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Wednesday, September 17, 2025

भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर शिक्षा निदेशालय में बीएसए तलब, जानिए! विस्तार से, क्या है पूरा मामला?

भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर शिक्षा निदेशालय में बीएसए तलब


हरदोई: बेसिक शिक्षा विभाग में खंड शिक्षा अधिकारियों की बातचीत के वायरल हुए ऑडियो बीएसए के लिए मुसीबत बन गए हैं। मामले को शासन नें संज्ञान में लेते हुए उच्चस्तरीय जाँच कराई जा रही है, जिसमें बीएसए को शिक्षा निदेशक नें वायरल ऑडियो के सम्बन्ध में अपना पक्ष रखने के लिए तलब किया है। 

अपर शिक्षा निदेशक कामता राम पाल नें बीएसए हरदोई को पत्र जारी करते हुए बताया कि खंड शिक्षा अधिकारी सीमा गौतम द्वारा एक शिक्षक से रिश्वत के पैसे मांगने का ऑडियो, व बीएसए के लिए बीईओ अनिल झा द्वारा सीमा गौतम से रुपये की मांग करने का दूसरा ऑडियो सामने आया है, जिसकी जाँच डीएम हरदोई के निर्देश पर सीडीओ हरदोई से कराई गई है। जाँच के बाद बीएसए की मुसीबत और बढ़ गई है, उन्हें 18 सितंबर को दोपहर 01 बजे शिक्षा निदेशक के प्रयागराज स्थित कार्यालय में तलब किया गया है।


क्या है पूरा मामला, जानिए! विस्तार से

हरदोई।  जिले के बेसिक शिक्षा विभाग में चल रही साजिशों के ऑडियो वायरल हो रहे हैं। कुछ माह पहले वायरल हुए एक ऑडियों की जांच के बाद एक खंड शिक्षा अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति शासन में की गई।

इसके बाद संबंधित खंड शिक्षा अधिकारी ने भी ऑडियो वायरल कर दिया। इस ऑडियो में कथित तौर पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के नाम पर एक लाख रुपये की मांग दूसरे खंड शिक्षा अधिकारी कर रहे हैं। हालांकि बीएसए और खंड शिक्षा अधिकारी ने इसका खंडन किया है।

सुरसा में खंड शिक्षा अधिकारी के पद पर सीमा गौतम की तैनाती थीं। लगभग तीन माह पहले कथित रूप से एक ऑडियो वायरल हुआ। दावा है कि सुरसा के एक प्राथमिक विद्यालय में तैनात मुनिंद्र कुमार के निलंबन के कई माह बाद भी न तो जांच पूरी की गई और न ही आरोप पत्र दिया गया। आरोप था कि सीमा गौतम ने दस हजार रुपये लिए थे।

काम न होने पर यही रुपये वापस मांगे जाने का ऑडियो होने का दावा था। मामला डीएम तक पहुंचा, तो उन्होंने जांच कराई। बीएसए विजय प्रताप सिंह ने अगस्त में 13 खंड शिक्षा अधिकारियों की तैनाती में फेरबदल किया। सीमा गौतम को सुरसा से हटाकर जिला मुख्यालय संबद्ध कर दिया गया। बीएसए का दावा है कि तीन दिन पहले सीमा गौतम के निलंबन की संस्तुति शासन को भेजी गई है।

दूसरी ओर बृहस्पतिवार शाम से एक ऑडियो वायरल हो गया। सीमा गौतम का दावा है कि ऑडियो में उनकी और हरियावां के खंड शिक्षा अधिकारी अनिल कुमार झा के बीच बातचीत है। सीमा गौतम का दावा है कि अनिल झा बीएसए के नाम पर उनसे एक लाख रुपये की मांग कर रहे हैं। यह मांग कंपोजिट ग्रांट से मिले बजट को लेकर की जा रही है। उनका दावा यह भी है कि सभी खंड शिक्षा अधिकारियों से कंपोजिट ग्रांट के बजट से एक-एक लाख रुपये की वसूली अनिल कुमार झा ने बीएसए के लिए की है।


किसने क्या कहा

ऑडियो पुराना लग रहा है। इसमें कहीं भी रुपये की मांग नहीं की गई है। मेरा नाम या पदनाम इसमें कहीं नहीं आया है। किसी भी खंड शिक्षा अधिकारी से कोई वसूली नहीं की गई है।-विजय प्रताप सिंह, बीएसए 

-जिलाधिकारी महोदय ने प्रत्येक विकास खंड में एक कंपोजिट विद्यालय को मॉडल विद्यालय बनाने के लिए कहा था। इसी क्रम में खंड शिक्षा अधिकारी मुख्यालय के रूप में सभी खंड शिक्षा अधिकारियों से बात की थी। इसी क्रम में सुरसा की तत्कालीन बीईओ सीमा गौतम से भी बात हुई थी। रुपये मांगे जाने की बात बिल्कुल गलत है।-अनिल कुमार झा, खंड शिक्षा अधिकारी, हरियावां

बीएसए ने सभी बीईओ मुख्यालय के माध्यम से प्रति ब्लॉक एक लाख रुपये की मांग की थी। जिन्होंने नहीं दिया बारी-बारी से उन सभी के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। मेरे खिलाफ भी शासन को पत्र लिखा गया है। कई और साजिश कर आईजीआरएस पर भी मेरी शिकायतें कराई गईं। एडिटेड ऑडियो भी वायरल कराए गए। -सीमा गौतम, खंड शिक्षा अधिकारी, (मुख्यालय से संबद्ध)

मनमाने ढंग से फीस वसूली पर लगेगा ब्रेक, डिग्री कॉलेजों में मेडिकल व इंजीनियरिंग की तर्ज पर बीएससी बीए की भी फीस तय होगी

मनमाने ढंग से फीस वसूली पर लगेगा ब्रेक, डिग्री कॉलेजों में मेडिकल व इंजीनियरिंग की तर्ज पर बीएससी बीए की भी फीस तय होगी

प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों की तर्ज पर शुल्क निर्धारण

7925 डिग्री कॉलेजों में 54.76 लाख छात्र पढ़ रहे


लखनऊ। अब मेडिकल व इंजीनियरिंग की तर्ज पर परंपरागत पाठ्यक्रमों की भी मानक फीस निर्धारित की जाएगी। बीए, बीएससी व बीकॉम के समान्य और ऑनर्स पाठ्यक्रमों का शुल्क निर्धारण प्रोफेशनल कोर्सों की तर्ज पर किया जाएगा। उपलब्ध संसाधनों व सुविधाओं के अनुसार एक निश्चित शुल्क से अधिक कॉलेज नहीं वसूल सकेंगे। उच्च शिक्षा विभाग इसकी तैयारी में जुट गया है।


अभी बीए, बीएससी व बीकॉम की प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों की तरह कोई मानक फीस निर्धारित न होने से कॉलेज मनमाने ढंग से फीस वसूलते हैं। खासकर सेल्फ फाइनेंस कॉलेजों में स्थिति और खराब है। राजकीय, एडेड व सेल्फ फाइनेंस कॉलेजों में फीस को लेकर काफी असमानता है। किसी कॉलेज में बीए व बीएससी की फीस तीन हजार से लेकर आठ हजार रुपये है तो कहीं यह 15-20 हजार रुपये प्रति सेमेस्टर तक है।

माध्यमिक शिक्षा परिषद की वेबसाइट पर स्कूल प्रोफाइल, शिक्षकों/ कार्मिकों का विवरण, जिओ लोकेशन अपडेट करने तथा ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करने के सम्बन्ध में

कैशलेस चिकित्सा सुविधा सत्यापन से जुड़ सकती ऑनलाइन उपस्थिति, माध्यमिक विद्यालयों के पूरे स्टाफ की आनलाइन उपस्थिति करा रहा यूपी बोर्ड

शिक्षकों-शिक्षणेतर कार्मिकों को कैशलेस चिकित्सा सुविधा की सीएम ने की घोषणा

प्रयागराज : मुख्यमंत्री ने शिक्षकों एवं शिक्षणेतर कर्मचारियों को कैशलेस चिकित्सा सुविधा प्रदान किए जाने की घोषणा की है तो यूपी बोर्ड विद्यार्थियों के साथ शिक्षकों व शिक्षणेतर कर्मचारियों की आनलाइन उपस्थिति अंकित करा सकता है। यह आनलाइन उपस्थिति कैशलेस चिकित्सा सुविधा प्रदान करने में सत्यापन की दृष्टि से महत्वपूर्ण कड़ी बन सकती है। 

बोर्ड सचिव भगवती सिंह ने तीन दिन पहले प्रदेश भर के जिला विद्यालय निरीक्षकों को पत्र भेजकर कैशलेस चिकित्सा सुविधा की घोषणा के दृष्टिगत भी विद्यालयों में कार्यरत प्रधानाचार्य प्रधानाध्यापक/प्रवक्ता/शिक्षक एवं शिक्षणेतर कार्मिकों की आनलाइन उपस्थिति अंकित कराने के निर्देश दिए हैं।

वैसे तो यूपी बोर्ड स्कूल प्रोफाइल के अंतर्गत विद्यालय संबंधी जानकारियां अभी यूपी बोर्ड की वर्ष 2026 की परीक्षा की तैयारी के क्रम में अपडेट करा रहा है, लेकिन इसे भविष्य में कैशलेस चिकित्सा सुविधा से भी जोड़ा जा सकता है। आनलाइन उपस्थिति से शिक्षकों व शिक्षणेतर कर्मचारियों की प्रामाणिकता से आसानी से सत्यापित हो सकेगी। इससे शिक्षकों का फर्जीवाड़ा रोकने में भी मदद मिलेगी। 

हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट की परीक्षाओं में यूपी बोर्ड ने पाया है कि कतिपय जनपदों में वित्तविहीन विद्यालय में फर्जी शिक्षकों के नाम पंजीकृत थे। विद्यालय में पंजीकृत होने के कारण उनकी विशेष रूप से प्रायोगिक परीक्षा में ड्यूटी भी लगी। वर्ष 2025 की परीक्षा में ऐसे कुछ शिक्षक पकड़े गए थे। इसी को ध्यान में रखकर बोर्ड सचिव ने कहा है कि स्कूल प्रोफाइल के अंतर्गत आनलाइन उपस्थिति के साथ विद्यालय से संबंधित जानकारी को विशेष रुचि लेकर शुद्धता और प्रामाणिकता से अपडेट और अपलोड कराएं। जो शिक्षक व कार्मिक कार्यरत नहीं हैं, उनके नाम अनिवार्य रूप से पोर्टल से हटाएं।



माध्यमिक शिक्षा परिषद की वेबसाइट पर स्कूल प्रोफाइल, शिक्षकों/ कार्मिकों का विवरण, जिओ लोकेशन अपडेट करने तथा ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करने के सम्बन्ध में



Tuesday, September 16, 2025

CBSE : 10वीं-12वीं में 75% हाजिरी वाले ही दे सकेंगे परीक्षा, हर विषय में लगातार दो वर्ष पढ़ाई भी हुई अनिवार्य

CBSE : 10वीं-12वीं में 75% हाजिरी वाले ही दे सकेंगे परीक्षा,  हर विषय में लगातार दो वर्ष पढ़ाई भी हुई अनिवार्य


नौवीं के विषय 10वीं में नहीं बदले जा सकेंगे, 11वीं के विषय 12वीं में नहीं बदलेंगे

बोर्ड परीक्षा प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव, 75% हाजिरी अनिवार्य

ट्यूशन पर निर्भर रहने वाले विद्यार्थियों को होगी मुश्किल


नई दिल्ली। सीबीएसई की 10वीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने के लिए अब छात्रों की 75 फीसदी हाजिरी जरूरी है। साथ ही छात्र का सभी चयनित विषयों में दो साल तक लगातार पढ़ाई करना और आंतरिक मूल्यांकन भी अनिवार्य होगा। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) के तहत ये नियम तय किए हैं।


सीबीएसई बोर्ड के परीक्षा नियंत्रक संयम भारद्वाज की ओर से सोमवार को जारी अधिसूचना के तहत अब यदि किसी ने नौवीं कक्षा में कंप्यूटर और संगीत को वैकल्पिक विषय के तौर पर रखा होगा तो दसवीं तक दोनों विषय पढ़ना जरूरी होगा। इनके मूल्यांकन के आधार पर आगे बोर्ड परीक्षा में शामिल हो सकेंगे। इसी तरह 11वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा में भी चयनित विषयों की पढ़ाई जरूरी होगी।


नौंवी-दसवीं और 11वीं-12वीं कक्षा को दो वर्षीय शैक्षणिक कार्यक्रमों के तौर पर माना जाएगा। दोनों कक्षाओं के छात्र विषय नहीं बदल सकेंगे। दसवीं कक्षा में पांच मुख्य विषयों के साथ दो अतिरिक्त विषय रख सकेंगे। 11वीं व 12वीं कक्षा में भी पांच मुख्य विषयों के साथ एक अतिरिक्त विषय लेने की अनुमति होगी। 



नौवीं व 11वीं में लिए विषय को दो वर्ष पढ़ना होगा अनिवार्य : सीबीएसई

 नई दिल्ली: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने बोर्ड परीक्षाओं में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। अब 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं दो वर्षीय कार्यक्रम के रूप में मान्य होंगी। इसका अर्थ है कि किसी भी विषय में बोर्ड परीक्षा में बैठने के लिए छात्रों को उस विषय की दो वर्षों तक पढ़ाई करना अनिवार्य होगा। उदाहरण के लिए, यदि विद्यार्थी ने नौवीं कक्षा में फैशन डिजाइनिंग और पेंटिंग को वैकल्पिक विषय के रूप में चुना है, तो उसे ये दोनों विषय नौवीं के साथ-साथ 10वीं में भी पढ़ने होंगे। 10वीं में विषय बदला नहीं जा सकेगा। यही नियम 11वीं और 12वीं के लिए भी लागू होगा।

सीबीएसई के परीक्षा नियंत्रक डा. संयम भारद्वाज ने बताया कि ये बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के अनुरूप हैं, जिसका उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को और पारदर्शी और प्रभावी बनाना है। स्पष्ट किया है कि नौवीं-10वीं में छात्र पांच मुख्य विषयों के साथ दो अतिरिक्त विषय और 11वीं-12वीं में पांच मुख्य विषयों के साथ एक अतिरिक्त विषय लेने की अनुमति होगी। इसके अतिरिक्त, बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने के लिए छात्रों को कम से कम 75 प्रतिशत हाजिरी बनाए रखनी होगी और सभी विषयों में आंतरिक मूल्यांकन अनिवार्य होगा। यदि छात्र स्कुल नहीं आते हैं, तो उनका आंतरिक मूल्यांकन नहीं हो पाएगा और परिणाम घोषित नहीं किया जाएगा। नियमों का पालन न करने वाले छात्रों को आवश्यक दोहराव श्रेणी में रखा जाएगा।

सीबीएसई ने चेतावनी दी है कि वे बिना बोर्ड की अनुमति नए विषय शुरू नहीं कर सकते हैं। स्कूल के पास मान्यता प्राप्त शिक्षक, लैब और संसाधन नहीं हैं, तो वे किसी विषय को मुख्य या अतिरिक्त के रूप में नहीं पढ़ा पाएंगे। वहीं, जिन विद्यार्थियों ने अतिरिक्त विषय लिया था और वे कंपार्टमेंट या आवश्यक दोहराव की श्रेणी में हैं, उन्हें निजी तौर पर परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी।

राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति में अधिक से अधिक आवेदन हेतु माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने सभी डीआईओएस को लिखा पत्र

राष्ट्रीय आय एवं योग्यता छात्रवृत्ति के लिए आवेदन 24 सितंबर तक, 9 नवंबर को परीक्षा


लखनऊ। राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति योजना परीक्षा 2026-27 के लिए ऑनलाइन आवेदन की आखिरी तिथि 24 सितंबर है। जबकि परीक्षा का आयोजन नौ नवंबर को जिला स्तर पर होगा। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने सभी जिलों को पत्र भेजकर इसमें ज्यादा से ज्यादा आवेदन कराने के निर्देश दिए हैं। केंद्र सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश के लिए 15143 सीटों का कोटा निर्धारित किया गया है। ऐसे में विभाग का यह लक्ष्य है कि इस बार ज्यादा से ज्यादा आवेदन कराए जाएं। 



राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति में अधिक से अधिक आवेदन हेतु माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने सभी डीआईओएस को लिखा पत्र
 


Monday, September 15, 2025

टीईटी की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी एनसीटीई और केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी, शिक्षकों में बढ़ रही बेचैनी और तनाव

टीईटी की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी एनसीटीई और केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी, शिक्षकों में बढ़ रही बेचैनी और तनाव


लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य हो गया है। आदेश को आए कई दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक न तो एनसीटीई और न ही केंद्र या राज्य सरकारों की ओर से कोई स्पष्ट बयान जारी किया गया है। इस चुप्पी ने प्रभावित शिक्षकों की बेचैनी और तनाव को और गहरा कर दिया है।

शिक्षकों का कहना है कि फैसले में किन श्रेणियों पर टीईटी की बाध्यता लागू होगी, इस पर अब तक स्थिति साफ नहीं है। 23 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को लेकर विरोधाभासी बातें सामने आ रही हैं। ऐसे में हजारों शिक्षक असमंजस में हैं कि क्या उन्हें भी परीक्षा देनी होगी या नहीं। स्पष्टता के अभाव में एक ओर शिक्षक विरोध की राह पकड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर कई शिक्षक तैयारी शुरू कर चुके हैं।

इस ऊहापोह के बीच शिक्षकों के व्हाट्सएप समूहों पर टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्रियां, सामान्य ज्ञान और विषयवार नोट्स खूब साझा किए जा रहे हैं। कुछ शिक्षक पूरी तरह पढ़ाई में जुट गए हैं, लेकिन अधिकतर शिक्षक तनाव और चिंता में हैं। उनका कहना है कि “सिर्फ विरोध से कुछ हासिल नहीं होगा, और तैयारी शुरू करने पर भी यह स्पष्ट नहीं कि वास्तव में किसे परीक्षा देनी है।”

पांच साल से अधिक सेवा अवधि वाले शिक्षकों में सबसे ज्यादा असुरक्षा है। वे मान रहे हैं कि यदि स्थिति समय रहते स्पष्ट नहीं हुई तो उनकी नौकरी संकट में पड़ सकती है। वहीं, शिक्षामित्रों का उदाहरण भी उन्हें डरा रहा है, जिन्हें पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सहायक अध्यापक से फिर शिक्षामित्र बना दिया गया था।

शासन ने 29 और 30 जनवरी को टीईटी परीक्षा की तिथियां प्रस्तावित की हैं और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। परंतु जब तक एनसीटीई और सरकारें साफ-साफ नहीं बतातीं कि किन शिक्षकों पर यह अनिवार्यता लागू होगी, तब तक असमंजस और तनाव दूर होना मुश्किल है।

शिक्षक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि तत्काल स्पष्ट बयान जारी किया जाए, ताकि अफवाहों और आशंकाओं पर विराम लगे और शिक्षक तैयारी व सेवा को लेकर निश्चिंत हो सकें।




टीईटी की अनिवार्यता : विरोध और तैयारी के बीच ऊहापोह में आम शिक्षक

 लखनऊसुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अब अनिवार्य हो गया है। आदेश ने हजारों शिक्षकों को गहरी दुविधा में डाल दिया है। एक ओर, बड़ी संख्या में शिक्षक प्रधानमंत्री कार्यालय तक पत्र लिखकर इस निर्णय से राहत की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर, वे यह भी समझ रहे हैं कि केवल विरोध से बात नहीं बनेगी। इसी ऊहापोह में कई शिक्षक अब तैयारी की ओर भी मुड़ गए हैं।


