियोगी पहुंचे हाईकोर्ट, राजकीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक भर्ती में टीईटी से छूट पर विवाद बढ़ा

केंद्रीय विद्यालयों में सीटीईटी अनिवार्य, एलटी भर्ती में छूट, प्रतियोगी पहुंचे हाईकोर्ट, राजकीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक भर्ती में टीईटी से छूट पर विवाद बढ़ा


कोर्ट ने पूछा, भर्ती नौ-दस के लिए या छह से आठ भी पढ़वाएंगे 


प्रयागराज । राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की गाइडलाइन के अनुसार सहायक अध्यापक भर्ती के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में एलटी ग्रेड (सहायक अध्यापक) भर्ती में टीईटी से छूट देने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है।

इस मामले में अभ्यर्थियों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने माध्यमिक शिक्षा विभाग के अफसरों से सवाल किया है कि एलटी ग्रेड शिक्षकों से केवल कक्षा नी और दस के बच्चों को पढ़वाएंगे या फिर ये शिक्षक कक्षा छह से आठ तक के विद्यार्थियों को भी पढ़ाएंगे।   


एनसीटीई की गाइडलाइन जारी होने के बाद केंद्रीय विद्यालय संगठन ने टीजीटी (सहायक अध्यापक) भर्ती के लिए उच्च प्राथमिक स्तर की केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) को अनिवार्य कर दिया था क्योंकि टीजीटी शिक्षक ही कक्षा छह से आठ तक के बच्चों को भी पढ़ाते हैं। हालांकि यूपी के माध्यमिक शिक्षा विभाग के अफसरों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। 2018 में जब उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने एलटी ग्रेड भर्ती जारी की थी तो उस समय भी टीईटी अनिवार्य किए जाने का मामला उठा था लेकिन तब अफसरों ने हाईकोर्ट में यह कहकर मामला रफा-दफा कर दिया था कि एलटी ग्रेड शिक्षकों से कक्षा छह से आठ तक के बच्चों को नहीं पढ़वाया जाएगा।

जबकि हकीकत इसके उलट है। राजकीय विद्यालयों में छह से 12 तक की कक्षाएं संचालित होती हैं। प्रवक्ता कक्षा 11 और 12 के बच्चों को पढ़ाते हैं और एलटी ग्रेड शिक्षक कक्षा छह से दस तक की कक्षाएं लेते हैं। यही कारण है कि हाईकोर्ट में याचिका करने वाले अभ्यर्थियों ने यह मुद्दा उठाया है कि लोक सेवा आयोग की ओर से 28 जुलाई को जारी विज्ञापन में यह स्पष्ट नहीं है कि भर्ती केवल कक्षा नौ-दस के शिक्षकों के लिए है या फिर कक्षा 6-8 के लिए भी है। हाईकोर्ट ने 26 अगस्त को प्रमुख सचिव (माध्यमिक शिक्षा) को निर्देशित किया है कि वे इस विषय पर दो हफ्तों में काउंटर एफिडेविट दाखिल करें। इस मामले की अगली सुनवाई 11 सितम्बर को होगी

मांग : शिक्षामित्र से शिक्षक बनने वालों को भी मिले पुरानी पेंशन, 38 जिलों में अभी भी नहीं जारी हुआ आदेश

मांग : शिक्षामित्र से शिक्षक बनने वालों को भी मिले पुरानी पेंशन, 38 जिलों में अभी भी नहीं जारी हुआ आदेश


लखनऊ। परिषदीय विद्यालयों में 28 मार्च 2005 से पूर्व जिन शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी, जो शासन के विभिन्न शासनादेश का अनुपालन करते हुए समय समय पर हुई विभिन्न शिक्षक भर्तियों से शिक्षक बन गए है। उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ ने इन सभी की पूर्व सेवा (शिक्षामित्र) को जोड़ते हुए पुरानी पेंशन देने की मांग की है।


यह मांग रविवार को संघ की लखनऊ में हुई प्रांतीय कोर कमेटी की बैठक में उठाई गई। संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा की प्रदेश के 37 से अधिक जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा आवेदन के लिए आदेश तो जारी किए गए, लेकिन शासन से स्पष्ट आदेश नहीं होने से शेष 38 बीएसए आदेश नहीं जारी कर रहे हैं।

उन्होंने कहा की प्रदेश के 1.48 लाख शिक्षामित्रों को पुनः नई नियमावली बनाकर शिक्षक का स्थाई दर्जा दिया जाए। बैठक में प्रदेश उपाध्यक्ष एकसाद अली, धर्मेंद्र यादव, रश्मिकान्त द्विवेदी, सचिव फारुख अहमद, श्याम शंकर यादव, आदि उपस्थित थे। 

यूपी : हाईकोर्ट ने NEET-2025 के तहत दाखिले में निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण का शासनादेश किया निरस्त, अंबेडकरनगर, कन्नौज, सहारनपुर और जालौन मेडिकल कॉलेज के प्रवेश रद्द

यूपी : एमबीबीएस में 23 की जगह 78% दे दिया था एससी-एसटी को आरक्षण, पिछड़ों को 13 तो सामान्य के हिस्से आई सिर्फ नौ फीसदी सीटें


लखनऊ। प्रदेश में 4 राजकीय मेडिकल कॉलेज कन्नौज, अंबेडकर नगर, जालौन और सहारनपुर में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को 23 के बजाय 78 फीसदी आरक्षण दिया गया है। अति पिछड़े वर्ग को 13 फीसदी और सामान्य का हिस्सा सिर्फ नौ फीसदी है। निर्बल आय वर्ग (ईडब्ल्यूएस) का कोटा नहीं लागू है। ऐसे में हाईकोर्ट ने नीट 2025 की काउंसिलिंग रद्द करने का आदेश दिया है। हालांकि अब चिकित्सा शिक्षा विभाग दोबारा अपील की तैयारी में जुटा है।

