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Wednesday, October 22, 2025

नौ महीने पहले शासनादेश हुआ, नहीं शुरू हुए शिक्षामित्रों के तबादले, पूरा नहीं हो रहा घर के नजदीकी स्कूल में आने का इंतज़ार

शादीशुदा महिला शिक्षामित्रों के तबादले पर फैंस रहा पेंच

नौ महीने पहले शासनादेश हुआ, नहीं शुरू हुए शिक्षामित्रों के तबादले, पूरा नहीं हो रहा घर के नजदीकी स्कूल में आने का इंतज़ार

20 अक्टूबर 2025
लखनऊ : अपने घर के नजदीकी स्कूल में पहुंचने के लिए शिक्षा मित्रों ने पहले आठ साल इंतजार किया। काफी प्रयास के बाद इस साल जनवरी में यह यह शासनादेश भी हो गया कि उनको नजदीकी स्कूलों पहुंचने का एक मौका दिया जाएगा। इसके लिए उनके ट्रांसफर किए जाएंगे। तब से फिर वे इंतजार कर रहे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग ने अब तक तबादला प्रक्रिया शुरू नहीं की है और न इस बाबत कोई नया आदेश जारी किया है।

शिक्षक बने, फिर बन गए शिक्षामित्र
सपा सरकार में प्रदेश के करीब 1.37 लाख शिक्षा मित्रों को शिक्षक बनाया गया था। शिक्षक बनने पर उनको दूसरे ब्लॉक में पोस्टिंग दी गई थी। शिक्षक बनने की खुशी में उन्होंने दूर-दराज के स्कूलों में जाना स्वीकार कर लिया। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उनका बतौर शिक्षक किया गया समायोजन रद कर दिया गया। वे फिर से शिक्षा मित्र बन गए। ऐसे में उनका मानदेय फिर से 10 हजार ही रह गया लेकिन उनकी तैनाती वहीं रह गई जहां वे शिक्षक बन कर गए थे और वे अपने घर से दूर हो गए। बेसिक शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल का कहना है कि कुछ तकनीकी दिक्कतें दूर करके जल्द ही तबादला प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

उम्मीद लगाए हैं 35 हजार शिक्षामित्र
सरकार ने 2018 में शिक्षा मित्रों को अपने मूल विद्यालय में आने का मौका दिया था। ऐसे में करीब एक लाख शिक्षा मित्र तो उस समय वापस आ गए। बाकी करीब 35 हजार शिक्षा मित्र शिक्षक बनने उम्मीद में अपने मूल विद्यालय में नहीं आए। उन्हे उम्मीद थी कि कोर्ट से लेकर सड़क तक लड़ाई लड़ी जा रही है। ऐसे में वे शिक्षक बन सकते है। नए शासनादेश ने उनको मौका दिया है कि वे अपने घर के नजदीकी स्कूल में आ सकते है लेकिन अब तक प्रक्रिया शुरू न होने से निराश है।

कहां आ रही दिक्कत ?
दरअसल, कुछ ऐसी महिला शिक्षा मित्र भी है, जिनकी शादी हो गई है। कुछ की शादी दूसरे जिले में और कुछ की जिले में ही काफी दूर हो गई है। शासनादेश के अनुसार उनको अपनी ससुराल के नजदीकी स्कूल में जाने का मौका भी मिलेगा। सूत्रों के अनुसार इसी को लेकर कुछ पेंच फंस गया है। 

अधिकारी यह तर्क भी दे रहे है कि शिक्षा मित्र संविदा महिला शिक्षको को तो तबादलो में ससुराल का विकल्प चुनने का मौका दिया जा सकता है, संविदा कर्मी को नहीं। दूसरी बात यह कि शिक्षा मित्र जब शिक्षक बने थे तो उसी जिले में दूसरे स्कूल में तैनाती दी गई थी। अब अगर शादी दूसरे जिले में हो गई है तो वहां कैसे भेजा जा सकता है? इसे ध्यान में रखते हुए शासनादेश में संशोधन को लेकर भी अधिकारियों में मंथन चल रहा है। इसी वजह से तबादलो में देरी हो रही है। 



मांग : शिक्षामित्रों के तबादले की भी जल्द शुरू हो प्रक्रिया, निर्देश के बाद अभी तक तबादले की प्रक्रिया शुरू नहीं होने से शिक्षामित्र ऊहापोह में

13 अप्रैल 2025
लखनऊ। प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में नियमित शिक्षकों की तबादला प्रक्रिया तो शुरू हो गई है लेकिन विद्यालयों में कार्यरत शिक्षामित्रों का मूल विद्यालय में वापसी व महिला शिक्षामित्रों को उनके ससुराल के पास तबादले की प्रक्रिया अब तक नहीं शुरू हुई है।

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के प्रदेश मंत्री कौशल कुमार सिंह ने कहा कि पूर्व में जारी निर्देश के बाद अभी तक तबादले की विभागीय प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। एक अप्रैल से स्कूलों में बच्चों का नया सत्र शुरू हो चुका है।

ऐसे में महिला शिक्षामित्र जो ससुराल के पास वापस जाना चाहती हैं। वह असमंजस में हैं कि वह अपने बच्चों का नामांकन वर्तमान स्थान पर कराएं या नहीं। संघ ने अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा को पत्र भेजकर मांग की है कि समस्या का जल्द समाधान किया जाए।




लंबा होता जा रहा आठ साल बाद घर वापसी का इंतज़ार,  जानिए! शासनादेश जारी होने के बाद अब कहां फंस रहा शिक्षामित्रों की घरवापसी में पेच?
 

17 मार्च 2025
आठ साल के इंतजार के बाद आदेश हुआ था कि शिक्षा मित्र अपने घर के नजदीकी स्कूलों में आ सकेंगे। यह शासनादेश तीन जनवरी को हुआ था। उसके बाद से शिक्षामित्र फिर इंतजार कर रहे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग ने अब तक तबादला प्रक्रिया शुरू नहीं की है और न इस बाबत कोई नया आदेश आया है।


ऐसे दूर हुए थे शिक्षामित्र
सपा सरकार में प्रदेश के करीब 1.37 लाख शिक्षा मित्रों को शिक्षक बनाया गया था। शिक्षक बनने पर उनको दूर-दराज के ब्लॉक में पोस्टिंग दी गई थी। शिक्षक बनने पर उन्होंने खुशी-खुशी दूर-दराज के स्कूलों में जाना स्वीकार कर लिया। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उनका बतौर शिक्षक किया गया समायोजन रद्द कर दिया गया। वे फिर से शिक्षा मित्र बन गए। ऐसे में उनका मानदेय फिर से 10 हजार ही रह गया लेकिन उनकी तैनाती वहीं रह गई जहां वे शिक्षक बन कर गए थे और वे अपने घर से दूर हो गए।


सरकार ने 2018 में शिक्षा मित्रों को अपने मूल विद्यालय में आने का मौका दिया था। ऐसे में करीब एक लाख शिक्षा मित्र तो उस समय वापस आ गए। बाकी करीब 35 हजार शिक्षा मित्र शिक्षक बनने उम्मीद में अपने मूल विद्यालय में नहीं आए। उन्हें उम्मीद थी कि कोर्ट से लेकर सड़क तक लड़ाई लड़ी जा रही है। ऐसे में वे शिक्षक बन सकते हैं। नए शासनादेश ने उनको मौका दिया है कि वे अपने घर के नजदीकी स्कूल में आ सकते है लेकिन अब तक प्रक्रिया शुरू न होने से निराश है।


दरअसल, कुछ ऐसी महिला शिक्षा मित्र भी है, जिनकी शादी हो गई है। कुछ की शादी दूसरे जिले में और कुछ की जिले में ही काफी दूर हो गई है। शासनादेश के अनुसार, उनको अपनी ससुराल के नजदीकी स्कूल में जाने का मौका भी मिलेगा। 


सूत्रों के अनुसार, शासन स्तर पर इसी को लेकर फिर नया पेंच फंस गया है। अधिकारी यह तर्क भी दे रहे हैं कि शिक्षामित्र संविदा पर हैं। नियमित महिला शिक्षकों को तो तबादलों में ससुराल का विकल्प चुनने का मौका दिया जा सकता है, संविदा कर्मी को नहीं। इसे ध्यान में रखते हुए शासनादेश में संशोधन को लेकर भी अधिकारियों में मंथन चल रहा है। इसी वजह से तबादला प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है।

बोर्ड परीक्षा फॉर्म में अब 27 अक्टूबर तक सुधारें गलतियां, CBSE की ओर से गलतियों में सुधार के लिए खोला गया पोर्टल

बोर्ड परीक्षा फॉर्म में अब 27 अक्टूबर तक सुधारें गलतियां, CBSE की ओर से गलतियों में सुधार के लिए खोला गया पोर्टल


आगरा। सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने दसवीं और बारहवीं के छात्रों को राहत दी है। बोर्ड परीक्षा से पहले छात्रों के डाटा में सुधार का मौका दिया गया है। स्कूल 27 अक्तूबर तक लिस्ट ऑफ कैंडिडेट्स (एलओसी) में आवश्यक संशोधन कर सकेंगे। इसके बाद सुधार का कोई अवसर नहीं मिलेगा।


बोर्ड ने कहा है कि परीक्षा से जुड़े डाटा में गलतियों को लेकर वह पूरी तरह संवेदनशील है। इसलिए 2025-26 सत्र के लिए एलओसी में दर्ज विवरणों में सुधार की सुविधा दी गई है। करेक्शन विंडो 27 अक्तूबर तक खुली रहेगी। 

बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि इसके बाद कोई बदलाव स्वीकार नहीं होगा। जारी नोटिफिकेशन के अनुसार अभिभावक और स्कूल छात्र का नाम, माता-पिता के नाम, जन्मतिथि और विषयों की जानकारी को ध्यान से जांचें। डाटा वेरिफिकेशन स्लिप के माध्यम से विवरण दोबारा जांचने के निर्देश दिए हैं। बोर्ड ने कहा है कि स्कूल अभिभावकों को समय सीमा की जानकारी दें ताकि सुधार तय समय में पूरे हो सकें।



विदेश में पढ़ाई करनी है तो लगाएं सरनेम

सीबीएसई ने कहा है कि जो छात्र विदेश में पढ़ाई की योजना बना रहे हैं, वे अपने नाम में सरनेम अवश्य जोड़ें। इससे भविष्य में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। यदि पासपोर्ट बन चुका है तो उसी के अनुसार बोर्ड के डाटा में विवरण दर्ज करें। बोर्ड ने विषय चयन को भी एक बार फिर से जांचने की सलाह दी है, क्योंकि विषयों में कोई संशोधन स्वीकार नहीं किया जाएगा।

Tuesday, October 21, 2025

MDM में तिथि भोजन योजना का यूपी में नहीं हो पा रहा सफल क्रियान्वयन, प्रयागराज की रिपोर्ट ने खोला सच

MDM में तिथि भोजन योजना का यूपी में नहीं हो पा रहा सफल क्रियान्वयन, प्रयागराज की रिपोर्ट ने खोला सच


उत्तर प्रदेश के विद्यालयों में तिथि भोजन योजना को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। सरकार और विभागीय अधिकारी इस योजना को सामुदायिक सहभागिता और बच्चों में पोषण के प्रति जागरूकता का माध्यम मानते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत अभी भी उम्मीदों से बहुत दूर है। प्रयागराज से आई रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि योजना के दिशा-निर्देशों और वास्तविक क्रियान्वयन के बीच गहरी खाई मौजूद है।


 प्रयागराज से प्रकाशित अखबारी खबरों के अनुसार, परिषदीय स्कूलों में तिथि भोजन के लिए विशेष निर्देश जारी किए गए हैं कि विद्यालय परिसर के भीतर केवल पका हुआ भोजन ही बच्चों को दिया जाए और फास्ट फूड या तले हुए पदार्थों को पूरी तरह प्रतिबंधित रखा जाए। विद्यालय प्रबंधन समिति (एसएमसी) के सदस्यों की जिम्मेदारी तय की गई है कि वे भोजन की गुणवत्ता और वितरण प्रक्रिया की निगरानी करें। यहां तक कि भोजन कराने वाला व्यक्ति भी बच्चों के साथ बैठकर भोजन करेगा, ताकि बच्चों में समानता और सहभागिता की भावना विकसित हो।