वर्तमान समय में शिक्षकों के व्हाट्सएप समूह टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्री, सामान्य ज्ञान के प्रश्नों और विषयवार नोट्स से भरे पड़े हैं। कई शिक्षक दिन-रात पढ़ाई में जुट गए हैं, तो कई अब भी इस अनिवार्यता को लेकर तनावग्रस्त हैं। जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच साल से अधिक  है, उन्हें हर हाल में परीक्षा देनी होगी, अन्यथा नौकरी संकट में पड़ सकती है। यही डर शिक्षकों के बीच तनाव और असमंजस को और बढ़ा रहा है।

टीईटी को लेकर विरोध और तैयारी की इस दोहरी स्थिति में शिक्षक खुद को मानसिक दबाव में महसूस कर रहे हैं। एक वर्ग मानता है कि इतने वर्षों तक पढ़ाने के बाद भी पात्रता पर सवाल खड़ा होना अपमानजनक है, जबकि दूसरा वर्ग यह मान रहा है कि परिस्थिति को स्वीकार कर तैयारी ही एकमात्र रास्ता है। कई शिक्षक कहते हैं कि “न तो विरोध से राहत मिलती दिख रही है और न ही तैयारी से तनाव कम हो रहा है।”

शासन ने 29 और 30 जनवरी को शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव दिया है और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। ऐसे में शिक्षकों के पास ज्यादा समय भी नहीं है। वहीं कुछ शिक्षक संगठन के जरिए विरोध की रणनीति के साथ भी खड़े हैं। 

गौरतलब है कि इससे पहले शिक्षामित्रों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रों को फिर से शिक्षामित्र बनना पड़ा था। इस पुराने अनुभव की याद भी शिक्षकों की चिंता को और गहरा रही है।

Sunday, September 14, 2025

2425 आंगनबाड़ी मुख्य सेविकाओं को जिले आवंटित

2425 आंगनबाड़ी मुख्य सेविकाओं को जिले आवंटित

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में नव चयनित 2425 मुख्य सेविकाओं को जिले आवंटित कर दिए गए हैं। अब सभी जिला कार्यक्रम अधिकारियों (डीपीओ) को भी इन्हें तत्काल परियोजना पर तैनाती के निर्देश दिए गए हैं। 

हालांकि विकल्प भरने के लिए जारी जिलों की सूची को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन विभाग का दावा है कि ऑनलाइन वरीयता और मेरिट के आधार पर पारदर्शी प्रक्रिया को अपनाते हुए जिले आवंटित किए गए हैं। 

विभाग की ओर से बताया गया कि पोर्टल के माध्यम से 69 जिलों में से 2425 मुख्य सेविकाओं द्वारा अपनी जिला आवंटन प्राथमिकता दर्ज कराई गयी थी। इसमें से 2403 मुख्य सेविकाओं को उनकी प्राथमिकता के आधार पर जिलों का आवंटन किया गया जबकि शेष 22 मुख्य सेविकाओं को रैंडम आवंटन के माध्यम से जिले आवंटित किए गए हैं। 



मुख्य सेविकाओं की तैनाती के विकल्प में भी किया गया खेल, लखनऊ समेत कई जिले गायब, सीडीपीओ पद पर प्रोन्नति वाली मुख्य सेविकाओं की पोस्टिंग नहीं


लखनऊ। बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग में नव चयनित 2425 मुख्य सेविकाओं की पोस्टिंग के लिए दिए गए ऑनलाइन विकल्प में जिलों की सूची में भी खेल होने की आशंका है। इसे लेकर सवाल उठने लगे हैं कि विकल्प वाले जिलों की सूची में लखनऊ समेत पांच अन्य जिलों के नाम गायब हैं। इनमें बाराबंकी, कानपुर, गाजियाबाद, फतेहपुर व मऊ भी शामिल हैं।

वहीं, सूत्रों का कहना है कि इन जिलों में तैनात तमाम मुख्य सेविकाओं का बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) के पद पर प्रमोशन हो चुका है, लेकिन उनको जानबूझकर इसलिए तैनाती नहीं दी जा रही है कि पहले वल चयनित मुख्य सेविकाओं की तैनाती करने के बाद ही नव प्रोन्नत सीडीपीओ को तैनाती दी जाएगी। ताकि इन जिलों में रिक्त होने वाले मुख्य सेविका के पदों पर सिफारिशी मुख्य सेविकाओं को तैनात किया जा सके।

दरअसल लखनऊ व उसके नजदीक होने की वजह से बाराबंकी में तैनाती के लिए तमाम मुख्य सेविकाओं ने अर्जी लगा रखी थी। उनके लिए तमाम लोगों की मंत्री से लेकर उच्चाधिकारियों तक से सिफारिश की गई थी। इसलिए आईसीडीएस निदेशालय में बाबुओं के कॉकस ने यह फार्मूला निकाला कि नव प्रोन्नति सीडीपीओ को तैनाती न देकर इन जिलों में मुख्य सेविका के पदों को भरा दिखा दिया और 69 जिलों में तैनाती के लिए ऑनलाइन विकल्प दे दिया। जबकि कहा जा रहा है कि यदि नव प्रोन्नत सीडीपीओ की पहले तैनाती कर दी जाती इन जिलों में भी मुख्य सेविका के पद रिक्त हो जाते। लेकिन ऐसा न करने को लेकर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं।


अंतिम तिथि समाप्त अब होगी तैनाती

बता दें कि आईसीडीएस निदेशालय की ओर से नवचयनित मुख्य सेविकाओं को जिलों के चयन के लिए दिए गए विकल्प को भरने का रविवार को अंतिम दिन था। जो रात 12 बजे समाप्त हो गया है। सोमवार से मुख्यालय पर सभी विकल्पों को फाइनल करके जल्द ही तैनाती के आदेश जारी किए जाएंगे।

जहां अधिक आवेदन वही जिले गायब

सूत्रों का कहना है कि नियुक्ति पत्र पाने के बाद से ही मुख्य सेविकाओं द्वारा तैनाती के लिए अपने-अपने आवेदन जमा किए गए थे। जिसमें इन 6 जिलों में तैनाती के लिए अधिक सिफारिशें थी। उधर उच्च स्तर से भी इन जिलों में तैनाती की सिफारिश थी। खास तौर लखनऊ, गाजियाबाद, कानपुर और बाराबंकी में तैनाती के लिए अधिद दबाव था। इसलिए इन जिलों में इस संवर्ग के पदों को रिक्त ही नहीं किया गया।





नवचयनित मुख्य सेविकाओं की जनपद में तैनाती हेतु ऑनलाइन विकल्प भरे जाने के संबंध में आदेश जारी



अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयो के शिक्षक/शिक्षणेत्तर कर्मचारियो के GPF लेखाशीर्षक 8338 के अन्तर्गत जमा धनराशि पर दिनांकः 01.4.2002 से लेखाशीर्ष 8009 में स्थानान्तरित किये जाने की अवधि तक देय अद्यतन ब्याज के सम्बन्ध में

अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयो के शिक्षक/शिक्षणेत्तर कर्मचारियो के GPF लेखाशीर्षक 8338 के अन्तर्गत जमा धनराशि पर दिनांकः 01.4.2002 से लेखाशीर्ष 8009 में स्थानान्तरित किये जाने की अवधि तक देय अद्यतन ब्याज के सम्बन्ध में


अनिवार्य टीईटी को लेकर सीएम योगी से मिले एमएलसी, सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की

अनिवार्य टीईटी को लेकर सीएम योगी से मिले एमएलसी,  सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की 

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद से प्रदेश भर के शिक्षकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। इसी क्रम में भाजपा एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने शनिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की।


 उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की। एमएलसी ने बताया कि शिक्षकों के चयन के लिए अलग-अलग समय में अलग-अलग योग्यता निर्धारित थी। ऐसे में इंटर, बीपीएड-सीपीएड, बीएड प्राथमिक स्तर पर अब टीईटी के लिए अर्ह नहीं हैं।

न्यायालय के फैसले से प्रदेश के काफी शिक्षकों और उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय होने का खतरा है। शिक्षकों में काफी निराशा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के साथ ही सरकार अपनी विधायी शक्तियों का प्रयोग करते हुए नया कानून बनाने व संशोधित करने पर भी चर्चा की गई। एमएलसी ने बताया कि सीएम ने इस मामले में सकारात्मक कार्यवाही का आश्वासन दिया है। 




टीईटी से राहत के लिए प्रधानमंत्री और शिक्षामंत्री को भेजा जा रहा ज्ञापन, शिक्षक संगठनों की ओर से राहत देने की मांग हुई तेज

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद शिक्षक संगठनों ने इससे राहत देने की मांग तेज कर दी है। अलग-अलग संगठनों ने बृहस्पतिवार को भी इसके लिए प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री व स्थानीय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से ज्ञापन भेजा।

विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री व प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा को इसके लिए पत्र भेजा गया। प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने पत्र लिखकर अभियान की शुरुआत की।

प्रदेश महासचिव दिलीप चौहान ने बताया कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की अधिसूचना 23 अगस्त 2009 में कहा गया है कि शिक्षक को शिक्षण कार्य करने के लिए न्यूनतम योग्यता डिप्लोमा (बीटीसी या समकक्ष) या बीएड के साथ ही छह माह का विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण होना अनिवार्य है।

वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा, विधि सलाहकार आमोद श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश भर से शिक्षक पत्र लिखकर प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री व सचिव को इससे अवगत कराएंगे। साथ ही यह मांग करेंगे कि केंद्र सरकार इससे उच्चतम न्यायालय को अवगत कराए ताकि 23 अगस्त 2010 के पूर्व नियुक्त शिक्षकों में जो भ्रम की स्थिति पैदा हुई है, उससे राहत मिल सके।

