शिक्षण संस्थानों में आत्महत्याएं रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बनाई राष्ट्रीय टास्क फोर्स
कहा-प्रदर्शन का दबाव, अत्यधिक प्रतिस्पर्धा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर डाल रही बोझ
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च शिक्षण संस्थानों में बढ़ती आत्महत्याओं को रोकने के लिए राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि स्कोर आधारित शिक्षा प्रणाली और सीमित सीटों के लिए अत्यधिक मानसिक स्वास्थ्य पर भयानक बोझ डालते हैं। आत्महत्याएं बढ़ना परिसरों में ऐसे मुद्दों को संबोधित करने में कानूनी और संस्थागत ढांचे की अपर्याप्तता और अप्रभाविता की ओर इशारा करती हैं।
जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने और ऐसे संस्थानों में आत्महत्याओं को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की अध्यक्षता में राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया। पीठ ने कहा, अब समय आ गया है कि हम इस गंभीर मुद्दे का संज्ञान लें और छात्रों के बीच इस तरह के संकट में योगदान देने वाले अंतर्निहित कारणों को दूर करने और कम करने के लिए व्यापक और प्रभावी दिशा-निर्देश तैयार करें।
टास्क फोर्स में मनोचिकित्सक डॉ. आलोक सरीन, प्रोफेसर मैरी ई जॉन, अरमान अली, प्रोफेसर राजेंद्र काचरू, डॉ. अक्सा शेख, डॉ. सीमा मेहरोत्रा, प्रोफेसर वर्जिनियस जाक्सा, डॉ. निधि एस सभरवाल और वरिष्ठ अधिवक्ता अपर्णा भट्ट भी शामिल होंगे। उच्च शिक्षा विभाग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग, महिला और बाल विकास मंत्रालय और कानूनी मामलों के विभाग के सचिवों को टास्क फोर्स का पदेन सदस्य बनाया गया है।
एफआईआर दर्ज करने का आदेश
पीठ ने दिल्ली पुलिस को आयुष आशना और अनिल कुमार की मौत के मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया, जिन्होंने क्रमशः 8 जुलाई, 2023 और 1 सितंबर, 2023 को आत्महत्या की थी। उनके माता-पिता ने आईआईटी, दिल्ली में जाति-आधारित भेदभाव का आरोप लगाया था। दिल्ली हाईकोर्ट के याचिका पर विचार करने से इन्कार के खिलाफ याचिका को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, भले ही पुलिस का मानना था कि जो आरोप लगाया गया था, उसमें सच्चाई का कोई तत्व नहीं था लेकिन वह एफआईआर दर्ज करने और जांच करने के बाद ही ऐसा कह सकती थी। यही कानून है।
यह अभिभावकों के लिए भी आंखें खोलने वाला
पीठ ने कहा, यह मुकदमा न सिर्फ पुलिस के लिए, बल्कि अभिभावकों के लिए भी आंखें खोलने वाला है। ये त्रासदियां विभिन्न कारकों को संबोधित करने के लिए एक अधिक मजबूत, व्यापक और उत्तरदायी तंत्र की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती हैं, जो कुछ छात्रों को अपनी जान लेने के लिए मजबूर करती हैं। हालांकि, इस संकट को मिटाना मुश्किल है, फिर भी इसे लचीले पाठ्यक्रम, निरंतर मूल्यांकन विधियों, बैकलॉग के प्रबंधन के लिए संरचित समर्थन और छात्रों की ओर से सामना किए जाने वाले मनोवैज्ञानिक मुद्दों के लिए परिसर में समर्थन शुरू करके प्रबंधित किया जा सकता है।
संस्थानों में आत्महत्या महामारी के लिए कई कारक जिम्मेदार
पीठ ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्या महामारी के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें शैक्षणिक दबाव, जाति आधारित भेदभाव, वित्तीय तनाव और यौन उत्पीड़न शामिल हैं, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है। आईआईटी व एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में परीक्षा में असफलता से जुड़ी उच्च दर रिपोर्ट की गई है।
रैगिंग के रूप में क्रूरता भी है अहम वजह
पीठ ने कहा, छात्रों की आत्महत्या का एक अन्य कारण रैगिंग के रूप में क्रूरता है। इसे अक्सर कॉलेज और विश्वविद्यालय अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए छिपाते हैं, जो छात्रों के सम्मान और शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।
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