MDM में तिथि भोजन योजना का यूपी में नहीं हो पा रहा सफल क्रियान्वयन, प्रयागराज की रिपोर्ट ने खोला सच
उत्तर प्रदेश के विद्यालयों में तिथि भोजन योजना को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। सरकार और विभागीय अधिकारी इस योजना को सामुदायिक सहभागिता और बच्चों में पोषण के प्रति जागरूकता का माध्यम मानते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत अभी भी उम्मीदों से बहुत दूर है। प्रयागराज से आई रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि योजना के दिशा-निर्देशों और वास्तविक क्रियान्वयन के बीच गहरी खाई मौजूद है।
प्रयागराज से प्रकाशित अखबारी खबरों के अनुसार, परिषदीय स्कूलों में तिथि भोजन के लिए विशेष निर्देश जारी किए गए हैं कि विद्यालय परिसर के भीतर केवल पका हुआ भोजन ही बच्चों को दिया जाए और फास्ट फूड या तले हुए पदार्थों को पूरी तरह प्रतिबंधित रखा जाए। विद्यालय प्रबंधन समिति (एसएमसी) के सदस्यों की जिम्मेदारी तय की गई है कि वे भोजन की गुणवत्ता और वितरण प्रक्रिया की निगरानी करें। यहां तक कि भोजन कराने वाला व्यक्ति भी बच्चों के साथ बैठकर भोजन करेगा, ताकि बच्चों में समानता और सहभागिता की भावना विकसित हो।
लेकिन, योजना की भावनात्मक और प्रशासनिक गंभीरता के बावजूद, राज्य के अधिकांश जिलों में यह पहल अपेक्षित रूप से सफल नहीं हो पाई है। प्रयागराज की न्यूज रिपोर्ट में साफ उल्लेख किया गया है कि बीएसए देवेंद्र सिंह के निर्देशों के बावजूद, तिथि भोजन कराने के इच्छुक लोगों की संख्या बहुत कम है। कई विद्यालयों में महीनों से कोई तिथि भोजन कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ है।
सूत्र बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक सीमाएँ, समय की कमी और अभिभावकों की अनिच्छा इसके प्रमुख कारण हैं। कई स्थानों पर एसएमसी सदस्य और ग्राम पंचायतें भी सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रही हैं। जिन विद्यालयों में तिथि भोजन होता भी है, वहाँ अक्सर मात्रा और गुणवत्ता दोनों पर सवाल उठते हैं।
विभागीय अधिकारी मानते हैं कि तिथि भोजन की भावना अत्यंत नेक है, लेकिन बिना सामुदायिक भागीदारी के यह योजना केवल कागज़ों पर ही सजीव रह जाएगी। प्रयागराज की तरह कई जिलों में जब तक स्थानीय समाज और अभिभावक सक्रिय भागीदारी नहीं निभाते, तब तक यह योजना अपने वास्तविक उद्देश्य — सामाजिक एकता, स्वच्छता और पोषण सुधार — को हासिल नहीं कर सकेगी।
इस पूरे परिदृश्य में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि योजनाओं का मसौदा और क्रियान्वयन प्रक्रिया प्रायः ज़मीनी सच्चाइयों को जाने बिना तैयार की जाती है। विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों से न तो व्यावहारिक सुझाव लिए जाते हैं, न ही स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर योजना बनाई जाती है। नतीजतन, ऐसी योजनाएँ जमीनी हकीकत से कटकर केवल “अच्छे इरादों के दस्तावेज़” बनकर रह जाती हैं। तिथि भोजन जैसी सामाजिक रूप से सार्थक पहल को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षक, अभिभावक, ग्राम प्रतिनिधि और प्रशासन — सभी एक साथ मिलकर व्यवहारिक ढंग से आगे बढ़ें, वरना यह योजना भी अन्य अनेक योजनाओं की तरह केवल आदेशों और फाइलों में सिमट कर रह जाएगी।
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