दूसरी तरफ एक अन्य शिक्षक संगठन की ओर से बृहस्पतिवार से अपने जिले के जनप्रतिनिधियों के माध्यम से पीएम व शिक्षा मंत्री को ज्ञापन भेजने की शुरुआत की गई है। शिक्षक नेता सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि 20 सितंबर तक यह अभियान चलेगा। गलत तथ्यों को सर्वोच्च न्यायालय में रखने से शिक्षकों के सामने यह समस्या पैदा हुई है। केंद्र सरकार शिक्षा के अधिकार अधिनियम में संशोधन कर शिक्षकों की सेवा को सुरक्षित करने का काम करे।



टीईटी की अनिवार्यता को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में शिक्षकों का विरोध शुरू, अक्तूबर में दिल्ली कूच की तैयारी 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य किए जाने के आदेश के बाद प्रदेश भर के शिक्षक चिंतित और डरे हुए हैं। अगर केंद्र सरकार और शिक्षा मंत्रालय इस मामले में हस्तछेप नहीं करते हैं तो उनके सामने बडी विकट स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के आह्वान पर बुधवार को प्रदेश भर से शिक्षकों द्वार पहले दिन ही 97890 पत्र प्रधानमंत्री के नाम भेजा गया। यह कार्यक्रम 20 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान प्रदेश भर के शिक्षक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से 25 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट देने की मांग करेंगे।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा की 55 साल का शिक्षक कैसे परीक्षा पास कर पायेगा। अब शिक्षक बच्चों को पढ़ाए या अब खुद पढ़े। उन्होंने कहा की केंद्र सरकार के कानून और सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश से प्रदेश के काफी शिक्षकों की नौकरी पर संकट गहराया है। केंद्र सरकार व एनसीटीई चाहे तो शिक्षकों को राहत मिल सकती है। अगर इस समस्या का समाधान नहीं निकलता है तो अक्तूबर में देश भर के शिक्षक दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देंगे।दू

सरी ओर एक शिक्षक संगठन की ओर से प्रदेश भर में जिला मुख्यालयों पर बुधवार को प्रदर्शन कर डीएम के माध्यम से पीएम को ज्ञापन दिया गया। संगठन के सुशील कुमार पांडेय ने मांग की कि आरटीई लागू होने से पहले के शिक्षकों को इससे मुक्त रखा जाए। आरटी ई एक्ट में संशोधन किया जाए। 

वहीं विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोशिएशन 11 से 25 सितम्बर के बीच पीएम और शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर इस मामले में हस्तक्षेप की अपील करेंगे। प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने हम पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती देने के लिए अभियान चलाएंगे। प्रदेश महासचिव दिलीप चौहान ने कहा कि संगठन शिक्षकों के लिए हर स्तर पर लड़ाई लड़ेगा।



टीईटी अनिवार्यता के विरुद्ध आंदोलन करेंगे यूपी के शिक्षक

प्रभावित शिक्षक बुधवार से पीएम को भेजेंगे पांच लाख पत्र

बीटीसी शिक्षक संघ 10 से 20 सितंबर तक चलाएगा अभियान

 लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षकों के लिए टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) अनिवार्य किए जाने के आदेश के बाद देशभर के प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूलों में कार्यरत लगभग एक करोड़ शिक्षक आंदोलन की तैयारी में जुट गए हैं। 

उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के अनुसार 10 से 20 सितंबर तक प्रदेश के शिक्षक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को करीब पांच लाख पत्र भेजेंगे। इन पत्रों में 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट देने की मांग की जाएगी। 

शिक्षक संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार के कानून और सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश से देश के करीब 30 लाख शिक्षकों की नौकरी पर संकट गहराया है। केंद्र सरकार चाहे तो शिक्षकों को राहत मिल सकती है। इसी उद्देश्य से संघ ने 10 से 20 सितंबर तक पत्र भेजने का अभियान चलाने का निर्णय लिया है। शिक्षक नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर सकारात्मक पहल नहीं करती है तो अक्टूबर में देशभर के शिक्षक दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देंगे। जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की जाएगी। इसके लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं का एक पैनल निर्णय का अध्ययन कर रहा है।

आंदोलन को नैतिक समर्थन देंगे शिक्षामित्र : शिक्षक अपने आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए शिक्षामित्रों को साथ जोड़ना चाहते हैं, लेकिन शिक्षामित्रों ने साफ किया है कि वे सीधे आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे बल्कि नैतिक समर्थन देंगे। पहले जब शिक्षामित्र आंदोलनरत थे, तब सहायक अध्यापकों ने उन्हें नैतिक सहयोग दिया था।




टीईटी के खिलाफ शिक्षक संगठन हो रहे लामबंद,  सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चिंतित प्रदेश भर के शिक्षक धीरे-धीरे आंदोलन की राह पर चल निकले 

उत्तर प्रदेशीय शिक्षक संघ ने 16 को प्रदेशव्यापी आंदोलन का किया एलान

लखनऊ। सभी शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चिंतित प्रदेश भर के शिक्षक धीरे-धीरे आंदोलन की राह पर चल निकले हैं। शिक्षक संगठन इस मुद्दे को लेकर लामबंद होने लगे हैं। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की रविवार को लखनऊ स्थित शिक्षक भवन में हुई बैठक में 16 सितंबर को प्रदेशव्यापी प्रदर्शन की घोषणा की गई है।

प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि टीईटी को लेकर केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए कानून के क्रम में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से देश भर के 20 लाख शिक्षकों के सामने संकट खड़ा हुआ है। प्रदेश में भी इससे प्रभावित होने वालों की बड़ी संख्या है। संघ इसके लिए हर स्तर पर संघर्ष करेगा। बैठक में निर्णय लिया गया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून में संशोधन के लिए 16 सितंबर को सभी बीएसए कार्यालयों पर प्रदर्शन किया जाएगा। साथ ही डीएम के माध्यम से पीएम को संबोधित ज्ञापन भेजा जाएगा। उन्होंने आंदोलन में सभी शिक्षकों से शामिल होने का आह्वान किया।

संघ के महामंत्री संजय सिंह ने बताया कि जल्द एक प्रतिनिधिमंडल इस मामले में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिलेगा। जरूरत पड़ी तो इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी। बैठक में कोषाध्यक्ष शिव शंकर पांडेय, वरिष्ठ उपाध्यक्ष राधे रमण त्रिपाठी, प्रांतीय पदाधिकारी, जिला पदाधिकारी शामिल हुए। 


10 सितंबर को जिलों में होगा प्रदर्शन

लखनऊ। शिक्षकों के एक अन्य गुट ने टीईटी की अनिवार्यता को समाप्त करने के लिए प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर 10 सितंबर को प्रदर्शन की घोषणा की है। शिक्षक नेता सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि सभी जिलों में डीएम के माध्यम से प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री व सीएम को संबोधित ज्ञापन दिया जाएगा।



टीईटी की अनिवार्यता के मुद्दे पर लंबी लड़ाई लड़ेगा AIPTF 


नई दिल्लीः नौकरी में बने रहने के लिए टीईटी की अनिवार्यता के मामले में शिक्षक संघ ने लंबी लड़ाई के लिए कमर कस ली है। शिक्षकों को राहत दिलाने के लिए अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ सरकार पर नियम-कानून में संशोधन करने का दबाव बनाएगा। शिक्षक संघ मांग करेगा कि जिन शर्तों पर नियुक्ति हुई थी, उन्हीं पर शिक्षकों की नौकरी जारी रहनी चाहिए और उन्हें प्रोन्नति मिलनी चाहिए। अगर नियुक्ति के समय टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) जरूरी नहीं थी, तो अब इसे अनिवार्य नहीं किया जा सकता। हालांकि, सरकार पर राहत देने का दबाव बनाने के साथ-साथ शिक्षक संघ ने कानूनी विकल्प भी तलाशने शुरू कर दिए हैं और वकीलों से विचार-विमर्श चल रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने गत एक सितंबर को दिए फैसले में कहा है कि कक्षा एक से आठ तक के छात्रों को पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों को दो वर्ष के भीतर टीईटी पास करनी होगी। इसमें नाकाम रहने वालों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी। प्रोन्नति के लिए भी टीईटी पास करना अनिवार्य है। सिर्फ जिनकी नौकरी पांच वर्ष से कम बची है, उन्हें टीईटी से छूट है। लेकिन, प्रोन्नति पाने के लिए उन्हें भी टीईटी पास करनी होगी। कोर्ट का आदेश पूरे देश के लिए है। इससे शिक्षकों में हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि देशभर में लाखों शिक्षक हैं, जिन्होंने टीईटी नहीं किया है। 2011 से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक गई है। 

शिक्षकों की नौकरी पर संकट को देखते हुए अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ सक्रिय हो गया है। संकट का हल ढूंढने और वकीलों से विचार-विमर्श के लिए संघ के अध्यक्ष सुशील पांडेय, सचिव मनोज कुमार सहित विभिन्न राज्यों से कई शिक्षक नेता दिल्ली आए हुए हैं। सुशील कहते हैं कि शिक्षक संघ टीईटी अनिवार्य करने के कोर्ट के फैसले से राहत के लिए सरकार से बात करेगा और दबाव बनाएगा। जो शिक्षक पहले भर्ती हुए थे, वे उस समय के नियमों के साथ नियुक्त हुए थे। उनका अधिकार है कि उनकी नौकरी उन्हीं सेवा शर्तों के मुताबिक जारी रहे और उन्हीं पर प्रोन्नति दी जाए।




टीईटी बना शिक्षकों की टेंशन, सुप्रीम फैसले से बढ़ी बेचैनी, NCTE की संशोधित गाइडलाइन वापस लेने की बढ़ रही मांग

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद से प्रदेश के 4.50 लाख से अधिक शिक्षकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। शिक्षक खुद को दोराहे पर खड़ा पा रहा है। अब यह तय किया जा रहा है कि वह इस निर्णय पर पुर्नविचार के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करें या फिर आंदोलन का रास्ता अपनाएं।


उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की ओर से सात सितंबर को इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है। बैठक में केंद्र सरकार पर इस मामले में हस्तक्षेप करने की रणनीति बनाई जाएगी। साथ ही इस मामले में आगे और क्या किया जाए इस पर भी निर्णय लिया जाएगा।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने बताया कि सभी जिलों के जिलाध्यक्ष व प्रदेश के पदाधिकारी इस बैठक में शामिल होंगे। उनसे वार्ता कर आगे का निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि हम प्रदेश व केंद्र सरकार से मिलकर अपना पक्ष रखेंगे और शिक्षक विरोधी एक्ट वापस लेने की मांग करेंगे। यदि सरकार मांग नहीं मानती है तो देशव्यापी आंदोलन का निर्णय लिया जा सकता है।

डॉ. शर्मा ने कहा कि किसी भर्ती के पूर्व सरकार द्वारा संबंधित पद के लिए जो भी योग्यता निर्धारित की जाती है उसको पूरा करने वाले अभ्यर्थी ही भर्ती किये जाते हैं। प्रदेश सरकार द्वारा समय समय पर शिक्षकों की भर्ती के लिए जो भी योग्यता निर्धारित की गई, उसको पूरा करने पर ही शिक्षक भर्ती हुए हैं।

ऐसे में 25-30 साल पहले निर्धारित योग्यता पर नियुक्त शिक्षकों पर वर्तमान भर्ती के लिए निर्धारित योग्यता थोपने को बनाया गया कोई भी कानून केवल काला कानून ही कहा जाएगा। 23 अगस्त 2010 की एनसीटीई की गाइडलाइन में संशोधन देश भर के शिक्षकों के साथ धोखा है। इसी संशोधन के तहत सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के बेसिक शिक्षकों को दो साल में टेट करना अनिवार्य कर दिया है। अन्यथा सेवा से अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का आदेश जारी किया है।

आरटीई एक्ट का उल्लंघन
विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने कहा है कि आरटीई एक्ट में साफ कहा गया है कि 2010 के पूर्व नियुक्त शिक्षकों के लिए टीईटी की अनिवार्यता नही है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने शिक्षकों को अंदर से हिला दिया है। संगठन इसके लिए हर सम्भव लड़ाई लड़ेगा। प्रांतीय महासचिव दिलीप चौहान ने कहा 20 से 25 साल नौकरी करने के बाद अचानक से यह कह देना कि बिना टीईटी सेवा से बाहर होना पड़ेगा। यह शिक्षकों और उनके परिवार के साथ बहुत बड़ा अन्याय है।



सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत शिक्षक नहीं मनाएंगे शिक्षक दिवस, टीईटी मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की अपील

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक सितंबर को दिए आदेश में शिक्षण सेवा में बने रहने या पदोन्नति पाने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य करने से शिक्षक आहत हैं। अदालती फैसले से निराश शिक्षकों ने पांच सितंबर को शिक्षक दिवस नहीं मनाने का फैसला किया है। शिक्षक संगठनों ने कहा कि इस निर्णय से देश भर में 10 लाख से अधिक शिक्षकों की नौकरी पर संकट मंडरा रहा है। संगठनों ने इस मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की अपील की है।


उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा है कि नौकरी पर मंडराते खतरे के बीच शिक्षक दिवस नहीं मनाने का फैसला किया गया है। संगठन की ओर से पांच सितंबर को किए जाने वाले सम्मान के कार्यक्रम भी स्थगित कर दिए गए हैं। कहा, सरकार शिक्षक दिवस पर जिन शिक्षकों को सम्मानित करेगी उन्हें दो साल का सेवा विस्तार मिलेगा। अगर उनकी नौकरी ही नहीं बचेगी तो इस सेवा विस्तार व सम्मान का वो क्या करेंगे? उन्होंने पीएम व केंद्रीय शिक्षा मंत्री से मामले में हस्तक्षेप कर शिक्षकों के साथ न्याय करने की अपील कही। कहा, देश भर के किसी शिक्षक की नौकरी प्रभावित नहीं होगी, यही घोषणा शिक्षकों के लिए वास्तविक सम्मान होगा।

प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बासवराज गुरिकर, राष्ट्रीय महासचिव कमलाकांत त्रिपाठी, महामंत्री उमाशंकर सिंह व विनय तिवारी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर फैसले पर पुनर्विचार करने और जरूरत पर संसद से कानून पास कराने की मांग की। 

उप्र. बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने शिक्षा मंत्रालय पर टीईटी को लेकर किए गए संशोधन को छिपाने का आरोप लगाया। विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के प्रांतीय महासचिव ने भी संगठन शिक्षक दिवस न मनाने की घोषणा की है। शिक्षक नेता सुशील पांडेय ने पीएम को पत्र लिखकर सहानुभूति पूर्वक फैसला लेने का आग्रह किया है। 

Saturday, September 13, 2025

उ०प्र० माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद, द्वारा वर्ष 2026 में आयोजित की जा रही पूर्व मध्यमा से उत्तर मध्यमा स्तर तक की परीक्षाओं हेतु अग्रिम पंजीकरण एवं परीक्षा शुल्क जमा करने के सम्बन्ध में

उ०प्र० माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद, द्वारा वर्ष 2026 में आयोजित की जा रही पूर्व मध्यमा से उत्तर मध्यमा स्तर तक की परीक्षाओं हेतु अग्रिम पंजीकरण एवं परीक्षा शुल्क जमा करने के सम्बन्ध में


"सड़क सुरक्षा मित्र (Sadak Suraksha Mitra)" कार्यक्रम भारत सरकार, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के निर्देशों के समयबद्ध अनुपालन के सम्बन्ध में।

"सड़क सुरक्षा मित्र (Sadak Suraksha Mitra)" कार्यक्रम भारत सरकार, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के निर्देशों के समयबद्ध अनुपालन के सम्बन्ध में


एक ही गलती पर एक को माफी, दूसरे को सजा क्यों? हाईकोर्ट ने बीएसए इटावा के निर्णय पर नाराजगी जताते हुए हाजिर होने का दिया निर्देश

एक ही गलती पर एक को माफी, दूसरे को सजा क्यों? हाईकोर्ट ने बीएसए इटावा के निर्णय पर नाराजगी जताते हुए हाजिर होने का दिया निर्देश


प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो शिक्षकों के खिलाफ एक ही गलती की शिकायत पर एक को निलंबित करने और दूसरे को माफ करने के बीएसए इटावा के निर्णय पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि बीएसए का रवैया उनकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। यह प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग है। साथ ही अगली सुनवाई पर बीएसए इटावा को व्यक्तिगत रूपसे हाजिर होने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने इटावा के प्रबल प्रताप सिंह की याचिका पर उसके अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी को सुनकर दिया है।


एडवोकेट अग्निहोत्री त्रिपाठी का कहना था कि याची और ज्योति राव के खिलाफ सहयोगियों से दुर्व्यवहार करने की शिकायत की गई थी, जिस पर बीएसएने याची को निलंबित कर दिया। उसके खिलाफ जांच शुरू करते हुए आरोप पत्र दे दिया गया जबकि ज्योति राव के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। बीएसए का यह आदेश भेदभावपूर्ण है क्योंकि याची ने जो स्पष्टीकरण दिया उसे बीएसए ने स्वीकार नहीं किया


जबकि उसी मामले में ज्योति राव का स्पष्टीकरण स्वीकार कर लिया गया और उसके खिलाफ समस्त कार्यवाही समाप्त कर दी गई। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि दोनों अध्यापकों ने स्पष्टीकरण दिया था लेकिन बिना कोई कारण बताए मनमाने तरीके से याची के स्पष्टीकरण को असंतोषजनक करार दे दिया गया।

बेटियों की फीस माफी चार साल से प्रस्तावों में फंसी, मुख्यमंत्री ने दो अक्तूबर 2021 को लखनऊ में की थी घोषणा

बेटियों की फीस माफी चार साल से प्रस्तावों में फंसी, मुख्यमंत्री ने दो अक्तूबर 2021 को लखनऊ में की थी घोषणा

प्रयागराज। निजी स्कूल या कॉलेज में पढ़ रही एक परिवार की एक से अधिक बच्चियों में से दूसरी बच्ची की ट्यूशन फीस माफ करने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घोषणा चार साल से प्रस्तावों में ही फंसी है। मुख्यमंत्री ने दो अक्टूबर 2021 (गांधी जयंती) को लखनऊ में घोषणा की थी कि ऐसी बच्चियों की ट्यूशन फीस या तो संस्था को प्रोत्साहित करते हुए माफ कराई जाएगी या उसकी प्रतिपूर्ति राज्य सरकार करेगी।

इस संबंध में तीन दिसंबर 2024 को शिक्षा निदेशालय से प्रस्ताव भेजा गया लेकिन अफसर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सके। इसी क्रम में अभिभावकों की आय सीमा समेत अन्य बिन्दुओं पर विचार-विमर्श के लिए विशेष सचिव माध्यमिक कृष्ण कुमार गुप्त की अध्यक्षता में 20 अगस्त 2025 को हुई बैठक में तय हुआ कि आय सीमा का निर्धारण (छात्रवृत्ति/फीस प्रतिपूर्ति) समाजकल्याण विभाग की गाइडलाइन के आधार पर किया जाएगा।

फीस माफी या प्रतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत करने वाली बच्चियों/अभिभावकों को अन्य योजना से लाभ मिल रहा है या नहीं इसे फिल्टर करने के लिए समाज कल्याण विभाग के छात्रवृत्ति पोर्टल से माध्यमिक शिक्षा विभाग के इस घोषणा के क्रियान्वयन के लिए लागू की गयी योजना को एनआईसी के माध्यम से इंटीग्रेट भी करना होगा। 