लेकिन, योजना की भावनात्मक और प्रशासनिक गंभीरता के बावजूद, राज्य के अधिकांश जिलों में यह पहल अपेक्षित रूप से सफल नहीं हो पाई है। प्रयागराज की न्यूज रिपोर्ट में साफ उल्लेख किया गया है कि बीएसए देवेंद्र सिंह के निर्देशों के बावजूद, तिथि भोजन कराने के इच्छुक लोगों की संख्या बहुत कम है। कई विद्यालयों में महीनों से कोई तिथि भोजन कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ है।

सूत्र बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक सीमाएँ, समय की कमी और अभिभावकों की अनिच्छा इसके प्रमुख कारण हैं। कई स्थानों पर एसएमसी सदस्य और ग्राम पंचायतें भी सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रही हैं। जिन विद्यालयों में तिथि भोजन होता भी है, वहाँ अक्सर मात्रा और गुणवत्ता दोनों पर सवाल उठते हैं।

विभागीय अधिकारी मानते हैं कि तिथि भोजन की भावना अत्यंत नेक है, लेकिन बिना सामुदायिक भागीदारी के यह योजना केवल कागज़ों पर ही सजीव रह जाएगी। प्रयागराज की तरह कई जिलों में जब तक स्थानीय समाज और अभिभावक सक्रिय भागीदारी नहीं निभाते, तब तक यह योजना अपने वास्तविक उद्देश्य — सामाजिक एकता, स्वच्छता और पोषण सुधार — को हासिल नहीं कर सकेगी।


इस पूरे परिदृश्य में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि योजनाओं का मसौदा और क्रियान्वयन प्रक्रिया प्रायः ज़मीनी सच्चाइयों को जाने बिना तैयार की जाती है। विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों से न तो व्यावहारिक सुझाव लिए जाते हैं, न ही स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर योजना बनाई जाती है। नतीजतन, ऐसी योजनाएँ जमीनी हकीकत से कटकर केवल “अच्छे इरादों के दस्तावेज़” बनकर रह जाती हैं। तिथि भोजन जैसी सामाजिक रूप से सार्थक पहल को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षक, अभिभावक, ग्राम प्रतिनिधि और प्रशासन — सभी एक साथ मिलकर व्यवहारिक ढंग से आगे बढ़ें, वरना यह योजना भी अन्य अनेक योजनाओं की तरह केवल आदेशों और फाइलों में सिमट कर रह जाएगी।


Monday, October 20, 2025

जानिए! ड्रॉप बॉक्स में बच्चों की संख्या में वृद्धि के कारण, यू-डायस पर प्रदर्शित ड्राप आउट वाले बच्चों की संख्या से जिम्मेदारों की चिंता बढ़ी

जानिए! ड्रॉप बॉक्स में बच्चों की संख्या में वृद्धि के कारण, यू-डायस पर प्रदर्शित ड्राप आउट वाले बच्चों की संख्या से जिम्मेदारों की चिंता बढ़ी


लखनऊ। उत्तर प्रदेश में तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी 5,74,132 लाख बच्चे स्कूलों से दूर हैं। यू-डायस पर प्रदर्शित ड्राप आउट वाले इन बच्चों की संख्या जिम्मेदारों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। ड्राप बॉक्स में बच्चों की संख्या में इजाफा का सबसे बड़ा कारण जटिल नियम मने जा रहे हैं। कहीं आधार व यू डायस पर बच्चों के नाम मैच नहीं हैं, तो कहीं जन्मतिथि समेत अन्य गड़बड़ियों से मामला फंसा हुआ है। हजारों ऐसे बच्चें हैं जिन्होंने

कक्षा पांच पास करने के बाद गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों या मदरसों में अपना नाम लिखा लिया, यह भी एक कारण बताया जा रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि हजारों बच्चे कक्षा 5 या 8 पास करने के बाद स्कूलों से टीसी लेकर राज्य से बाहर चले गए और उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। ऐसे में इन बच्चों को इम्पोर्ट करवाया जाना संभव नहीं है और इनके नाम भी ड्रॉप बॉक्स में पड़े हैं। इसी प्रकार ड्रॉप बॉक्स में कुछ ऐसे भी बच्चे हैं, जिनके यू-डायस पोर्टल पर जन्म तिथि आधार के अनुसार है और टीसी में अलग है।


ड्रॉप बॉक्स में बच्चों की संख्या में वृद्धि के कारण

बेसिक स्कूलों अभी भी लाखों बच्चों के पास आधार न होना

विद्यालय व विभाग के पास आधार बनाने का विशेष अधिकार न होना

माध्यमिक स्कूलों द्वारा अपने यहां नामांकित बच्चों का इंपोर्ट न करना

गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों पर शिकंजा न कसा जाना

गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में अपना नामांकन कराना



परिषदीय विद्यालयों के 'लापता' बच्चे ड्रॉपबॉक्स में, बच्चों की तलाश में गुरु जी हलाकान, ड्राप बाक्स में सब से अधिक आठ पास विद्यार्थी


परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति को लेकर बड़ी समस्या सामने आई है। विभागीय जांच में पाया गया कि विभिन्न स्कूलों के ड्राप बाक्स में लाखों बच्चे हैं। ड्राप बाक्स का अर्थ है कि आनलाइन सिस्टम के जरिए छात्र रिकार्ड प्रबंधन। विशेष रूप से विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों को ट्रैक करने के लिए यू डावस प्लस पोर्टल जैसे सिस्टम में इसका उपयोग होता है। लापता  बच्चों का कोई विवरण यू डायस पोर्टल पर अभी तक नहीं है। बेसिक शिक्षकों पर इन बच्चों की तलाश का दबाव है और इस दबाव के चक्कर में स्कूलों की पढ़ाई चौपट है।


विभागीय रिपोर्ट के अनुसार, लापता बच्चों की संख्या बढ़ने के कई कारण हैं, पहला पारिवारिक स्थिति ठीक न होने की वजह से बहुत से बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। दूसरा कुछ बच्चे दूसरे स्कूलों में चले गए लेकिन उनके दूसरे विद्यालय में जाने संबंधी विवरण नहीं दर्ज किया गया। तीसरी वजह निजी स्कूलों में प्रवेश के बाद भी बच्चों का नाम सरकारी अभिलेखों से नहीं हटाया गया। इसके अतिरिक्त निर्देशों के बावजूद स्कूलों द्वारा बच्चों के नाम अपडेट या हटाने का कार्य समय से नहीं किया गया। 


ड्राप बाक्स में कक्षावार बच्चों की संख्या देखें तो सबसे अधिक आठवीं कक्षा में विद्यार्थी है। खास यह कि काफी विद्यार्थी अब भी पुरानी कक्षा में है। उनको यू डायस पर कक्षोन्नति नहीं किया गया है।


यूपी के राजकीय और एडेड माध्यमिक विद्यालयों में पुरातन छात्र सम्मेलन अगले माह से, हर विद्यालय में बनेगी पुरातन छात्र परिषद साल में दो बार होगी बैठक

यूपी के राजकीय और एडेड माध्यमिक विद्यालयों में पुरातन छात्र सम्मेलन अगले माह से, हर विद्यालय में बनेगी पुरातन छात्र परिषद साल में दो बार होगी बैठक

पूर्व छात्रों का अनुभव बनेगा विद्यालय विकास की नई ताकत


लखनऊ। अब माध्यमिक विद्यालयों में पुराने छात्रों -से फिर जुड़ने का मौका मिलने वाला है। प्रदेशभर के राजकीय व एडेड माध्यमिक विद्यालयों में अगले माह ई से पुरातन छात्र सम्मेलन शुरू किए जाएंगे। इसके लिए हर विद्यालय में पुरातन छात्र परिषद गठित करने पं के निर्देश जारी किए गए हैं।


जेडी (माध्यमिक) और जिला विद्यालय निरीक्षक की ओर से प्रधानाचार्यों को कहा गया है कि परिषद का गठन जल्द पूरा करें और सम्मेलन की तैयारियां शुरू करें। इसका उद्देश्य पूर्व और वर्तमान छात्रों के में बीच सेतु बनाना है, ताकि विद्यालय के विकास जैसे । नए कक्ष, पुस्तकालय या संसाधन निर्माण में पुरातन छात्रों का योगदान लिया जा सके।  शासन की गाइडलाइन के अनुसार नवंबर से सम्मेलन होंगे। राजधानी सहित मंडल के सभी राजकीय व एडेड कॉलेजों में तैयारियां जोरों पर हैं।



जानिये कौन होंगे परिषद के सदस्य
विद्यालय से पास होकर निकले ऐसे विद्यार्थी, जिन्होंने कला, संस्कृति, व्यवसाय, सरकारी सेवा, खेलकूद या समाजसेवा में विशेष योगदान दिया हो, परिषद् के सदस्य बनेंगे। प्रारंभ में कम से कम तीन ऐसे छात्रों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाएगा।

दो बार होगी बैठक
हर वर्ष दो बार पुरातन छात्र परिषद की बैठक होगी, जिसमें पूर्व छात्र अपने अनुभव साझा करेंगे और विद्यालय विकास के लिए सुझाव देंगे

डिजिटल अटेंडेंस पर न हो सख्ती, शिक्षक संघ ने महानिदेशक स्कूल शिक्षा से की मांग

डिजिटल अटेंडेंस पर न हो सख्ती,  शिक्षक संघ ने महानिदेशक स्कूल शिक्षा से की मांग

लखनऊ। प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की डिजिटल उपस्थिति लगाने और शिक्षकों की उपस्थिति की चर्चा के बीच इस पर सख्ती न करने की मांग होने लगी है। उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ ने महानिदेशक स्कूल शिक्षा से यह मांग की है।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा कि डिजिटल उपस्थिति, पंजिकाओं के डिजिटाइजेशन के संबंध में 16 जुलाई 2024 को तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में विभाग व शिक्षक संगठनों की बैठक हुई थी। इसमें तत्कालीन अपर मुख्य सचिव माध्यमिक शिक्षा, प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा व महानिदेशक भी उपस्थित थी।


बैठक में शिक्षकों की समस्याओं व सुझावों को सुनने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों, शिक्षाविदों, शिक्षक संगठनों के सदस्यों की एक एक्सपर्ट कमेटी गठित करने का निर्णय लिया गया था। साथ ही इस कमेटी का निर्णय आने तक किसी भी प्रकार की डिजिटल अटेंडेंस को स्थगित रखने का निर्णय लिया गया था।

एक्सपर्ट कमेटी का निर्णय आने तक यह व्यवस्था जारी है किंतु कई जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा छात्रों की ऑनलाइन उपस्थिति व पंजिकाओं के डिजिटाइजेशन को लेकर सख्ती की जा रही है।

साथ ही अनुपालन न हो पाने की स्थिति में शिक्षकों पर कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा की शिक्षक समस्याओं का समाधान होने व एक्सपर्ट कमेटी का निर्णय आने तक मुख्य सचिव के निर्देशानुसार यथास्थिति बनाए रखने के लिए बेसिक शिक्षा अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए जाएं। 




ऑनलाइन उपस्थिति और पंजिकाओं के डिजिटाइजेशन पर फिर छिड़ा विवाद,  शिक्षकों ने मुख्य सचिव के आदेश की अवहेलना बताई


लखनऊ, 19 अक्टूबर। उत्तर प्रदेश में विद्यालयों में ऑनलाइन उपस्थिति और पंजिकाओं के डिजिटाइजेशन को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता जा रहा है। जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री अरुणेंद्र कुमार वर्मा द्वारा महानिदेशक, स्कूल शिक्षा उत्तर प्रदेश को भेजे गए पत्र में इस व्यवस्था को मुख्य सचिव के पूर्व आदेशों के विपरीत बताया गया है।

