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Monday, March 31, 2025

साल के अंत में भेज दी ग्रांट, कैसे खर्च करें स्कूल? अब खर्च करने के लिए समय ही नहीं, पूरे साल छोटे-छोटे काम के लिए मोहताज रहे

प्रदेश के बेसिक स्कूलों का हाल, शिक्षक और SMC परेशान

साल के अंत में भेज दी ग्रांट, कैसे खर्च करें स्कूल? अब खर्च करने के लिए समय ही नहीं, पूरे साल छोटे-छोटे काम के लिए मोहताज रहे


लखनऊ के माल ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय हरानापुर में केस कंपोजिट ग्रांट की कुछ राशि फुटकर में आती रही। सालभर 1 में करीब ₹40 हजार फुटकर में भेजे गए। बची हुई ग्रांट करीब एक लाख रुपये अचानक अब मार्च के अंत में भेज दी गई। वित्तीय वर्ष खत्म होने वाला है, तब अलग-अलग मदों में यह राशि भेजी गई।

लखनऊ के काकोरी ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय भरोसा में भी सालभर केस में मामूली ग्रांट आई। विद्यालय प्रबंधन समिति (एसएमसी) को साल भर मामूली कामों के लिए ग्रांट का इंतजार रहा। अब अचानक डेढ़ लाख रुपये की ग्रांट अचानक भेज दी गई है।


लखनऊ ये दो उदाहरण तो केवल बानगी मात्र है। प्रदेशभर में यह हाल सभी स्कूलों का है। ज्यादातर स्कूलों में कुल राशि का एक बड़ा हिस्सा 20 मार्च के बाद भेजा गया है। स्कूलों का नया सत्र और वित्तीय वर्ष दोनों एक अप्रैल से शुरू हो जाते हैं। स्कूलों को 25% कंपोजिट ग्रांट सितंबर में भेजी गई। इसके अलावा खेलकूद, आंगनबाड़ी, एसएमसी प्रशिक्षण, ईको क्लब और आत्मरक्षा प्रशिक्षण सहित कई मदों में राशि भेजी जाती है। इन मदों में भी कुछ का पैसा समय-समय पर भेजा गया। अब बची हुई राशि मार्च में भेज दी गई है। 

प्रदेशभर के सभी स्कूलों में प्रबंधन समिति से जुड़े लोग परेशान हैं कि वे 31 मार्च तक कैसे खर्च करेंगे। उसके बाद यह राशि लैप्स हो जाएगी।


शिक्षक परेशान : शिक्षकों का कहना है है कि मार्च अंत में राशि भेजी गई है। अब यदि कोई काम करवाना है तो उसे चेक दिया जाएगा। वह चेक क्लियर होने में भी वक्त लगेगा। कोई भी काम कराने के लिए भी वक्त चाहिए। ऐसे में 31 मार्च से पहले राशि खर्च करके उपभोग प्रमाण पत्र कैसे दें? 

प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन के अध्यक्ष विनय कुमार सिंह का कहना है कि सालभर स्कूल छोटे-छोटे काम के लिए मोहताज होते हैं। अब अचानक राशि भेजने से वह भी लैप्स हो जाएगी। अफसरों की इसी कार्यशैली से स्कूल बदहाल होते जा रहे हैं। प्राथमिक शिक्षक संघ लखनऊ के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह भी कहते हैं कि पूरे साल में बहुत वक्त होता है। समय पर राशि भेज दी जाए तो स्कूलों में बेहतर काम हो सकेंगे।

पूरा बजट अभी नहीं भेजा गया भेजी गई है। यह राशि 10 दिन में आसानी से खर्च हो जाती। संभावना यह है कि ज्यादातर राशि खर्च भी हो गई होगी। - कंचन वर्मा, महानिदेशक, स्कूल शिक्षा


लेटलतीफी की वजह क्या?

यह पूरा मामला अफसरों की लापरवाही से जुड़ा है। जब अप्रैल में नया सत्र शुरू हो जाता है और प्रदेश सरकार भी सभी विभागों को काफी पहले बजट जारी कर देती है। अब मार्च में बड़े अफसरों पर भी दबाव होता है कि वे इसी वित्तीय वर्ष में बजट खर्च करें। ऐसे में वे अपने ऊपर जिम्मेदारी लेने की बजाय नीचे थोप देते है। वे मार्च अंत में राशि भेजकर कागजी खानापूरी कर लेते हैं। इसका सीधा नुकसान स्कूल और उनमें पढ़ने वाले बच्चों को होता है।



PPA के फेर में फंसे बेसिक शिक्षक, चूके तो अपनी जेब से भरने पड़ रहे रुपए, वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले बजट भेजने से PFMS बन रही मुसीबत का सबब

लखनऊ: बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षकों को प्लानिंग, प्रिपरेशन, असेसमेंट (पीपीए) को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। साल भर तक सरकारी सहायता राशि रोककर रखने वाले विभाग द्वारा मार्च महीने में वित्तीय वर्ष की समाप्ति से महज कुछ दिन पहले धनराशि भेजी जाती है और उसे निर्धारित समय में पीपीए जैसी एक तकनीकी प्रक्रिया द्वारा बैंक के सहयोग से पूरा करना होता है। यह प्रक्रिया टीचरों के लिए मुसीबत का सबब बन जाती है। जिसमें कई बार पीपीए फेल होने पर टीचरों को विकास कार्यों का भुगतान अपनी जेब से करना पड़ जाता है।


मालूम हो कि बीते कुछ वर्षों से सरकार ने बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित विद्यालयों में विद्यालय विकास अनुदान और अन्य खर्चों के भुगतान की नई प्रक्रिया विकसित की है। इस ऑनलाइन प्रक्रिया में सरकारी प्लेटफॉर्म पर जाकर भुगतान के विवरण सहित अप्लाई करना होता है। 


इसके बाद एक पीपीए जेनरेट होता है। इस पीपीए को बैंक में जमा करना होता है। इसके बाद बैंक निर्धारित पार्टियों को भुगतान करता है। पीपीए के जनरेट होने से भुगतान पूरा होने तक की प्रक्रिया में अधिकतम दस दिन का समय मिलता है। इस समय के दौरान यदि पीपीए जेनरेट करने और बैंक से भुगतान करा पाने में सफल नहीं हो पाते हैं तो वित्तीय वर्ष समाप्त हो जाने का कारण बताकर पूरी धनराशि वापस सरकारी खाते में चली जाती है। इसके बाद टीचर के पास हाथ मलने के सिवाय कुछ नहीं रह जाता है। इसके बाद टीचर और विभाग के बीच केवल पत्राचार का दौर चलता है। जिसका परिणाम कुछ नहीं नहीं निकलता।

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