वर्तमान में राजकीय/अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में ट्यूशन फीस नहीं है। वित्तविहीन विद्यालयों के संबंध में भी माध्यमिक शिक्षा विभाग की 2018 में निर्गत फीस नियमन की अधिसूचना के अनुसार ट्यूशन फीस नाम से कोई फीस नहीं ली जाती है बल्कि कम्पोजिट फीस की व्यवस्था निर्धारित है जिसमें समेकित रूप से सभी प्रकार की फीस सम्मिलित हैं। 

इन स्थितियों में घोषणा के क्रियान्वयन के लिए सुविचारित प्रस्ताव तैयार करने पर सहमति बनी है। शासन के उपसचिव संजय कुमार ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेन्द्र देव को नौ सितंबर को भेजे पत्र में फीस माफी/फीस प्रतिपूर्ति के संबंध में एक सपताह के अंदर संशोधित प्रस्ताव मांगा है।




मा० मुख्यमंत्री जी द्वारा दिनांक 02-10-2021 को जनपद लखनऊ में की गयी घोषणा संख्या YAN8/2021 (यदि शासन द्वारा निर्धारित आय सीमा से नीचे जीवन यापन करने वाले किसी परिवार की एक से अधिक बच्चियां किसी विद्यालय, महाविद्यालय अथवा संस्था में अध्ययन कर रही है तो दूसरी बच्ची की ट्यूशन फीस या तो संस्था को प्रोत्साहित करते हुए माफ करायी जायेगी या उसकी प्रतिपूर्ति राज्य सरकार द्वारा की जायेगी) के क्रियान्वयन के सम्बंध में।



Friday, September 12, 2025

टीईटी अनिवार्यता पर राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का विरोध, 15 सितंबर तक जिलाधिकारियों के माध्यम से पीएम मोदी को भेजा जाएगा ज्ञापन

टीईटी अनिवार्यता पर राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का विरोध, 15 सितंबर तक जिलाधिकारियों के माध्यम से पीएम मोदी को भेजा जाएगा ज्ञापन


लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिए जाने के फैसले को लेकर शिक्षक संगठनों का विरोध तेज हो गया है। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश ने इसे सेवा-सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मामला बताते हुए प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की अपील की है। संगठन ने ऐलान किया है कि पूरे प्रदेश में 15 सितंबर तक सभी जिलों में जिलाधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की जाएगी।

महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रो. संजय मेघावी और महासचिव जोगेंद्र पाल सिंह ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (एबीआरएसएम) पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर अपनी चिंता जता चुका है। उनका कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए पुराने नियुक्त शिक्षकों को भी टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया तो लाखों शिक्षकों की सेवा-सुरक्षा पर संकट आ जाएगा।

प्रेस नोट में स्पष्ट किया गया कि आरटीई अधिनियम 2009 एवं एनसीटीई के आदेशानुसार 23 अगस्त 2010 के पहले नियुक्त शिक्षक, जिन्हें मान्यता प्राप्त और प्रशिक्षण प्राप्त है, उन्हें सेवा-सुरक्षा का लाभ मिलना चाहिए। 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों के लिए अलग नियम बनाए गए थे, लेकिन अब पुराने और नए शिक्षकों को एक ही कसौटी पर कसना उचित नहीं होगा।

महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नारायण लाल गुप्ता ने भी केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि जिन शिक्षकों ने दशकों तक सेवाएं दी हैं, उनकी नौकरी पर खतरा डालना न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने मांग की कि सरकार शिक्षक हित में ठोस कदम उठाए और उन्हें सेवा-सुरक्षा का आश्वासन दे।

प्रदेश महामंत्री महेन्द्र कुमार ने कहा कि यह निर्णय न केवल शिक्षकों के लिए तनावपूर्ण है बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा। संगठन का मानना है कि यह फैसला उन लाखों शिक्षकों के सम्मान और स्थायित्व पर आघात करेगा, जिन्होंने वर्षों से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा को आगे बढ़ाया है।

महासंघ ने सरकार से मांग की है कि 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों की सेवा-सुरक्षा को बरकरार रखा जाए और भविष्य में भी ऐसे नियम बनाए जाएं, जिससे शिक्षक वर्ग को आश्वस्ति और स्थायित्व मिले।


बेसिक शिक्षा के अफसरों को मनमानी की आदत, हाईकोर्ट ने कहा–याचियों को परेशान करने की नीयत से नहीं करते आदेश का पालन, अफसरों को हाजिर होने का निर्देश

बेसिक शिक्षा के अफसरों को मनमानी की आदत, हाईकोर्ट ने कहा–याचियों को परेशान करने की नीयत से नहीं करते आदेश का पालन, अफसरों को हाजिर होने का निर्देश 


प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें मनमाने ढंग से काम करने की आदत है। अधिकारी याचियों को परेशान करने के लिए जानबूझकर कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करते हैं। कोर्ट ने यह टिप्प्णी 2018 के आदेश का अब तक पालन नहीं करने पर की। साथ ही कहा कि यदि 2018 के आदेश का पालन नहीं किया जाता तो अगली सुनवाई पर अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव बेसिक शिक्षा और राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद के निदेशक को उपस्थित होना होगा।



यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने उज्जमा व एक अन्य की याचिका पर दिया है। रामपुर की याची उज्जमा व चेतना सैनी 2011 में प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती में शामिल हुई थीं। जाति प्रमाण पत्र में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए बेसिक शिक्षा विभाग ने उन्हें नियुक्ति पत्र देने से मना कर दिया। इसे याचिका में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने 2018 के आदेश से याचियों के पक्ष में आदेश दिया लेकिन आदेश का पालन नहीं किया गया। इस पर याचियों दोबारा याचिका दाखिल की। 


हाईकोर्ट ने इस पर गंभीर चिंता जताई कि बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने 2018 के आदेश का पालन करने का इरादा ही नहीं दिखाया। इसकी बजाय उन्होंने 2019 में अनंतिम नियुक्ति पत्र पेश कर दावा किया कि आदेश का पालन हो गया है। कोर्ट ने इस कृत्य को न्यायालय को गुमराह करने वाला माना। साथ ही कहा कि याचियों को नियुक्ति पत्र जारी करने के कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद उन्हें परेशान किया गया और उन्हें दो बार अवमानना याचिकाएं और तीन रिट याचिकाएं करने के लिए मजबूर किया गया।

32 साल बाद शिक्षकों और बीईओ की पदोन्नति का कोटा संशोधित होने के बावजूद, 13 साल बाद भी बीईओ की पदोन्नति के आसार नहीं

32 साल बाद शिक्षकों और बीईओ की पदोन्नति का कोटा संशोधित होने के बावजूद, 13 साल बाद भी बीईओ की पदोन्नति के आसार नहीं

शिक्षकों, खंड शिक्षाधिकारियों की वरिष्ठता सूची मांगी

बीईओ की वरिष्ठता सूची पर 2016 से चला आ रहा विवाद

2012 में हुई थी पदोन्नति, बिना पदोन्नति सैकड़ों सेवानिवृत्त हुए

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग) संशोधन नियमावली 2025 के जरिए पदोन्नति कोटे में परिवर्तन के बाद शासन के उप सचिव सत्येन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेन्द्र देव से खंड शिक्षा अधिकारियों की पदोन्नति के लिए कार्यवाही एवं डीपीसी बैठक के संबंध में प्रस्ताव मांगा है। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद 13 साल बाद भी खंड शिक्षा अधिकारियों की पदोन्नति के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

तमाम कोशिशों के बावजूद 32 साल बाद पदोन्नति कोटा तो परिवर्तित हो गया लेकिन 2012-13 में खंड शिक्षाधिकारी कैडर में सम्मिलित नगर शिक्षा अधिकारियों की ओर से हाईकोर्ट में वरिष्ठता को लेकर दायर याचिका विचाराधीन होने के कारण पदोन्नति होना मुश्किल लग रही है। नगर शिक्षा अधिकारी का कैडर 1997 में डाईंग घोषित हो गया था और उन्हें 2012-13 में खंड शिक्षाधिकरी कैडर में शामिल कर लिया गया।

उत्तर प्रदेशीय विद्यालय निरीक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रमेन्द्र शुक्ला का कहना है कि नगर शिक्षा अधिकारियों को नियमानुसार वरिष्ठता सूची में सबसे नीचे होना चाहिए था लेकिन उनकी ओर से 2016 में याचिकाएं दायर कर दी गई जो विचाराधीन है। उनका कहना है कि सरकार यदि हाईकोर्ट में पैरवी करके याचिका निस्तारण करवा दें तो पदोन्नति की अड़चन दूर हो जाएगी।


32 साल बाद पदोन्नति कोटे में हुआ संशोधन

शिक्षा विभाग में समूह ख (बीएसए एवं समकक्ष) के कुल पदों में से 50 प्रतिशत पद सीधी भर्ती से जबकि 50 प्रतिशत पदोन्नति से भरे जाने की व्यवस्था है। पदोन्नति के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत पद को भरने के लिए पहले अधीनस्थ राजपत्रित (प्रधानाध्यापक) पुरुष संवर्ग व महिला संवर्ग के अलावा निरीक्षण शाखा में कार्यरत अधिकारियों का कोटा क्रमशः 61, 22 व 17 प्रतिशत निर्धारित था। पूर्व में इनके पदों की संख्या भी क्रमशः 597, 222 व 179 निर्धारित थी। बाद में पुरुष व महिला संवर्ग और निरीक्षण शाखा के स्वीकृत पदों की संख्या बढ़कर क्रमशः 768, 807 व 1031 हो गई। इस मसले पर हाईकोर्ट में याचिका दायर होने पर शासन ने पदोन्नति कोटा क्रमशः 33 प्रतिशत पुरुष, 33 फीसदी महिला (अधीनस्थ राजपत्रित) जबकि 34 प्रतिशत निरीक्षण शाखा का निर्धारित कर दिया।