पत्र में कहा गया है कि दिनांक 16 जुलाई 2024 को लखनऊ में मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन की अध्यक्षता में शिक्षकों के प्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। 

बैठक में अपर मुख्य सचिव माध्यमिक शिक्षा, प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा और तत्कालीन महानिदेशक स्कूल शिक्षा की उपस्थिति में यह निर्णय हुआ था कि शिक्षकों की समस्याओं और सुझावों पर विचार के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी गठित की जाएगी। साथ ही यह भी तय किया गया था कि समिति की रिपोर्ट आने तक किसी भी प्रकार की डिजिटल अटेंडेंस व्यवस्था स्थगित रखी जाएगी।

महामंत्री वर्मा ने पत्र में उल्लेख किया है कि उक्त बैठक का कार्यवृत्त जारी हुआ था और मीडिया में इसकी पुष्टि भी की गई थी। इसके बावजूद कुछ जनपदों के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा छात्रों की ऑनलाइन उपस्थिति और पंजिकाओं के डिजिटाइजेशन के आदेश जारी किए जा रहे हैं।
यहां तक कि अनुपालन न होने की स्थिति में शिक्षकों को नोटिस और कार्यवाही की चेतावनी दी जा रही है, जो उनके अनुसार मुख्य सचिव के आदेशों की खुली अवहेलना है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि जब तक एक्सपर्ट कमेटी का निर्णय नहीं आता, तब तक मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुरूप यथास्थिति बनाए रखी जाए। वर्मा ने मांग की है कि शिक्षकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में तुरंत आवश्यक कार्यवाही की जाए ताकि अनावश्यक दबाव और भ्रम की स्थिति समाप्त हो सके।

इस पत्र की प्रतिलिपि मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन और प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को भी भेजी गई है। शिक्षक संगठनों ने उम्मीद जताई है कि शासन इस पर जल्द संज्ञान लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करेगा ताकि प्रदेश भर में एक समान और न्यायसंगत व्यवस्था लागू हो सके।



माध्यमिक विद्यालयों में रोज होगा कॅरिअर काउंसलिंग सत्र, विभाग ने भेजा निर्देश, वार्षिक गतिविधि कैलेंडर में भी किया जाएगा शामिल

माध्यमिक विद्यालयों में रोज होगा कॅरिअर काउंसलिंग सत्र, विभाग ने भेजा निर्देश, वार्षिक गतिविधि कैलेंडर में भी किया जाएगा शामिल

लखनऊ। प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसके लिए सभी माध्यमिक विद्यालयों में नियमित कॅरिअर काउंसलिंग सत्र आयोजित किया जाएगा। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने इसके लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं।

माध्यमिक विद्यालयों में अभी करियर काउंसलिंग का सत्र विशेष रूप से बोर्ड परीक्षा के दौरान आयोजित किया जाता है। किंतु अब इसे नियमित करने के निर्देश दिए गए हैं। ताकि छात्रों को उनकी रुचि और क्षमता के अनुसार सही करियर चुनने में सहायता मिल सके। सभी विद्यालयों को प्रभावी तरीके से काउंसलिंग सत्र आयोजित करने के लिए कहा गया है। 

विभाग का कहना है कि स्कूल स्तर से कॅरिअर की सही जानकारी मिलने पर छात्र भ्रम और अनिश्चितता से मुक्त होंगे। साथ ही सही दिशा में आगे बढ़ेंगे, इससे उनको अपना लक्ष्य पाने में आसानी होगी। विभाग ने कहा है कि विद्यालय विशेषज्ञों और पेशेवर काउंसलर को बुलाकर या आनलाइन संवाद कराए।

इसको वार्षिक कैलेंडर में भी शामिल किया जाए। इसमें छात्रों को प्रतियोगी विकल्पों, परीक्षाओं, कॅरिअर तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा, कौशल विकास के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाए। इससे विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, निर्णय लेने क्षमता और भविष्य की तैयारी का भी विकास होगा। करियर को लेकर स्थिति स्पष्ट होने से छात्र व उनके अभिभावक भी आवश्यकतानुसार तैयारी कर सकेंगे।



छात्रों के लिए भविष्य की राह चुनना होगा आसान, राजकीय और सहायताप्राप्त माध्यमिक स्कूलों में नियमित करियर काउंसिलिंग का निर्देश

विशेषज्ञ और पेशेवर काउंसलर्स विद्यार्थियों को देंगे करियर विकल्पों की जानकारी


लखनऊ : प्रदेश के राजकीय और सहायताप्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में अब विद्यार्थियों के लिए भविष्य की राह चुनना आसान होगा। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने इसके लिए सभी राजकीय और सहायताप्राप्त विद्यालयों में नियमित करियर काउंसिलिंग सत्र आयोजित करने का निर्देश दिया है। विभाग ने इस संबंध में सभी जिलों में आवश्यक दिशा-निर्देश भेजे हैं। 


विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूली स्तर से करियर मार्गदर्शन मिलने पर छात्र भ्रम और अनिश्चितता से मुक्त होकर लक्ष्य की ओर स्पष्ट दिशा में आगे बढ़ेंगे, जिससे शिक्षा व्यवस्था में भी सकारात्मक बदलाव लाएगा।


विभागीय निर्देशों में कहा गया है कि विद्यालय स्तर पर विशेषज्ञों और पेशेवर काउंसलर्स को बुलाकर या आनलाइन माध्यम से छात्रों के साथ संवाद कराया जाए। इन सत्रों में छात्रों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं, करियर विकल्पों, तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा, तथा कौशल विकास के अवसरों की विस्तृत जानकारी दी जाएगी। इसका उद्देश्य छात्रों को उनकी रुचि, योग्यता और क्षमताओं के अनुरूप सही दिशा चुनने में मार्गदर्शन प्रदान करना है। 


अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने अभी सभी माध्यमिक शिक्षा अधिकारियों को स्पष्ट किया है कि शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, निर्णय क्षमता और भविष्य की तैयारी की योजना का भी विकास होना चाहिए। उन्होंने सभी विद्यालयों को निर्देश दिया है कि करियर काउंसिलिंग को विद्यालयी गतिविधियों का नियमित हिस्सा बनाया जाए और इसे वार्षिक कार्यक्रम कैलेंडर में शामिल किया जाए। 


विभाग का मानना है कि इस पहल से छात्रों को न केवल भविष्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता पाने में मदद मिलेगी, बल्कि वे पसंद के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर आत्मनिर्भर बन सकेंगे।

Sunday, October 19, 2025

सीएम डैशबोर्ड में बेसिक शिक्षकों की हाजिरी शामिल होने की सूचना वॉयरल

सीएम डैशबोर्ड में बेसिक शिक्षकों की हाजिरी शामिल होने की सूचना वॉयरल


लखनऊ । मुख्यमंत्री डैशबोर्ड ‘दर्पण’ में अब एक बड़ा बदलाव किया जा रहा है। अब तक इस डैशबोर्ड पर मध्यान्ह भोजन योजना (MDM) के तहत छात्रों की संख्या और विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति जैसी जानकारियाँ प्रदर्शित करने की योजनाओं को रद्द करने के बाद अब बेसिक शिक्षकों की उपस्थिति को शामिल करने की तैयारी की जा रही है।




इस बदलाव को लेकर शिक्षा विभाग और शिक्षकों के बीच चर्चा तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर यह सूचना तेजी से वायरल हो रही है कि अब विभाग डिजिटल उपस्थिति की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाने वाला है। इस बदलाव के बाद प्रत्येक शिक्षक की हाजिरी सीधे सीएम डैशबोर्ड ‘दर्पण’ पोर्टल पर  प्रदर्शित हो सकती है।

जानकारों का कहना है कि यह कदम पारदर्शिता बढ़ाने और उत्तरदायित्व तय करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है। हालांकि शिक्षक समुदाय में इसको लेकर आशंकाएँ भी व्यक्त की जा रही हैं। कई शिक्षकों का कहना है कि पहले से ही शिक्षकों पर डेटा अपलोड, रिपोर्टिंग और विभिन्न ऐप्स के माध्यम से उपस्थिति देने का बोझ है। अब यदि डिजिटल उपस्थिति भी अनिवार्य की गई, तो यह शिक्षण कार्य को और प्रभावित कर सकता है।

विभागीय सूत्रों का कहना है कि ‘दर्पण’ डैशबोर्ड का उद्देश्य स्कूलों के वास्तविक संचालन की निगरानी करना है। अब शिक्षकों की नियमित उपस्थिति को आधार बनाकर शिक्षण गुणवत्ता का मूल्यांकन करने की योजना है।

हालाँकि इस निर्णय पर अभी आधिकारिक आदेश जारी नहीं हुआ है, लेकिन वायरल सूचनाओं से स्पष्ट है कि विभाग डिजिटल उपस्थिति प्रणाली की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है।

CBSE का बड़ा फैसला, अब सिर्फ Digilocker में मिलेगा Migration Certificate

CBSE का बड़ा फैसला, अब सिर्फ Digilocker में मिलेगा Migration Certificate 


अगर आप सीबीएसई बोर्ड से पढ़ाई कर रहे हैं तो आपके लिए काम की खबर है. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने कहा है कि अब से यानी कि 2025 के बाद से 10वीं-12वीं कक्षा के स्टूडेंट्स को हार्डकॉपी के रूप में माइग्रेशन सर्टिफिकेट (CBSE Migration Certificate) जारी नहीं किया जाएगा. CBSE ने कहा कि डिजिटल डॉक्यूमेंट्स को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया है. साथ ही छात्रों को अब माइग्रेशन सर्टिफिकेट जुटाने के लिए ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी होगी. 


CBSE Big Update: सीबीएसई का बड़ा फैसला 
यह फैसला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के उस निर्देश के बाद लिया गया है, जिसमें कहा गया है कि CBSE जैसे बोर्ड्स द्वारा जारी डिजिटल डॉक्यूमेंट्स उच्च शिक्षण संस्थान जैसे कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी में एक्सेप्ट किए जाएंगे. वहीं अब CBSE माइग्रेशन सर्टिफिकेट के लिए कोई शुल्क नहीं लेगा. 


पहले क्या होता था? 
इससे पहले तक CBSE बोर्ड की ओर से 10वीं-12वीं कक्षा के छात्रों के लिए ऑनलाइन रिजल्ट के बाद मार्कशीट जारी किया जाता था. साथ ही माइग्रेशन सर्टिफिकेट भी जारी किया जाता है. साथ ही डिजिटल तरीके से भी ये सारे डॉक्यूमेंट्स जारी किए जाएंगे. लेकिन अब CBSE ने डिजिटल डॉक्यूमेंट्स को लागू करने के लिए बड़ा फैसला लेते हुए माइग्रेशन सर्टिफिकेट की हार्डकॉपी नहीं जारी करने का फैसला लिया है. 

इस बदलाव को CBSE परीक्षा समिति ने मंजूरी दे दी है. ऐसे में 2025 के बाद से 10वीं-12वीं के बोर्ड स्टूडेंट्स पर ये नियम लागू होगा. ऐसा भी नहीं कि ये डिजिटल कॉपी मान्य नहीं होगी. आप इसे हर जगह शेयर कर सकते हैं. 


क्या है DigiLocker? 
DigiLocker एक सरकारी प्लेटफॉर्म हैं, जहां सारे डॉक्यूमेंट्स को स्टोर किया जाता है. इस प्लेटफॉर्म के जरिए आप कभी भी लॉगिन करके अपना सारा डॉक्यूमेंट्स और सर्टिफिकेट पा सकत हैं. यह एक भरोसेमंद प्लेटफॉर्म है. 



CBSE Migration Certificate Steps To Check: कैसे चेक करें माइग्रेशन सर्टिफिकेट? 