प्रदेश में अनुसूचित जाति को 21, जनजाति को 2, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था है। मेडिकल कॉलेजों का निर्माण अलग अलग समय पर हुआ है। कन्नौज, अंबेडकर नगर, जालौन और सहारनपुर स्थित मेडिकल कॉलेज के निर्माण के वक्त समाज कल्याण विभाग की ओर से स्पेशल कंपोनेंट के तहत 70 फीसदी बजट दिया गया। जबकि 30 फीसदी बजट सामान्य था। उस वक्त इस बजट से हॉस्टल, प्रेक्षागृह सहित अन्य संसाधनों का निर्माण कराया गया। हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में बताया गया कि इन कॉलेजों के दाखिला लेने वाले छात्रों में हॉस्टल में 70 फीसदी अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों को आरक्षण दिया जाना था, लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से इसकी गलत व्याख्या की गई।

एमबीबीएस की सीटों पर अनुसूचित जाति के 21 फीसदी और जनजाति के दो फीसदी को मिलाकर कुल 23 फीसदी की जगह 78 फीसदी आरक्षण दे दिया गया। यह व्यवस्था कई साल से चल रही है। इस वर्ष की काउंसिलिंग में भी इसी व्यवस्था के तहत सीटों आवंटित की गई हैं। ऐसे में हाईकोर्ट ने काउंसिलिंग ही रद्द कर दिया है। 



यूपी : हाईकोर्ट ने NEET-2025 के तहत दाखिले में निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण का शासनादेश किया निरस्त, अंबेडकरनगर, कन्नौज, सहारनपुर और जालौन मेडिकल कॉलेज के प्रवेश रद्द

50 फीसदी आरक्षण सीमा नहीं लांघ सकते – हाईकोर्ट 


लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने नीट- 2025 परीक्षा के तहत कन्नौज, सहारनपुर, अंबेडकरनगर और जालौन के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की सीटों को नए सिरे से भरने का आदेश दिया है। साथ ही यूपी सरकार के विशेष आरक्षण शासनादेश को निरस्त करते हुए राज्य सरकार को आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत दाखिला देने को कहा है। अदालत में मेडिकल कॉलेजों की सीटें भरने के लिए निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण देने के शासनादेशों को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने यह फैसला नीट-2025 की अभ्यर्थी सबरा अहमद की याचिका पर दिया है। याची ने अंबेडकरनगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आरक्षण की स्वीकृत सीमा का मुद्दा उठाकर चुनौती दी थी। याची का कहना था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी अभ्यर्थियों को शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिए आरक्षण अधिनियम 2006 बनाया था। इस अधिनियम के तहत मेडिकल कॉलेजों में हुए दाखिलों में अधिनियम में दी गई आरक्षण की निर्धारित सीमा 50 फीसदी का उल्लंघन करके सीटें भरी गई। यानी शासनादेश जारी कर 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिया गया। यह कानून की मंशा के खिलाफ था। वहीं, राज्य सरकार की ओर से याचिका का विरोध किया गया। 



अदालत ने कहा- राज्य सरकार का आदेश आरक्षण अधिनियम के खिलाफ : 
कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की सीमा तय करने वाला राज्य सरकार का आदेश साफ तौर पर आरक्षण अधिनियम 2006 के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि सरकार आरक्षण की तय सीमा 50 फीसदी के नियम का बगैर किसी कानूनी प्राधिकार के उल्लंघन नहीं कर सकती। ऐसे में इन शासनादेशों को तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने आरक्षण सीमा का उल्लंघन करने वाले 2010 से 2015 के बीच जारी छह शासनादेशों को रद्द कर दिया।

आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत नए सिरे से भरी जाएंगी सीटें अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि इन चारों मेडिकल कॉलेजों की सीटें आरक्षण अधिनियम 2006 के अनुसार भरी जाएं। सीटें भरने की सूचना पर कोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत इन सीटों को नए सिरे से भरने की कार्यवाही करने का निर्देश दिया। 


चारों कॉलेजों की 340 सीटें होंगी प्रभावित 
हाईकोर्ट के आदेश के बाद चारों कॉलेजों की 340 सीटों के दाखिले प्रभावित हो सकते हैं। हर कॉलेज में कुल 85 सीटें हैं। इनमें सात जनरल वर्ग के लिए, एससी वर्ग के लिए 62, एसटी वर्ग के लिए 5 व ओबीसी वर्ग के लिए 11 सीटें हैं।


दूसरे चरण की काउंसिलिंग में सीटों का वितरण बदलेगा चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय ने देर रात अपनी वेबसाइट पर हाईकोर्ट के फैसले की जानकारी दी है। यह भी कहा है कि दूसरे चरण की सीट मैट्रिक्स बदल सकती है। इस बारे में जल्द ही वेबसाइट पर सूचना दी जाएगी।


प्रदेश के सभी कॉलेजों पर पड़ सकता है असर
लखनऊ। प्रदेश में आठ अगस्त से शुरू हुई पहले चरण की काउंसिलिंग 28 अगस्त को पूरी हो चुकी है। दूसरे चरण की प्रकिया शुरू हो गई है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों की आरक्षित श्रेणी की सीटें प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में कुछ छात्रों के कॉलेज आवंटन प्रभावित होंगे।