BEO की 13 साल बाद भी पदोन्नति के आसार नहीं

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग) संशोधन नियमावली 2025 के जरिए पदोन्नति कोटे में परिवर्तन के बाद शासन के उप सचिव सत्येन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेन्द्र देव से खंड शिक्षा अधिकारियों की पदोन्नति के लिए कार्यवाही एवं डीपीसी बैठक के संबंध में प्रस्ताव मांगा है। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद 13 साल बाद भी खंड शिक्षा अधिकारियों की पदोन्नति के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।


तमाम कोशिशों के बावजूद 32 साल बाद पदोन्नति कोटा तो परिवर्तित हो गया लेकिन 2012-13 में खंड शिक्षाधिकारी कैडर में सम्मिलित नगर शिक्षा अधिकारियों की ओर से हाईकोर्ट में वरिष्ठता को लेकर दायर याचिका विचाराधीन होने के कारण पदोन्नति होना मुश्किल लग रही है।  नगर शिक्षा अधिकारी का कैडर 1997 में डाईंग घोषित हो गया था और उन्हें 2012-13 में खंड शिक्षाधिकरी कैडर में शामिल कर लिया गया। 


त्तर प्रदेशीय विद्यालय निरीक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रमेन्द्र शुक्ला का कहना है कि नगर शिक्षा अधिकारियों को नियमानुसार वरिष्ठता सूची में सबसे नीचे होना चाहिए था लेकिन उनकी ओर से 2016 में याचिकाएं दायर कर दी गई।जो विचाराधीन है।

Wednesday, September 10, 2025

प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में पुरा-छात्र सम्मेलन के आयोजन के सम्बन्ध में

प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में पुरा-छात्र सम्मेलन के आयोजन के सम्बन्ध में।


प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति हेतु निर्धारित शैक्षिक अर्हता को निरस्त करते हुए संशोधित शैक्षिक अर्हता निर्धारित किये जाने के संबंध में।

इंटर कॉलेजों में प्रवक्ता के लिए पीजी के साथ बीएड अनिवार्य, शासनादेश जारी, 

जीव विज्ञान के सहायक अध्यापक की अर्हता भी शामिल

लखनऊ। प्रदेश के इंटर कॉलेजों में प्रवक्ता बनने के लिए अब स्नातकोत्तर (पीजी) के साथ बीएड अनिवार्य कर दिया गया है। इस संबंध में मंगलवार को शासन ने आदेश जारी कर दिया।

विशेष सचिव कृष्ण कुमार गुप्त की ओर से माध्यमिक शिक्षा निदेशक एवं माध्यमिक शिक्षा परिषद के सभापति को भेजे गए आदेश में कहा गया है कि अभी तक इंटर कॉलजों में प्रवक्ता पद पर शिक्षकों की योग्यता स्नातकोत्तर की डिग्री ही मान्य थी, जिसमें संशोधन कर दिया गया है। अब पीजी के साथ बीएड को भी अनिवार्य कर दिया गया है। आदेश में यह भी कहा गया है कि प्रदेश के अशासकीय मान्यता/सहायता प्राप्त उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति के लिए निर्धारित शैक्षिक अर्हता को निरस्त कर नए सिरे से इसके लिए आदेश जारी कर दिए गए हैं।

उल्लेखनीय है कि पूर्व में 22 अप्रैल 2025 को जारी आदेश में हाई स्कूल में जीव विज्ञान विषय के सहायक अध्यापक की अर्हता को शामिल नहीं किया गया था, जिसे नए आदेश में शामिल कर लिया गया है। अब हाईस्कूल में जीव विज्ञान के सहायक अध्यापक पद के लिए भी बाकि विषयों की तरह ही स्नातक के साथ बीएड पास को अर्हता में शामिल किया गया है।

इस प्रकार से अब अशासकीय मान्यता / सहायता प्राप्त संस्थाओं के अध्यापकों की नियुक्ति व पदोन्नति के लिए इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम-1921 के अध्याय-2 के विनियम-1 के परिशिष्ट "क" में स्थापित हाईस्कूल के सहायक अध्यापक एवं इण्टरमीडिएट प्रवक्ता पद के लिए विषयवार शैक्षिक अर्हता निर्धारित कर दिया गया है।



विशेष सचिव ने शिक्षक भर्ती की संशोधित अर्हता जारी की, एडेड कॉलेजों की टीजीटी भर्ती में बायो फिर शामिल, प्रवक्ता नागरिक शास्त्र में अब राजनीति विज्ञान व राजनीति शास्त्र मान्य


प्रयागराज । उत्तर प्रदेश के 4512 सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों (एडेड) में प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टीजीटी) भर्ती में जीव विज्ञान विषय को फिर से शामिल कर लिया गया है। इसी के साथ जन्तु विज्ञान और वनस्पति विज्ञान से स्नातक डिग्री तथा बीएड करने वालों को टीजीटी भर्ती में मौका मिल गया है।

पोस्ट ग्रेजुएट टीचर (पीजीटी) भूगोल की अर्हता में संशोधन करते हुए बीएड के साथ परास्नातक में भूगोल विषय को अनिवार्य कर दिया गया है। अभी तक इससे संबंधित विषय से स्नातकोत्तर करने वाले अभ्यर्थी अर्ह थे। इसी प्रकार पीजीटी नागरिक शास्त्र विषय के लिए अब बीएड के साथ ही राजनीति विज्ञान अथवा राजनीति शास्त्र विषय में परास्नातक आवश्यक होगा। इस संबंध में विशेष सचिव कृष्ण कुमार गुप्त ने आदेश जारी कर शिक्षा निदेशक माध्यमिक एवं सभापति माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) को भेजा है।


शिक्षकों की सभी मांगें मानीं, टीजीटी बायो पद बहाल

प्रयागराज। शिक्षकों की शैक्षिक अर्हता संबंधी मांगों पर शासन ने ठकुराई गुट के सुझाव स्वीकार कर लिए हैं। शिक्षक संघ ने बताया कि नए शासनादेश में ठकुराई गुट की 8 मांगों के आधार पर संशोधन किया गया है। इसके साथ ही सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में टीजीटी जीव विज्ञान विषय का पद भी पुनः बहाल कर दिया गया है। प्रदेश महामंत्री लालमणि द्विवेदी ने बताया कि शासन ने संगठन के सभी सुझावों को स्वीकार कर लिया है। संगठन ने शासन और यूपी बोर्ड के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया है। लाल मणि ने बताया कि 22 अप्रैल 2025 को जारी आदेश में शिक्षकों और प्रधानाचार्यों की अर्हताओं में बड़े बदलाव किए गए थे, जिन पर संगठन ने कई कमियां बताई थीं। इसके बाद संगठन ने 24 जून, 8 जुलाई और 31 जुलाई को शासन व बोर्ड के अधिकारियों से मुलाकात कर आपत्तियां दर्ज कराई थी। बोर्ड ने एक अगस्त को संशोधन का प्रस्ताव शासन को भेजा था।




प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति हेतु निर्धारित शैक्षिक अर्हता को निरस्त करते हुए संशोधित शैक्षिक अर्हता निर्धारित किये जाने के संबंध में















टीईटी परीक्षा में आवेदन ही नहीं कर सकेंगे 50 हजार शिक्षक

टीईटी परीक्षा में आवेदन ही नहीं कर सकेंगे 50 हजार शिक्षक

लखनऊः सुप्रीम कोर्ट ने पहली से आठवीं कक्षा तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया है। शीर्ष न्यायालय के इस आदेश के बाद टीईटी पास नहीं कर पाने वाले शिक्षकों की चिंता बढ़ गई है। 

शिक्षक संगठनों का कहना है कि पांच श्रेणियों के शिक्षक टीईटी में आवेदन ही नहीं कर पाएंगे। वर्ष 2000 से पहले नियुक्त शिक्षक, स्नातक में कम 'अंक पाने वाले, बीएड उपाधिधारक, विशिष्ट बीटीसी के आधार पर नियुक्त, मृतक आश्रित कोटे के तहत नियुक्त तथा डीपीएड व बीपीएड शिक्षक इसमें शामिल हैं।  प्रदेश के शिक्षक संगठन संयुक्त मोर्चा बनाकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग कर रहे हैं।

शिक्षक संगठनों का कहना है कि कार्यरत कई शिक्षक न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के अभाव में टीईटी के लिए आवेदन तक नहीं कर पा रहे हैं। टीईटी के लिए स्नातक और बीटीसी आवश्यक है, जबकि अनेक शिक्षक इस अर्हता को पूरा नहीं कर पाएंगे। कई शिक्षकों के स्नातक में 45 प्रतिशत अंक नहीं होने से भी आवेदन में दिक्कत आएगी। शिक्षक संगठनों का दावा है कि 50 हजार से अधिक कार्यरत शिक्षकों के पास टीईटी में बैठने की न्यूनतम योग्यता ही नहीं है। संगठन सरकार से हस्तक्षेप की अपील कर रहा है। नियम स्पष्ट है कि टीईटी के लिए न्यूनतम योग्यता स्नातक के साथ बीटीसी और स्नातक में कम से कम 45 प्रतिशत अंक की है।




लगभग दो लाख बेसिक शिक्षकों की नौकरियों पर खतरा, सरकार ढूंढ़ रही विकल्प, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक टीईटी उत्तीर्ण किए बिना कोई शिक्षक पात्र नहीं

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से टीईटी व्यवस्था के पहले से नियुक्त शिक्षकों पर संकट


लखनऊ : प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में कार्यरत करीब 2 लाख शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक रही है। कारण बना है सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) उत्तीर्ण किए बिना कोई भी शिक्षक पात्र नहीं माना जा सकता। ऐसे में योगी सरकार ने शिक्षक संगठनों की चिंता के मद्देनजर शिक्षा विभाग को व्यावहारिक कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला देशभर के कक्षा 1 से 8 तक परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों के लिए है। दरअसल, 2 अगस्त 2010 को एनसीटीई ने गाइडलाइन जारी की थी। उसमें स्पष्ट किया गया था कि जो शिक्षक पहले से कार्यरत हैं या जिनकी भर्ती प्रक्रिया पहले से चल रही है, उन पर यह परीक्षा लागू नहीं होगी। लेकिन 3 अगस्त 2017 को केंद्र सरकार ने नया नियम जारी कर दिया और सभी राज्यों को जानकारी दी कि 2019 तक हर शिक्षक को टीईटी पास करना होगा।