सबसे पहले Digilocker प्लेटफॉर्म पर जाएं (आप इसे प्लेस्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं). 
इसमें मोबाइल नंबर की मदद से लॉगिन करें. 
अब ‘Issued Documents’ के ऑप्शन पर क्लिक करें. 
यहां Issuers की लिस्ट से बोर्ड या समिति (यहां CBSE) को चुनें. 
अब अपना सर्टिफिकेट खोजें और इसे डाउनलोड कर लें. 
आप चाहें तो इसे प्रिंट कराकर कहीं शेयर कर सकते हैं. 

हाईकोर्ट के आदेश पर अतिरिक्त अवसर की मांग को लेकर याचिका करने वाले अभ्यर्थियों का डीएलएड परीक्षा कार्यक्रम जारी

हाईकोर्ट के आदेश पर अतिरिक्त अवसर की मांग को लेकर याचिका करने वाले अभ्यर्थियों का डीएलएड परीक्षा कार्यक्रम जारी

20 और 21 नवंबर को प्रथम से चतुर्थ सेमेस्टर की परीक्षा होगी

तीन नवम्बर को होगी अवमानना याचिका पर सुनवाई


प्रयागराज । डीएलएड की सेमेस्टर परीक्षा में अतिरिक्त अवसर की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका करने वाले अभ्यर्थियों का परीक्षा कार्यक्रम जारी हो गया है। हाईकोर्ट के आदेश पर एससीईआरटी निदेशक गणेश कुमार ने 17 अक्तूबर को परीक्षा कार्यक्रम जारी करते हुए परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय के सचिव अनिल भूषण चतुर्वेदी को सूचित किया है।


प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार प्रथम व द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा 20 नवंबर को क्रमशः सुबह 10 से 12 और दो से चार बजे तक कराई जाएगी, जबकि तृतीय व चतुर्थ सेमेस्टर की परीक्षा 21 नवंबर को क्रमशः सुबह 10 से 12 बजे और दो से चार बजे तक होगी। यह परीक्षा कार्यक्रम प्रदेश सरकार की ओर से दाखिल विशेष अपील के निर्णय के अधीन होगा।

याचिकाकर्ता सरिता तिवारी के अधिवक्ता कौन्तेय सिंह ने बताया कि सुनवाई के दौरान विपक्षी पक्ष की ओर से दाखिल अनुपालन शपथपत्र में आवेदिका को न्यायालय के पूर्व आदेश के अनुसार परीक्षा में सम्मिलित होने की अनुमति दी गई है।

आदेश के बाद भी तदर्थ शिक्षकों को नहीं मिला नौ महीने का वेतन

आदेश के बाद भी तदर्थ शिक्षकों को नहीं मिला नौ महीने का वेतन

माध्यमिक विद्यालयों से हटाए गए तदर्थ शिक्षकों की खराब हुई दिवाली

माध्यमिक शिक्षक संघ ने अधिकारियों के खिलाफ दर्ज कराई नाराजगी


लखनऊ। प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में 20 साल से अधिक काम करने वाले लगभग 2300 तदर्थ शिक्षकों को उच्च अधिकारियों के आदेश के बाद भी नौ महीने का वेतन नहीं दिया गया। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (पांडेय गुट) ने इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए इन शिक्षकों व परिजनों की दिवाली खराब करने का भी आरोप लगाया है।


संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह पटेल व संगठन प्रवक्ता ओम प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि ये वे शिक्षक हैं जिन्हें 2000 के पूर्व में तय व्यवस्था के तहत नियुक्त किया गया था। वे लगातार सेवा में रहकर देश की भावी पीढ़ी के निर्माण में गत 20 साल से ज्यादा से अपना योगदान दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से उन्हें नियमित करने और नियमित वेतन भुगतान के स्पष्ट आदेशों के बाद भी अधिकारी मनमानी कर रहे हैं।

डॉ. पटेल ने इस संवेदनशील मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का व्यक्तिगत ध्यान आकृष्ट करते हुए उनसे तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने अपनी स्वेच्छाचारिता से शिक्षकों का वेतन रोककर उनका आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न कर रहे हैं।

उन्होंने विभाग के अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा से भी इस मामले में व्यक्तिगत रुचि लेते हुए शिक्षकों का वेतन जल्द जारी कराने की मांग की।

स्कूलों में अध्यापकों की सुनिश्चित की जाए उपस्थिति', मुख्य सचिव व अपर मुख्य सचिव बेसिक को हाईकोर्ट का निर्देश

स्कूलों में अध्यापकों की सुनिश्चित की जाए उपस्थिति', मुख्य सचिव व अपर मुख्य सचिव बेसिक को हाईकोर्ट का निर्देश 

हाईकोर्ट ने कहा- बच्चों के शिक्षा पाने के मौलिक अधिकारों का न हो हनन


प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव (एसीएस) बेसिक व अन्य अधिकारियों को निर्देश जारी किया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि बच्चों के शिक्षा पाने संबंधी मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति पीके गिरि ने बांदा की अध्यापिका इंद्रा देवी की याचिका पर पारित किया है।

हाई कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सरकार, स्कूलों में शिक्षकों के डिजिटल अटेंडेंस की व्यवस्था करें तथा जिला एवं ब्लाक स्तर पर ऐसा टास्क फोर्स बनाए जिससे स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित हो सके। कोर्ट ने बांदा के डीएम व बीएसए से जिले की रिपोर्ट मांगी है। हाई कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने शिक्षकों की उपस्थिति के लिए डिजिटल अटेंडेंस की व्यवस्था की है, लेकिन वह अभी धरातल पर नहीं है। अपने विस्तृत आदेश में कोर्ट ने कहा कि शिक्षक गुरु है और वह परम ब्रह्म के समान है। कोर्ट ने शास्त्रों की यह उक्ति उद्धित की, 'गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।'

तथ्य यह हैं कि याची शिक्षक कंपोजिट स्कूल तिंदवारी, बांदा में नियुक्त है। उसकी स्कूल में गैरमौजूदगी को लेकर बीएसए बांदा ने 30 अगस्त 2025 को एक आदेश जारी किया था जिसे उसने याचिका में चुनौती दी है। आरोप है कि वह डीएम के निरीक्षण के दौरान स्कूल में नहीं थी। हस्ताक्षर कर स्कूल से गायब थी। हाई कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों की स्कूल से गैरमौजूदगी के कारण बच्चों के मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 का उल्लंघन हो रहा है। गरीब बच्चों के शिक्षा पाने के मौलिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है। हाई कोर्ट ने कहा, शिक्षकों के स्कूलों में नहीं जाने से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


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Saturday, October 18, 2025

माध्यमिक में हेड मास्टरों की पदोन्नति अगले महीने, 30 नवंबर तक उनकी प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश

माध्यमिक में हेड मास्टरों की पदोन्नति अगले महीने, 30 नवंबर तक उनकी प्रक्रिया पूरी करने का nirdesh

लखनऊ। राजकीय माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों व हेड मास्टरों की भर्ती, पदोन्नति की प्रक्रिया को शासन ने समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश दिया है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने इसकी टाइमलाइन तय कर दी है। 

उन्होंने बताया कि शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए अधियाचन लोक सेवा आयोग को भेजा जा चुका है। इसके साथ ही उन्होंने निर्देश दिया है कि शिक्षकों की ग्रेडेशन लिस्ट 16 नवंबर तक फाइनल कर ली जाए। साथ ही नवंबर अंत तक लोक सेवा आयोग को इसके लिए अधियाचन भेज दिया जाए। हेड मास्टरों के शत प्रतिशत पद पदोन्नति के हैं। 30 नवंबर तक उनकी प्रक्रिया पूरी की जाए। 




राजकीय और एडेड माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी जल्द होगी दूर

लखनऊः प्रदेश सरकार ने राजकीय और अनुदानित (एडेड) माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को दूर करने और पदोन्नति की प्रक्रिया पूरी करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विभाग में सभी लंबित भर्तियों और पदोन्नतियों को तय समय सीमा के भीतर पूरा करने के लिए निर्देश जारी किए है। इसमें राजकीय कालेजों में 31 अक्टूबर तक और एडेड कालेजों में 31 दिसंबर तक पदोन्नति की प्रक्रिया पूरी करने तैयारी है।

अपर मुख्य सचिव (बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा) पार्थ सारथी सेन शर्मा ने गुरुवार को आदेश जारी किया है। राजकीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक और प्रवक्ताओं के पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है। सहायक अध्यापक के पदों का अधियाचन उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग को भेजा जा चुका है, जिसे आयोग ने स्वीकार कर लिया है और उसकी विज्ञप्ति भी जारी हो चुकी है। इसी तरह प्रवक्ता के सीधी भर्ती वाले पदों का अधियाचन भी आयोग को भेजकर विज्ञप्ति जारी की जा चुकी है। 


राजकीय इंटर कालेजों में प्रवक्ताओं के 50 प्रतिशत पद पदोन्नति से भरे जाते हैं, जिनमें महिला प्रवक्ता के पदों का अधियाचन 18 सितंबर को आयोग को भेजा गया था। पुरुष प्रवक्ताओं की ग्रेडेशन सूची को 16 नवंबर तक अंतिम रूप देकर जारी करने और उसके 10 दिन बाद पदोन्नति के लिए अधियाचन लोक सेवा आयोग को भेजने के निर्देश दिए गए हैं। हेडमास्टर के सभी पद पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं। पुरुष और महिला शाखा दोनों में वर्ष 2025 की पदोन्नति प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। इसलिए इसे 30 नवंबर तक हर हाल में पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं। 

प्रिंसिपल के पदों पर भी तेजी से कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए हैं। प्रिंसिपल की सीधी भर्ती का अधियाचन पहले ही आयोग को भेजा जा चुका है। पुरुष और महिला प्रिंसिपलों की ब्राडशीट शासन को प्राप्त हो चुकी है और इन्हें 31 अक्टूबर तक पदोन्नति देने के निर्देश दिए गए हैं।


एडेड कालेजों में डीआइओएस को जिम्मेदारी 

एडेड विद्यालयों में सीधी भर्ती की जिम्मेदारी माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग द्वारा की जाएगी। माध्यमिक शिक्षा निदेशक द्वारा निर्देश दिए गए हैं कि वे विद्यालयवार अधियाचन तैयार करें और हाल ही में हुए स्थानांतरण और शिक्षकों के कार्यभार ग्रहण को ध्यान में रखते हुए अधियाचन आयोग को भेजें। 

एडेड विद्यालयों में पदोन्नति की जिम्मेदारी जिला विद्यालय निरीक्षकों (डीआइओएस) को दी गई है। निदेशक माध्यमिक और अपर निदेशक माध्यमिक से कहा गया है कि सभी जिलों में वर्ष 2025-26 की पदोन्नति समय से पूरी हो जाए। इसके बाद पदोन्नति की संकलित रिपोर्ट 31 दिसंबर तक शासन को भेजी जानी है।

प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के अवशेष देयकों का निस्तारण ऑनलाइन माध्यम से किए जाने के सम्बन्ध में।

मानव संपदा पोर्टल से होगा अवशेष वेतन का भुगतान, अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के लिए निर्देश

माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने अधिकारियों को दिया एक सप्ताह का अल्टीमेटम

प्रयागराज। राज्य के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के अवशेष वेतन व अन्य भुगतानों का निस्तारण मानव संपदा पोर्टल के एरियर मॉड्यूल के माध्यम से होगा।

इस संबंध में माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के अर्थ-1 अनुभाग की ओर से सभी संबंधित अधिकारियों को सख्त निर्देश जारी किए गए हैं। निदेशालय की ओर से बताया कि इस संबंध में एक अगस्त, 20 अगस्त और 17 सितंबर को भी निर्देश जारी किए जा चुके हैं। इसके बावजूद अब तक केवल 32 जिला विद्यालय निरीक्षक और सात मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक ही एल-1 व एल-2 स्तर पर पोर्टल पर पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी कर पाए हैं।

इस स्थिति को माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव ने खेदजनक करार देते हुए निर्देश दिया है कि शेष सभी अधिकारी एक सप्ताह के भीतर पंजीकरण की प्रक्रिया पूर्ण कर लें। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही इसकी सूचना ईमेल के माध्यम से निदेशालय को अनिवार्य रूप से भेजी जाए। 

शिक्षा निदेशक ने यह भी स्पष्ट किया कि मानव संपदा पोर्टल पर पंजीकरण के बाद फ्लो चार्ट में दर्शित प्रक्रिया के अनुसार प्रकरणों का त्वरित निस्तारण भी सुनिश्चित किया जाए। निदेशालय ने संकेत दिए हैं कि निर्धारित समय सीमा में प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई की संस्तुति भी की जा सकती है।



एडेड शिक्षकों के अवशेष भुगतान की आनलाइन व्यवस्था करने में 43 जिले फिसड्डी

प्रयागराज : एडेड माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक एवं शिक्षणेतर कर्मचारियों के अवशेष देयकों का निस्तारण आनलाइन माध्यम से किए जाने की व्यवस्था बनाई गई है, लेकिन 43 जिलों एवं 11 मंडलों ने इस दिशा में अब तक कार्य नहीं किया। इस स्थिति को खेदजनक बताते हुए माध्यमिक शिक्षा निदेशक डा. महेन्द्र देव ने संबंधित जिला विद्यालय निरीक्षकों एवं मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशकों को पोर्टल के एरियर माड्यूल पर पंजीकरण की कार्यवाही एक सप्ताह में पूर्ण करने के निर्देश दिए हैं।

एडेड विद्यालयों के शिक्षकों एवं कर्मचारियों के अवशेष देयकों के भुगतान को लेकर लगने वाले आरोपों-प्रत्यारोपों पर विराम लगाने के लिए व्यवस्था आनलाइन की जा रही है। इसके लिए 17 सितंबर को निर्देश दिए गए थे कि शिक्षक व शिक्षणेतर कर्मचारियों के अवशेष भुगतान मानव संपदा पोर्टल के एरियर माड्यूल माध्यम से निस्तारण कराए जाने के लिए जनपद एवं मंडल स्तर अलग-अलग पंजीकरण किया जाना है।

इस क्रम में केवल 32 जिला विद्यालय निरीक्षकों एवं सात मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशकों ने अब तक पंजीकरण की कार्यवाही पूर्ण की है, जबकि इसके लिए एक अगस्त, 20 अगस्त और 17 सितंबर को निर्देश जारी किए गए थे। इस स्थिति पर नाराजगी जताते हुए शिक्षा निदेशक ने शेष जनपदों एवं मंडलों में पंजीकरण पूर्ण कर उसकी सूचना ई-मेल के माध्यम से एक सप्ताह में हर हाल में शिक्षा निदेशालय को उपलब्ध कराने को कहा है। इसके साथ ही प्रकरणों का निस्तारण किस तरह किया जाना है, इसे समझाने के लिए फ्लो चार्ट भी जारी किया गया है।




प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के अवशेष देयकों का निस्तारण ऑनलाइन माध्यम से किए जाने के सम्बन्ध में।


प्रदेश के सभी शैक्षणिक संस्थानों के खेल मैदान और अचल संपत्तियों के व्यावसायिक उपयोग पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई रोक

प्रदेश के सभी शैक्षणिक संस्थानों के खेल मैदान और अचल संपत्तियों के व्यावसायिक उपयोग पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई रोक

हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को दिया निर्देश, कहा-डीएम और पुलिस प्रशासन को जारी करें परिपत्र

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के सभी शैक्षणिक संस्थानों के खेल मैदान और अचल संपत्तियों के व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगा दी है। ऐसे में वहां प्रदर्शनी, व्यापार मेले का आयोजन नहीं किया जा सकेगा। कोर्ट ने सरकार को इस संबंध में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन और सभी शैक्षणिक संस्थानों को एक माह के अंदर परिपत्र जारी करने का निर्देश दिया है।


यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने गिरजा शंकर की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर दिया है। हमीरपुर निवासी गिरजा शंकर ने राठ स्थित ब्रह्मानंद डिग्री कॉलेज परिसर में आयोजित किए जा रहे एक व्यावसायिक मेले को रोकने की मांग कर जनहित याचिका दाखिल की थी।

उनका कहना था कि शैक्षणिक संस्थान शिक्षा प्रदान करने के लिए है। यहां पर व्यावसायिक गतिविधियां नहीं की जानी चाहिए। हाईकोर्ट के 2020 में पारित एक फैसले का भी हवाला दिया गया जिसमें न्यायालय ने राज्य सरकार को सभी डीएम को शैक्षणिक संस्थानों की संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगाने का निर्देश दिया था। प्रतिवादियों ने कहा कि मेला समाप्त हो गया है। इसलिए अब यह याचिका अर्थहीन हो चुकी है।

कोर्ट ने याचिका को अर्थहीन नहीं माना। क्योंकि, इसमें शामिल मुख्य मुद्दा महत्वपूर्ण सार्वजनिक महत्व का है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शैक्षणिक संस्थान केवल शिक्षा प्रदान करने के लिए हैं। वहां शैक्षणिक, खेल और सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं आयोजित की जानी चाहिए। कोर्ट ने उप-जिला मजिस्ट्रेट (एसडीएम), राठ, हमीरपुर की ओर से दिए गए स्पष्टीकरण को पूरी तरह से बेबुनियाद बताते हुए खारिज कर दिया। 


आदेश की कॉपी मुख्य सचिव को भेजें

हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे आदेश की एक प्रति एक सप्ताह के भीतर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को भेजें। साथ ही न्यायालय ने निर्देश दिया कि ब्रह्मानंद डिग्री कॉलेज के खेल के मैदान को अब किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

दस साल में पहली बार समय से मिलेंगी सस्ती किताबें, बेसिक शिक्षा विभाग से आगे निकला यूपी बोर्ड, सभी जिलों में एनसीईआरटी की किताबें पहुंचाएंगे प्रकाशक

यूपी बोर्ड ने पहली बार किया इस तरह का प्रावधान, करोड़ से अधिक विद्यार्थियों को लाभ

दस साल में पहली बार समय से मिलेंगी सस्ती किताबें, बेसिक शिक्षा विभाग से आगे निकला यूपी बोर्ड, सभी जिलों में एनसीईआरटी की किताबें पहुंचाएंगे प्रकाशक

दुकानदारों को प्रकाशकों से मंगानी पड़ती थी किताबें, फुटकर दुकानदारों को मिलेगा 20 प्रतिशत कमीशन


प्रयागराज। यूपी बोर्ड से जुड़े प्रदेश के 28 हजार से अधिक स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा नौ से 12 तक के एक करोड़ से अधिक छात्र-छात्राओं को 2026-27 सत्र में एनसीईआरटी आधारित सस्ती किताबों के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। पिछले सालों की तुलना में बोर्ड ने किताबों के प्रकाशन की प्रक्रिया पांच महीने पहले ही शुरू कर दी है और एक अप्रैल को सत्र शुरू होने से पहले ही किताबें बाजार में उपलब्ध हो जाएंगी। खास बात यह है कि बोर्ड ने इस साल जारी टेंडर में यह शर्त रखी है कि प्रकाशक ही किताबों को प्रदेश के सभी 75 जिलों में उपलब्ध कराएंगे।


साथ ही फुटकर विक्रेताओं के लिए 20 प्रतिशत कमिशन का प्रावधान भी किया गया है। इसका फायदा यह होगा कि फुटकर विक्रेता एनसीईआरटी आधारित यूपी बोर्ड की अधिकृत किताबें बेचने में रुचिलेंगे और बच्चों को महंगी किताबें खरीदने के लिए कई गुना अधिक कीमत नहीं चुकानी होगी। पिछले सालों में प्रकाशक किताबें तो छाप लेते थे लेकिन मार्जिन बहुत कम होने के कारण जिलों तक किताब नहीं पहुंचाते थे। जिलों के फुटकर दुकानदार दूसरे जिलों के प्रकाशकों से किताबें नहीं लेने जाते थे क्योंकि कमिशन नहीं मिलता था। कक्षा नौ से 12 तक की एनसीईआरटी नई दिल्ली से कॉपीराइट प्राप्त 36 विषयों की 70 पाठ्यपुस्तकों तथा यूपी बोर्ड की हिन्दी, संस्कृत तथा उर्दू विषय की 12 पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन होगा। यूपी बोर्ड के सचिव

भगवती सिंह का कहना है कि इस साल पहली बार प्रकाशकों को हर जिले में किताबें उपलब्ध कराने की शर्त टेंडर में शामिल की गई है। इसका फायदा बच्चों को होगा और उन्हें एनसीईआरटी आधारित सस्ती किताबें मिल सकेंगी। 

यूपी बोर्ड के छात्र-छात्राओं को दस साल में पहली बार एनसीईआरटी की किताबें एक अप्रैल से पहले मिल जाएगी। यूपी बोर्ड के स्कूलों में 2016 में एनसीईआरटी की किताबें लागू होने के बाद कोई ऐसा साल नहीं रहा जब छात्र-छात्राओं को समय से किताबें मिल सकी हों।


बेसिक शिक्षा विभाग से आगे निकला यूपी बोर्ड

प्रयागराज। इस साल यूपी बोर्ड के किताबों की प्रकाशन की प्रक्रिया बेसिक शिक्षा विभाग से भी पहले शुरू हो गई है। बेसिक शिक्षा परिषद के सवा लाख से अधिक स्कूलों में अध्ययनरत कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को निःशुल्क किताबें उपलब्ध कराने के लिए हर साल नवंबर-दिसंबर में ही टेंडर जारी हो जाता है। वहीं यूपी बोर्ड के अधिकारी हर साल फरवरी-मार्च में टेंडर निकालते थे और बाजार में किताबें पहुंचते-पहुंचते जुलाई आ जाती थी। चूंकि सत्र एक अप्रैल से ही शुरू होता है तो अधिकांश बच्चे पहले ही अनाधिकृत महंगी किताबें खरीद लेते थे और बच्चों को सस्ती और अधिकृत किताबें उपलब्ध कराने की सरकार की मंशा पूरी नहीं हो पाती थी।

शिक्षक ने ले ली थी दवा की ओवरडोज, बच्चों का आधार न बनने से शिक्षक का बीईओ ने रोका था वेतन


शिक्षक ने ले ली थी दवा की ओवरडोज, बच्चों का आधार न बनने से शिक्षक का बीईओ ने रोका था वेतन

बीईओ कार्यालय की ओर से बच्चों का आधार कार्ड न बनने के चलते छह शिक्षकों का वेतन रोका गया था। बाद में अन्य शिक्षकों का वेतन बहाल हो गया, परंतु शौकिंद्र का वेतन दो माह से रुका रहा।

शौकिंद्र ने इस संबंध में बीएसए को पत्र भेजकर अपनी स्थिति बताई थी, जिस पर बीएसए ने वेतन भुगतान का निर्देश भी दिया, मगर इसके बाद बीईओ ने रोक जारी रखी कि जब तक सभी रजिस्टर आनलाइन नहीं होंगे, आख्या नहीं लगाई जाएगी। शिक्षक व बीईओ के बीच व्हाट्सएप चैटिंग भी हुई, बाद में इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हो गई। 

शिक्षक ने दीपावली के पहले घर जाने की इच्छा जताई और कहा कि सभी का वेतन जारी कर दिया गया है, केवल उनका रोका गया है। यह भी लिखा कि वे मानसिक रूप से परेशान हैं, और यदि वेतन नहीं मिला तो उनके पास आत्महत्या के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचेगा। बुधवार की रात करीब आठ बजे शौकिंद्र ने कमरे में रखी दवाओं की ओवरडोज ले ली। 

लोगों ने उन्हें चिकित्सक के पास उपचार के बाद घर भेज दिया गया। गुरुवार की सुबह फिर स्थिति गंभीर देख उन्हें सीएचसी इटवा और मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। बड़ी संख्या में शिक्षक अस्पताल पहुंचे। 