इसके विरोध में कुछ शिक्षक सुप्रीम कोर्ट चले गए। इसी क्रम में 1 सितंबर 2025 को कोर्ट ने सभी शिक्षकों को दो साल में टीईटी परीक्षा पास करने का फैसला दिया है। इससे शिक्षकों में हड़कंप मचा हुआ है। यूपी में सरकारी प्राइमरी स्कूलों में कुल शिक्षकों की संख्या 3 लाख 38 हजार 590 है, जबकि उच्च प्राथमिक में 1 लाख 20 हजार 860 हैं यानी कुल शिक्षक 4 लाख 59 हजार 450 हैं, लेकिन निकाय, निजी, समाज कल्याण विभाग से संबद्ध आदि स्कूलों को मिलाकर संख्या दोगुनी तक पहुंच जाती है। शिक्षक संगठनों का कहना है कि करीब 1.80 लाख से 2 लाख शिक्षक सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रभावित हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाई है। संघ ने सीधे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजते हुए अपील की है कि सेवारत शिक्षकों को टीईटी अनिवार्यता से छूट दी जाए और सरकार वार्ता के लिए आगे आए। कई अनुभवी अध्यापकों ने भी दो-दो दशकों से सेवा देने के बाद अचानक परीक्षा बाध्य करने के फैसले पर आपत्ति जताई है। कई जगह विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।


सरकार की कार्रवाई पर टिकीं निगाहें

सरकार के लिए परिस्थिति सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय स्तर पर भी संवेदनशील है। ऐसे में सरकार को कोर्ट का फैसला और शिक्षकों के साथ भी न्यायोचित कदम उठाने की चुनौती है। लाखों शिक्षकों और परिवारों का भविष्य दांव पर है। सभी की नजरें अब राज्य सरकार की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं।

शिक्षा विभाग को कार्ययोजना बनाने के निर्देश

सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करा रही है। मामले को गंभीरता से लेते हुए बेसिक शिक्षा विभाग से ऐसे सभी शिक्षकों की विस्तृत सूची मांगी है, जो टीईटी नहीं पास कर सके हैं। इसके साथ ही निर्देश दिए गए है कि ऐसे शिक्षकों को अब टीईटी पास कराने की व्यावहारिक योजना बनाई जाए, ताकि उनकी सेवाएं बचाई जा सकें।




टीईटी अनिवार्यता से यूपी के 50 हजार से ज्यादा शिक्षक हो सकते हैं प्रभावित, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अध्ययन करने में जुटा बेसिक शिक्षा विभाग

 लखनऊ: कक्षा एक से आठ तक के स्कूलों में शिक्षकों की नई भर्ती, पदोन्नति और सेवा जारी रखने के लिए अब टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से शिक्षकों में बेचैनी बढ़ गई है। कई शिक्षकों को अपनी नौकरी बचाने और पदोन्नति पाने के लिए अनिवार्य रूप से टीईटी उत्तीर्ण करनी होगी। प्रदेश के 50 हजार से अधिक शिक्षकों की पदोन्नति पर इसका असर पड़ सकता है। फिलहाल बेसिक शिक्षा विभाग सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन कर रहा है।

सोमवार को आए इस आदेश के अनुसार जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच साल से कम बची है, वे बिना टीईटी के सेवानिवृत्ति तक काम कर सकते हैं। लेकिन यदि वे पदोन्नति चाहते हैं, तो उन्हें टीईटी पास करना होगा। वहीं, जो शिक्षक आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) लागू होने से पहले नियुक्त हुए हैं और जिनकी सेवा अवधि पांच साल से अधिक बची है, उन्हें दो साल के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करना होगा, अन्यथा उन्हें सेवा छोड़नी पड़ेगी।

प्रदेश में 1.30 लाख परिषदीय विद्यालय हैं। शिक्षक संघों के अनुसार करीब 30 हजार शिक्षक ऐसे हैं, जिनकी सेवा पांच से सात साल बची है और उन्हें टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा। वहीं, पदोन्नति के लिए इंतजार कर रहे करीब 50 हजार शिक्षकों पर असर पड़ सकता है। महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अभी अध्ययन किया जा रहा है। इसका असर शिक्षकों के समायोजन या स्थानांतरण पर नहीं पड़ेगा। शिक्षकों की पदोन्नति पर असर पड़ सकता है।


सरकार से याचिका दाखिल करने की मांग

प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष निर्भय सिंह का कहना है कि शिक्षकों को किसी के बहकावे में न आकर टीईटी की तैयारी करनी चाहिए। दो साल में यूपीटीईटी और सीटीईटी पास करने के छह मौके मिलेंगे। इसमें केवल पास होना है। यह उन शिक्षकों के लिए भी अवसर है, जो टीईटी पास कर चुके हैं और पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। वहीं, बीटीसी शिक्षक संघ के अध्यक्ष अनिल यादव का कहना है कि 55 साल से अधिक उम्र वाले शिक्षकों के लिए टीईटी उत्तीर्ण करना आसान नहीं होगा। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को इससे छूट मिलनी चाहिए। प्रदेश सरकार से मांग है कि इस पर पुनः याचिका दाखिल करे।




टीईटी पर निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे शिक्षक और शिक्षक sangh 

सुप्रीम कोर्ट के वकील बोले-कई मुद्दे हैं जिन्हें आधार बनाकर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे

शिक्षक संघ भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध याचिका दायर करने की तैयारी में


नई दिल्ली: कक्षा एक से आठ तक को पढ़ाने वाले शिक्षकों के सेवा में बने रहने और प्रोन्नति के लिए टीईटी परीक्षा पास करने की अनिवार्यता के फैसले के खिलाफ शिक्षक सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर विचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि कई मुद्दे हैं जिन्हें आधार बनाकर फैसले पर पुनर्विचार करने का सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश के कुछ शिक्षकों की ओर से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील राकेश मिश्रा कहते हैं कि वे फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे। उनके मुवक्किलों ने अर्जी दाखिल कर प्रोन्नति के लिए टीईटी पास करने की अनिवार्यता से छूट मांगी है। उनका कहना है कि नौकरी सिर्फ तीन-चार वर्ष की बची है, ऐसे में प्रोन्नति के लिए टीईटी पास करने की अनिवार्यता नहीं लगाई जाए। जबकि सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया है उसमें प्रोन्नति के लिए तो टीईटी पास करना अनिवार्य है ही बल्कि नौकरी में बने रहने के लिए भी जरूरी है। इससे लंबे समय से नौकरी कर रहे देश भर के शिक्षकों के लिए नई मुश्किल खड़ी हो गई है। 


पुनर्विचार याचिका में यह आधार दिया जाएगा कि अगर कोर्ट को देशभर के लिए आदेश देना था तो उसे सभी राज्यों को नोटिस जारी करना चाहिए था और सभी राज्यों शिक्षकों के आंकड़े लेकर बहस सुननी चाहिए थी, जो नहीं सुनी गई। राकेश मिश्रा कहते हैं कि पुनर्विचार याचिका में कोर्ट से टीईटी पास करने के लिए तय दो वर्ष का समय भी बढ़ाने की मांग की जाएगी। नियम हर छह महीने में टीईटी कराने का है। कोर्ट इस समय को बढ़ा देता है तो शिक्षकों को ज्यादा मौका मिलेगा। ये फैसला सिर्फ सरकारी स्कूलों पर ही नहीं, बल्कि सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों पर भी लागू होता है।

उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षक संघ के पूर्व जिला अध्यक्ष राहुल पांडेय का कहना है कि इस फैसले के खिलाफ सभी शिक्षकों को संगठित होकर अगला कदम उठाना होगा। पांडेय कहते हैं कि शिक्षक संघ के बड़े नेता भी पुनर्विचार विचार दाखिल करने पर विचार कर रहे हैं। आल इंडिया बीटीसी शिक्षक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल यादव कहते हैं कि शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य करने के फैसले से देश में कार्यरत लाखों शिक्षकों के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। फैसले से उत्तर प्रदेश में ही दो-ढाई लाख शिक्षक प्रभावित होंगे। अगर किसी शिक्षक को प्राथमिक शिक्षक से जूनियर शिक्षक के रूप में प्रोन्नत होना है तो उसे अपर प्राइमरी टीईटी पास करना होगा।

शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य के आदेश को चुनौती देगा केरल

शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य के आदेश को चुनौती देगा केरल

केरल के शिक्षा मंत्री बोले- इस फैसले से केरल के लगभग 50 हजार शिक्षकों पर पड़ सकता है प्रतिकूल प्रभाव


तिरुअनंतपुरम ।  पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करने की अनिवार्यता संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को केरल चुनौती देगा।

केरल के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ कानूनी कदम उठाएगी, जिसमें गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों में पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक के सभी सेवारत शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य कर दी गई है। 


सुप्रीम कोर्ट के एक सितंबर के आदेश में कहा गया है कि 2009 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम लागू होने से पहले नियुक्त शिक्षकों को भी सेवा में बने रहने और पदोन्नति के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए टीईटी उत्तीर्ण करना होगा।


टीईटी पास नहीं करने पर नौकरी चली जाएगी, टीईटी पास किए बिना प्रमोशन भी नहीं मिलेगा। शिवनकुट्टी के अनुसार, इस फैसले से केरल के लगभग 50 हजार शिक्षकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यह आदेश अधिकांश शिक्षकों को प्रभावित करेगा, जिससे पदोन्नति व नियुक्तियां और अधिक जटिल हो जाएंगी। शिक्षक संघों ने चिंता जताते हुए कहा कि टीईटी को पिछली तारीख से लागू करना लंबे समय से कार्यरत शिक्षकों के साथ अन्याय है।