प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष राधेरमण ने कहा कि यह अत्यंत गंभीर मामला है। शिक्षक दो माह से वेतन के लिए दर-दर भटक रहा है। इससे वह मानसिक रूप से टूट गया। इस पर बीईओ पर मुकदमा दर्ज कर निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। वहीं राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिला महामंत्री पंकज त्रिपाठी व ब्लाक अध्यक्ष मो. इमरान ने कहा कि यह प्रशासनिक असंवेदनशीलता का उदाहरण है। डीएम ने तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। इसमें एडीएम, मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्साधीक्षक व बीएसए को शामिल किया गया है। 



बीईओ पर उत्पीड़न का आरोप लगाकर शिक्षक ने खाया जहर, बाधित वेतन बहाल करने की लगाई थी गुहार, सोशल मीडिया पर दी थी खुदकुशी की चेतावनी

सिद्धार्थनगर के खुनियांव ब्लॉक में तैनात हैं शोकेंद्र यादव


सिद्धार्थनगर। इटवा थाना क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय भदोखर भदोखरी में तैनात शिक्षक शोकेंद्र यादव ने बुधवार की देर शाम जहर खा लिया। मूलतः बागपत जिले के थाना सराय रसूलपुर संकुल पुठी पोआमी नगर, थाना सराय निवासी शोकेंद्र का आरोप है कि बीईओ इटवा के उत्पीड़न और बदसलूकी से तंग आकर उन्होंने यह आत्मघाती कदम उठाया।


उन्हें मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है। बीईओ ने आरोपों को गलत बताया है। वहीं, डीएम ने मामले की जांच के लिए एडीएम की अगुवाई में तीन सदस्यीय टीम गठित कर दी है। इटवा ब्लॉक क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय भदोखर भदोखरी में तैनात शोकेंद्र महादेव घूरहू निवासी जमील के मकान में किराये पर रह रहे हैं। शोकेंद्र का आरोप है कि बीईओ इटवा राजेश कुमार ने उनका वेतन बाधित कर दिया था। आरोप है कि कई बार अनुरोध के बाद भी बीईओ वेतन बहाल नहीं कर रहे थे। 

दीपावली नजदीक आने पर भी वेतन न मिल पाने से वह बहुत परेशान थे। उन्होंने बीईओ को व्हाट्सएप पर मैसेज भेजकर दीपावली से पहले वेतन बहाल करने की सिफारिश की थी। बीईओ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिलने पर वह निराश हो गए थे।

बुधवार को बीईओ को व्हॉट्सएप पर भेजे मैसेज में उन्होंने वेतन न मिलने पर खुदकुशी की बात भी लिखी थी। इसके बाद आत्मघाती कदम उठा लिया। जानकारी होने पर लोग एक प्राइवेट अस्पताल में ले गए जहां रात में इलाज चला। बृहस्पतिवार की सुबह साथी शिक्षक सीएचसी इटवा ले आए। 




Friday, October 17, 2025

अटल आवासीय विद्यालय के छात्रों को मिली नई पहचान, निराश्रित/अनाथ के बजाय अब कहलाएंगे राज्याश्रित

अटल आवासीय विद्यालय के छात्रों को मिली नई पहचान, निराश्रित/अनाथ के बजाय अब कहलाएंगे राज्याश्रित


लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने संवेदनशील निर्णय लेते हुए समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को सम्मानजनक पहचान देने की पहल की है। उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड (बीओसीडब्ल्यू) कार्यालय में बृहस्पतिवार को आयोजित अटल आवासीय विद्यालय समिति की बैठक में निर्णय लिया गया कि अब तक निराश्रित/अनाथ कहे जाने वाले विद्यार्थी अब राज्याश्रित कहलाएंगे।


अटल आवासीय विद्यालय समिति की बैठक में लिया निर्णय

बैठक की अध्यक्षता प्रमुख सचिव श्रम एवं सेवायोजन विभाग डॉ. एमके शन्मुगा सुंदरम ने की। डॉ. सुंदरम ने बताया कि यह निर्णय विद्यार्थियों को आत्मगौरव और सम्मानजनक सामाजिक पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम है। एक अन्य निर्णय में अगले शैक्षणिक सत्र 2026-27 से प्रवेश परीक्षा सेंट्रलाइज एंट्रेंस टेस्ट (सीबीएसई) के माध्यम से आयोजित की जाएगी ताकि सभी विद्यालयों में चयन प्रक्रिया में एकरूपता बनी रहे। प्रत्येक विद्यालय में इनोवेशन लैब भी बनाई जाएगी।

समिति ने सभी छात्र-छात्राओं को हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे में लाने का भी निर्णय लिया है। बैठक में हॉस्टल व्यवस्था, पोषण, खेलकूद और सह-पाठयक्रम गतिविधियों से संबंधित सुधारों पर भी विस्तार से चर्चा की गई। प्रमुख सचिव ने निर्देश दिए कि सभी विभाग मिलकर अटल आवासीय विद्यालयों को देश के मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल के रूप में विकसित करें। श्रमायुक्त मार्कण्डेय शाही, महानिदेशक अटल आवासीय विद्यालय पूजा यादव, नवोदय विद्यालय समिति के बीके सिन्हा सहित वित्त, कार्मिक एवं शिक्षा विभागों के वरिष्ठ अधिकारी और शिक्षाविद मौजूद थे। 

Thursday, October 16, 2025

टीईटी की अनिवार्यता के विरोध में दिल्ली में प्रदर्शन 24 नवंबर को, संयुक्त मोर्चा में शामिल प्रदेश के 12 शिक्षक संगठनों ने बैठक कर तय की रणनीति


टीईटी की अनिवार्यता के विरोध में दिल्ली में प्रदर्शन 24 नवंबर को, संयुक्त मोर्चा में शामिल प्रदेश के 12 शिक्षक संगठनों ने बैठक कर तय की रणनीति

शिक्षक पात्रता परीक्षा की अनिवार्यता के खिलाफ अखिल भारतीय शिक्षक संघर्ष मोर्चा की पहली राज्य स्तरीय बैठक 

शिक्षकों के अलग-अलग संगठनों ने संयुक्त मोर्चा बनाकर आंदोलन की रणनीति तैयार की 


 लखनऊ: कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की अनिवार्यता के खिलाफ देश भर के शिक्षक एकजुट हो गए हैं। बुधवार को लखनऊ में अखिल भारतीय शिक्षक संघर्ष मोर्चा की पहली राज्य स्तरीय बैठक में शिक्षकों ने 24 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर आर-पार के संघर्ष का एलान किया। बैठक में निर्णय लिया गया कि यदि केंद्र सरकार ने आदेश वापस नहीं लिया, तो पूरे देश से करीब 10 लाख शिक्षक दिल्ली पहुंचकर आंदोलन करेंगे जिनमें उत्तर प्रदेश के लगभग 1.86 लाख शिक्षक भी होंगे।

बैठक में सोचा के राष्ट्रीय संयोजक योगेश त्यागी, सह-संयोजक विनय तिवारी, अनिल यादव और संतोष तिवारी ने कहा कि 23 अगस्त 2010 से पहले कार्यरत शिक्षकों पर किसी भी दशा में टीईटी लागू नहीं होने दिया जाएगा। यदि जरूरत पड़ी तो संसद का घेराव भी किया जाएगा। बैठक में तय किया गया कि 25 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक देशभर के सभी जिलों में शिक्षकों की बैठकें आयोजित की जाएंगी ताकि 24 नवंबर के आंदोलन की पूरी तैयारी की जा सके।


नेताओं ने कहा कि एनसीटीई (नेशनल काउंसिल फार टीचर एजुकेशन) का आदेश शिक्षकों की वर्षों की मेहनत और योग्यता पर सवाल खड़ा करता है। 55 वर्ष का शिक्षक अब बच्चों को पढ़ाए या खुद परीक्षा की तैयारी करें? शिक्षक नेताओं उत्तर प्रदेश सरकार भी मांग की कि वह सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रिव्यू पिटीशन के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं का पैनल तैयार करे और केंद्र सरकार से बातचीत कर 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई द्वारा जारी आदेश के पालन की दिशा में पहल करे।

बैठक में अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के महामंत्री उमाशंकर सिंह, जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के महामंत्री नरेश कौशिक, उत्तर प्रदेश बीटीसी संघ के अध्यक्ष अनिल यादव, टीएससीटी के अध्यक्ष विवेकानंद आर्य, प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष राम प्रकाश साहू, एससी/एसटी टीचर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष सुंदर सिंह शास्त्री, यूटा के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह राठौर, महामंत्री ओम पोरवाल, अशासकीय सहायता प्राप्त शिक्षक संघ के उपाध्यक्ष सुशील सिंह, अखिल भारतीय जूनियर हाई स्कूल शिक्षक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष समर बहादुर सिंह और बेसिक शिक्षक एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र यादव प्रमुख रूप से शामिल हुए।




टेट के अनिवार्यता के खिलाफ 24 नवंबर को जंतर-मंतर पर जुटेंगे शिक्षक

लखनऊ : शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) अनिवार्यता कानून में संशोधन और पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर शिक्षक 24 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करेंगे। रविवार को अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ की आनलाइन बैठक में इसे लेकर राज्यवार जिम्मेदारियां भी सौंपी गईं। 

राष्ट्रीय अध्यक्ष वासवराज गुरिकर और महासचिव कमलाकांत त्रिपाठी ने कहा कि जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम और टेट परीक्षा व्यवस्था अस्तित्व में नहीं थी, उस समय नियुक्त शिक्षकों पर वर्तमान नियम लागू करना अन्याय है। प्रदेश अध्यक्ष विनय तिवारी ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर गठित अखिल भारतीय शिक्षक संघर्ष मोर्चा के तहत सभी संगठनों को एक मंच पर लाने की तैयारी चल रही है।




अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ की बैठक में टीईटी के मुद्दे पर सड़क से संसद तक संघर्ष का एलान

लखनऊ। अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ की राष्ट्रीय वर्किंग कमेटी की बैठक रविवार को मदुरई तमिलनाडु में हुई। इसमें टीईटी के मुद्दे पर सड़क से संसद तक संघर्ष का ऐलान किया गया।

राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि बैठक में टीईटी अनिवार्यता, विभिन्न प्रांत के शिक्षकों से संबंधित समस्याओं, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षक विरोधी मुद्दों, संविदा शिक्षको के नियमितीकरण, 8वें वेतन आयोग पर त्वरित कार्रवाई पर विस्तृत चर्चा हुई। वर्किंग कमेटी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित टीईटी अनिवार्यता के खिलाफ सभी ने एक स्वर में संघर्ष की सहमति दी। 

उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के पूर्व नियुक्त शिक्षक को टीईटी से छूट दी गई थी। इस पर एनसीटीई को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। ताकि देश भर के लाखों शिक्षकों को राहत मिल सके।

बैठक में राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने टीईटी की अनिवार्यता के खिलाफ मजबूत आंदोलन व सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी करने की रणनीति बनी। बैठक में उत्तर प्रदेश से ठाकुरदास यादव, आलोक मिश्रा, अनुज त्यागी, नरेश कौशिक, योगेश शुक्ला, संजय पांडेय आदि उपस्थित थे।




टीईटी अनिवार्यता के मामले में तमिलनाडु में आज बैठक कर रणनीति बनाएंगे शिक्षक प्रतिनिधि

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य किए जाने के बाद देश भर के शिक्षक आंदोलन तेज करने की तैयारी में जुटे हैं। इसके लिए अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की 12 अक्तूबर को तमिलनाडु के मदुरई में बैठक होगी। इसमें देश के सभी राज्यों के शिक्षक प्रतिनिधि भाग लेंगे।

राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि बैठक में आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी। टीईटी अनिवार्यता से जुड़ी जटिलताओं पर केंद्र सरकार को कैसे समाधान निकालने के लिए तैयार जाए, इस पर भी मंथन होगा। बैठक में विभिन्न राज्यों के शिक्षकों के लिए समान वेतन आयोग लागू करना, पुरानी पेंशन की बहाली आदि पर भी चर्चा होगी। 

इसके साथ ही विभिन्न राज्यों के शिक्षकों के लिए समान वेतन आयोग लागू करना, पुरानी पेंशन की बहाली विभिन्न राज्यों में खाली पदों को भरने, 8वें वेतन आयोग पर त्वरित कार्यवाही के लिए चर्चा की जाएगी। उन्होंने बताया कि बैठक में इन सभी मुद्दों को लेकर राष्ट्रीय स्तर के आंदोलन की रणनीति व तिथि भी तय की जाएगी।




टीईटी अनिवार्यता के मामले को लेकर लखनऊ में शिक्षक मोर्चा की बैठक में बनेगी रणनीति

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के मामले में चल रहा आंदोलन तेजी पकड़ रहा है। इस क्रम में प्रदेश के विभिन्न शिक्षक संगठनों - के मोर्चा अखिल भारतीय शिक्षक संघर्ष मोर्चा की पहली - बैठक 15 अक्तूबर को लखनऊ में होगी। इसमें आंदोलन - की अगली रणनीति तय की जाएगी। 

मोर्चा के राष्ट्रीय सह - संयोजक अनिल यादव ने बताया कि राजधानी के डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ हाल, लोक निर्माण विभाग में सुबह 11 बजे - से बैठक आहूत की गई है। इसमें सभी शिक्षक संगठनों के - प्रतिनिधि शामिल होंगे। वहीं जो शिक्षक संगठन मोर्चा में नहीं - भी हैं, वे भी इसमें शामिल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई शिक्षक हित की है। इसके लिए सभी का एकजुट होना जरूरी है। 




टीईटी अनिवार्यता के मुद्दे पर दीपावली बाद दिल्ली जाम करने की तैयारी

लखनऊ । टीईटी मुद्दे पर देश भर के प्राइमरी शिक्षक दीपावली बाद दिल्ली जाम करने की तैयारी में हैं। आगामी 15 अक्टूबर को इसके लिए प्रत्येक राज्य की राजधानियों में उस राज्य के शिक्षकों की बैठक बुलाई गई है। यूपी सबसे अधिक शिक्षकों वाला राज्य होने के कारण प्रस्तावित आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता की भूमिका में है।

यही कारण है कि टीईटी मामले को लेकर हाल ही में देश भर के शिक्षक संगठनों को मिलाकर बना संयुक्त मंच अखिल भारतीय शिक्षक संघर्ष मोर्चा की अगुवाई भी यूपी के ही जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष योगेश त्यागी को सौंपी गई है। योगेश मोर्चा के संयोजक बनाए गए हैं।

लखनऊ में 15 अक्तूबर को बड़े स्तर पर मोर्चा से जुड़े यूपी के सभी शिक्षक संगठनों की बैठक बुलाई गई है, जिसमें दिल्ली में नवम्बर के पहले सप्ताह में प्रस्तावित बैठक के एजेण्डे को अन्तिम रूप दिया जाएगा।


नौकरी पर संकट गहरा गया है: शिक्षक संगठन

बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से शिक्षकों की नौकरी पर संकट गहरा गया है। अगले दो वर्ष के भीतर टीईटी देनी होगी अन्यथा नौकरी छोड़नी पड़ सकती है। वहीं उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के मंत्री वीरेन्द्र सिंह का कहना है कि कोर्ट के आदेश को शिथिल कराने के लिए हम सरकार पर कानून में संशोधन करने का दबाव बना रहे हैं।


यूपी के एक संगठन ने निर्णय को दी है चुनौती

यूपी के यूनाइटेड टीचर्स एसोसिएशन (यूटा) ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह राठौर ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिक दाखिल कर केन्द्र सरकार के वर्ष 2017 के अधिनियम को चुनौती दी है, जिसमें संबंधित अधिनियम संशोधन को मौलिक अधिकारों के विरुद्ध बताते हुए असंवैधानिक करार दिया गया है।




टीईटी के मुद्दे पर केंद्र का रुख अब तक स्पष्ट न होने से शिक्षकों की बढ़ रही नाराजगी 

विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन ने बैठक कर जताई नाराजगी


लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट से टीईटी की अनिवार्यता के आदेश के एक महीने बाद भी केंद्र सरकार द्वारा अपना पक्ष स्पष्ट न करने पर प्रदेश के शिक्षकों ने नाराजगी जताई है। विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने शनिवार को बैठक कर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई और ठोस निर्णय न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी।

प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी की अध्यक्षता में हुई बैठक में पदाधिकारियों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से देश भर के शिक्षक नौकरी को लेकर चिंतित हैं। विभिन्न संगठनों ने प्रधानमंत्री व शिक्षामंत्री को हजारों पत्र भेजे हैं, लेकिन अब तक इस पर केंद्र सरकार ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। प्रदेश महासचिव दिलीप चौहान ने कहा, केंद्र सरकार को इसका समाधान प्राथमिकता से करना चाहिए।

प्रांतीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा ने कहा, अगर जल्द ही केंद्र सरकार ने स्थिति स्पष्ट नहीं की तो एसोसिएशन शिक्षक संगठनों के साथ मिलकर देशव्यापी आंदोलन के लिए बाध्य होगा। बैठक में विधि

सलाहकार आमोद श्रीवास्तव, विनीत सिंह, शशि प्रभा सिंह, राकेश तिवारी, सुशील रस्तोगी, धर्मेंद्र शुक्ला, तुलाराम गिरी, सुशील यादव आदि शामिल हुए।




कानूनी लड़ाई के साथ-साथ आंदोलन की तैयारी में भी जुटे शिक्षक संघ, टीईटी की अनिवार्यता के खिलाफ दिल्ली कूच की तैयारी

15 अक्टूबर तक कालीपट्टी बांधकर विरोध कर रहे हैं शिक्षक

परिषदीय विद्यालयों में 1.86 लाख शिक्षक बगैर टीईटी के सेवारत


लखनऊ: कक्षा एक से आठवीं तक पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए सेवा में बने रहने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा टीईटी) पास करना अनिवार्य करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विवाद गहराता जा रहा है। शिक्षक संगठनों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। वहीं, राज्य सरकार भी शिक्षकों के पक्ष में पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुकी है। अब शिक्षक संगठन कानूनी लड़ाई के साथ-साथ आंदोलन की तैयारी में भी जुट गए हैं। दिल्ली के जंतर-मंतर पर नरना-प्रदर्शन करने की रणनीति बनाई जा रही है, ताकि सरकार पर बाव बनाया जा सके। वहीं, बहुत वे शिक्षक टीईटी की तैयारियों में भी जुटे हैं।


प्रदेश में प्राथमिक व उच्च ाथमिक विद्यालयों में चार लाख ० हजार शिक्षक कार्यरत हैं, इनमें करीब एक लाख 86 हजार शिक्षक बगैर टीईटी के हैं। अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल हो चुकी है।


15 अक्टूबर तक काली पट्टी बांधकर शिक्षक आपत्ति जताते हुए शिक्षण कार्य कर रहे हैं। इसके बाद दिल्ली कूच किया जाएगा। उधर, उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने सरकार से मांग की है कि प्राथमिक विद्यालयों में 25 वर्षों से काम कर रहे बीटीसी, सीटीईटी और यूपी टीईटी पास शिक्षामित्रों को नई नियमावली बनाकर सुपर-टीईटी से मुक्त करते हुए सहायक अध्यापक पद पर स्थायी किया जाए।


प्रदेश में करीब 70 हजार ऐसे शिक्षामित्र हैं, जिनके पास बीटीसी प्रशिक्षण और टीईटी या सीटीईटी की पात्रता है। वर्तमान में प्रदेश में लगभग 1.48 लाख से अधिक शिक्षामित्र परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत हैं। इनमें से अधिकतर ने दो वर्षीय दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण पूरा कर लिया है। खास बात यह है कि करीब 70 हजार शिक्षामित्र बीटीसी के साथ टीईटी या सीटीईटी भी पास कर चुके हैं। जिस तरह उत्तराखंड सरकार ने 29 जुलाई 2019 को नियमावली जारी कर योग्य शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त किया था, उसी तरह यूपी सरकार को भी आदेश जारी करना चाहिए। जब तक सभी शिक्षामित्रों को स्थायी नियुक्ति नहीं दी जाती, तब तक उनके मानदेय में सम्मानजनक वृद्धि की जानी चाहिए।


टीईटी की तैयारी में जुटे कई शिक्षक

कई शिक्षक किसी भी स्थिति में रिस्क नहीं लेना चाहते। उन्होंने टीईटी के सैंपल पेपर खरीदकर तैयारी शुरू कर दी है। इसके साथ ही वे माक टेस्ट भी दे रहे है। कई वाट्सएप ग्रुप पर शिक्षक आपस में आनलाइन लिंक शेयर कर टीईटी का सिलेबस और माक टेस्ट उपलब्ध करा रहे हैं। यानी एक तरफ टीईटी की अनिवार्यता को लेकर विरोध और आंदोलन की तैयारी है, तो दूसरी तरफ कई शिक्षक भविष्य सुरक्षित करने के लिए परीक्षा की तैयारी में जुट गए हैं।
 

Wednesday, October 15, 2025

यूपीटीईटी आयोजन को लेकर चिंता में 1.86 लाख बेसिक शिक्षक, बिना टीईटी के नियुक्त शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष में टीईटी उत्तीर्ण करने का दिया है समय


यूपीटीईटी आयोजन को लेकर चिंता में 1.86 लाख बेसिक शिक्षक, बिना टीईटी के नियुक्त शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष में टीईटी उत्तीर्ण करने का दिया है समय

शिक्षा सेवा चयन आयोग में पूर्णकालिक अध्यक्ष के आने पर होगा परीक्षा के आयोजन पर निर्णय


प्रयागराजः एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने बिना शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए दो वर्ष में टीईटी उत्तीर्ण होने का समय दिया है तो दूसरी तरफ जिस शिक्षा सेवा चयन आयोग को यह परीक्षा करानी है, उसमें पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं हैं। 

टीईटी का आयोजन 29 व 30 जनवरी 2026 को कराए जाने का निर्णय एक अगस्त को जिस अध्यक्ष ने लिया था, वह 26 सितंबर को पद से त्यागपत्र दे चुकी हैं। ऐसे में अब इस परीक्षा के आयोजन पर निर्णय आयोग में आने वाले पूर्णकालिक अध्यक्ष को लेना है कि निर्धारित तिथि पर परीक्षा कराई जाएगी या नहीं। इस स्थिति में विशेष रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के 1.86 लाख वह शिक्षक चिंतित हैं, जो बिना टीईटी किए विद्यालयों में कार्यरत हैं।

उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) का आयोजन पहली बार उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग को कराना है। इसके पूर्व यह परीक्षा उत्तर प्रदेश परीक्षा नियामक प्राधिकारी (पीएनपी) कराता था। सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर को महत्वपूर्ण निर्णय दिया है कि बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में बिना टीईटी के चयनित शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए दो वर्ष के भीतर टीईटी उत्तीर्ण होना आवश्यक है। 

इस निर्णय का बिना टीईटी वाले कार्यरत शिक्षक विरोध कर रहे हैं। प्रदेश सरकार भी उनके साथ है और शिक्षकों के हित में सरकार पुनर्विचार की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट गई है। मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आना बाकी है, लेकिन शिक्षक टीईटी की तैयारी में जुट गए हैं, ताकि उनके विरोध में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने पर वह टीईटी उत्तीर्ण कर सेवा में बने रह सकें। 

उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट का निर्णय नहीं आता, तब तक शिक्षक टीईटी की तैयारी कर रहे हैं। उनकी चिंता को ध्यान में रखकर टीईटी आयोजन को लेकर स्थिति स्पष्ट कर जल्द परीक्षा कराई जाए, ताकि दो वर्ष के समय में दो बार परीक्षा कराए जाने पर शिक्षकों को टीईटी उत्तीर्ण होने के लिए दो अवसर मिल सकें।




प्रदेश में 1.86 लाख शिक्षक टीईटी उत्तीर्ण नहीं, टीईटी की अनिवार्यता से शिक्षकों के पदोन्नति की प्रक्रिया भी रुकी

परिषदीय विद्यालयों में वर्तमान में 4,59,490 शिक्षक कार्यरत

 लखनऊः प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में करीब 1.86 लाख शिक्षक ऐसे हैं जिन्होंने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण नहीं की है। कक्षा एक से आठवीं तक पढ़ाने वाले इन शिक्षकों के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सितंबर के आदेश के बाद चुनौती खड़ी हो गई है। आदेश के चलते शिक्षकों की पदोन्नति की प्रक्रिया भी रुक गई है। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। अब सभी की निगाहें कोर्ट और केंद्र सरकार के रुख पर टिकी हैं।

परिषदीय विद्यालयों में वर्तमान में 4,59,490 शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें से 1.86 लाख शिक्षक 2010 से पहले नियुक्त हुए थे और उन्होंने टीईटी उत्तीर्ण नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पांच साल से अधिक सेवा वाले शिक्षकों को दो वर्ष के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। पदोन्नति में भी यह शर्त लागू रहेगी। 

हालांकि प्रदेश सरकार चाहती है कि 2010 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू होने से पहले नियुक्त शिक्षकों की सेवाएं सुरक्षित रहें, भले ही उन्होंने टीईटी उत्तीर्ण न किया हो। इसी कारण विभाग के अधिकारी कानूनी विशेषज्ञों से लगातार सलाह ले रहे हैं। वहीं, टीईटी की अनिवार्यता को लेकर शिक्षकों में बेचैनी है। कई शिक्षक विरोध स्वरूप कालीपट्टी बांधकर पढ़ा रहे हैं। विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन ने केंद्र सरकार की चुप्पी पर नाराजगी जताई है।

एसोसिएशन की वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आरटीई एक्ट और 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से पहले नियुक्त शिक्षकों पर भी टीईटी की शर्त लागू कर दी है। केंद्र सरकार ने अब तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया, जो गंभीर चिंता का विषय है। वहीं, विधि सलाहकार आमोद श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश सरकार ने इस मामले को गंभीरता से उठाया है, लेकिन जब तक केंद्र सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी, तब तक शिक्षकों को पूरी राहत मिलना मुश्किल है।



टीईटी की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी एनसीटीई और केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी, शिक्षकों में बढ़ रही बेचैनी और तनाव


लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य हो गया है। आदेश को आए कई दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक न तो एनसीटीई और न ही केंद्र या राज्य सरकारों की ओर से कोई स्पष्ट बयान जारी किया गया है। इस चुप्पी ने प्रभावित शिक्षकों की बेचैनी और तनाव को और गहरा कर दिया है।

शिक्षकों का कहना है कि फैसले में किन श्रेणियों पर टीईटी की बाध्यता लागू होगी, इस पर अब तक स्थिति साफ नहीं है। 23 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को लेकर विरोधाभासी बातें सामने आ रही हैं। ऐसे में हजारों शिक्षक असमंजस में हैं कि क्या उन्हें भी परीक्षा देनी होगी या नहीं। स्पष्टता के अभाव में एक ओर शिक्षक विरोध की राह पकड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर कई शिक्षक तैयारी शुरू कर चुके हैं।

इस ऊहापोह के बीच शिक्षकों के व्हाट्सएप समूहों पर टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्रियां, सामान्य ज्ञान और विषयवार नोट्स खूब साझा किए जा रहे हैं। कुछ शिक्षक पूरी तरह पढ़ाई में जुट गए हैं, लेकिन अधिकतर शिक्षक तनाव और चिंता में हैं। उनका कहना है कि “सिर्फ विरोध से कुछ हासिल नहीं होगा, और तैयारी शुरू करने पर भी यह स्पष्ट नहीं कि वास्तव में किसे परीक्षा देनी है।”

पांच साल से अधिक सेवा अवधि वाले शिक्षकों में सबसे ज्यादा असुरक्षा है। वे मान रहे हैं कि यदि स्थिति समय रहते स्पष्ट नहीं हुई तो उनकी नौकरी संकट में पड़ सकती है। वहीं, शिक्षामित्रों का उदाहरण भी उन्हें डरा रहा है, जिन्हें पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सहायक अध्यापक से फिर शिक्षामित्र बना दिया गया था।

शासन ने 29 और 30 जनवरी को टीईटी परीक्षा की तिथियां प्रस्तावित की हैं और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। परंतु जब तक एनसीटीई और सरकारें साफ-साफ नहीं बतातीं कि किन शिक्षकों पर यह अनिवार्यता लागू होगी, तब तक असमंजस और तनाव दूर होना मुश्किल है।

शिक्षक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि तत्काल स्पष्ट बयान जारी किया जाए, ताकि अफवाहों और आशंकाओं पर विराम लगे और शिक्षक तैयारी व सेवा को लेकर निश्चिंत हो सकें।




टीईटी की अनिवार्यता : विरोध और तैयारी के बीच ऊहापोह में आम शिक्षक

 लखनऊसुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अब अनिवार्य हो गया है। आदेश ने हजारों शिक्षकों को गहरी दुविधा में डाल दिया है। एक ओर, बड़ी संख्या में शिक्षक प्रधानमंत्री कार्यालय तक पत्र लिखकर इस निर्णय से राहत की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर, वे यह भी समझ रहे हैं कि केवल विरोध से बात नहीं बनेगी। इसी ऊहापोह में कई शिक्षक अब तैयारी की ओर भी मुड़ गए हैं।


वर्तमान समय में शिक्षकों के व्हाट्सएप समूह टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्री, सामान्य ज्ञान के प्रश्नों और विषयवार नोट्स से भरे पड़े हैं। कई शिक्षक दिन-रात पढ़ाई में जुट गए हैं, तो कई अब भी इस अनिवार्यता को लेकर तनावग्रस्त हैं। जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच साल से अधिक  है, उन्हें हर हाल में परीक्षा देनी होगी, अन्यथा नौकरी संकट में पड़ सकती है। यही डर शिक्षकों के बीच तनाव और असमंजस को और बढ़ा रहा है।

टीईटी को लेकर विरोध और तैयारी की इस दोहरी स्थिति में शिक्षक खुद को मानसिक दबाव में महसूस कर रहे हैं। एक वर्ग मानता है कि इतने वर्षों तक पढ़ाने के बाद भी पात्रता पर सवाल खड़ा होना अपमानजनक है, जबकि दूसरा वर्ग यह मान रहा है कि परिस्थिति को स्वीकार कर तैयारी ही एकमात्र रास्ता है। कई शिक्षक कहते हैं कि “न तो विरोध से राहत मिलती दिख रही है और न ही तैयारी से तनाव कम हो रहा है।”

शासन ने 29 और 30 जनवरी को शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव दिया है और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। ऐसे में शिक्षकों के पास ज्यादा समय भी नहीं है। वहीं कुछ शिक्षक संगठन के जरिए विरोध की रणनीति के साथ भी खड़े हैं। 

गौरतलब है कि इससे पहले शिक्षामित्रों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रों को फिर से शिक्षामित्र बनना पड़ा था। इस पुराने अनुभव की याद भी शिक्षकों की चिंता को और गहरा रही है।

शिक्षामित्रों को जल्द मिलेगा यूपी सरकार का उपहार, बोले योगी सरकार के मंत्री अनिल राजभर

शिक्षामित्रों को जल्द मिलेगा यूपी सरकार का उपहार, बोले योगी सरकार के मंत्री अनिल राजभर 


लखनऊः शिक्षक दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आश्वासन के बाद अब डेढ़ लाख शिक्षामित्रों को सरकार की ओर से जल्द खुशखबरी मिलने की उम्मीद है। श्रम एवं सेवायोजन मंत्री अनिल राजभर ने मंगलवार को कहा कि सरकार शिक्षामित्रों के हित में सकारात्मक फैसला लेने जा रही है। वे विधानभवन के तिलक हाल में आदर्श शिक्षामित्र वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश की ओर से आयोजित शिक्षामित्र के भविष्य निर्धारण विषयक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।


कार्यक्रम में मंत्री ने कहा कि सरकार शिक्षामित्रों के संघर्ष और समर्पण को भली-भांति समझती है। बहुत जल्द उनकी मेहनत का परिणाम सामने आएगा। उन्होंने शिक्षामित्रों से अपील की कि वे पूरी निष्ठा और लगन से विद्यालयों में शिक्षण कार्य करते रहें। 

एसोसिएशन के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अमरेंद्र दुबे ने कहा कि मुख्यमंत्री ने पांच सितंबर को शिक्षामित्रों के मानदेय वृद्धि और अन्य सुविधाएं बढ़ाने का संकेत दिया था। अब पूरा प्रदेश इंतजार कर रहा है कि यह घोषणा कब अमल में आएगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरीकिशोर तिवारी ने की। कार्यशाला में प्रदेशभर से शिक्षामित्र पदाधिकारी, जिलाध्यक्ष और महिला प्रतिनिधि मौजूद थे।

माध्यमिक शिक्षकों का लंबित तबादला दिसंबर से जनवरी के मध्य होगा, शासनादेश जारी

एडेड माध्यमिक विद्यालयों के 1641 शिक्षकों का होगा ऑफलाइन तबादला

शासन ने लंबे समय से इंतजार कर रहे इन शिक्षकों को दी बड़ी राहत,  तबादले के लिए हाल ही में दिया था मंत्री आवास के सामने धरना

लखनऊ। शासन ने अशासकीय सहायता प्राप्त (एडेड) माध्यमिक विद्यालयों के 1641 प्रधानाध्यापक व शिक्षकों को बड़ी राहत दी है। जून से तबादले का इंतजार कर रहे इन शिक्षकों के ऑफलाइन तबादलों को शासन ने हरी झंडी दे दी है। खास यह है कि यह तबादले इसी सत्र में होंगे। वहीं कोई शिक्षक ऐसे विद्यालय में नहीं भेजा जाएगा, जहां वह पूर्व में रह चुका हो।

माध्यमिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने मंगलवार को इसके लिए आदेश जारी कर दिया। माध्यमिक शिक्षा निदेशक को जारी निर्देश में उन्होंने कहा है कि 1641 शिक्षकों का ही ऑफलाइन तबादला किया जाएगा। इनके बाद वर्तमान शैक्षिक सत्र में कोई और आवेदन नहीं लिया जाएगा। उन्होंने निर्देशों का सख्ती से पालन करते हुए तबादलों की कार्यवाही जल्द पूरी करने को कहा है।

बता दें कि एडेड कॉलेजों के लिए इस सत्र (2025-26) में पहली बार ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों तरीके से तबादले की प्रक्रिया अपनाई गई। नियमानुसार जून के अंत तक ऑनलाइन तबादलों की प्रक्रिया तो पूरी हो गई, लेकिन ऑफलाइन तबादलों की प्रक्रिया नहीं पूरी की जा सकी। इसके बाद शिक्षक संगठन लगातार धरना-प्रदर्शन कर ऑफलाइन हुए आवेदन की तबादला प्रक्रिया पूरी करने की मांग कर रहे थे।



माध्यमिक शिक्षकों का लंबित तबादला दिसंबर से जनवरी के मध्य होगा, शासनादेश जारी 


लखनऊ। एडेड माध्यमिक स्कूलों के 1641 प्रधान, शिक्षकों का ऑफलाइन तबादला दिसम्बर से अगले वर्ष जनवरी के बीच होगा। अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने मंगलवार को इसका आदेश जारी किया।

बीती जून माह में आए ऑफलाइन आवेदनों पर शीतकालीन अवकाश के दौरान कार्यवाही शुरू होगी। आदेश के मुताबिक ऑफलाइन स्थानान्तरण कार्यवाही किसी कारण से 27.06.2025 तक पूरी नहीं हो सकने की सूरत में निदेशालय स्तर पर लम्बित 1641 अध्यापकों के ऑफलाइन स्थानान्तरण के लिए दिशा-निर्देश करने का अनुरोध है। 

शासन ने विशेष परिस्थिति में अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत प्रधान और अध्यापकों के ऑफलाइन स्थानान्तरण के लिए व्यवस्था की है।