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Monday, September 15, 2025

टीईटी की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी एनसीटीई और केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी, शिक्षकों में बढ़ रही बेचैनी और तनाव

टीईटी की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी एनसीटीई और केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी, शिक्षकों में बढ़ रही बेचैनी और तनाव


लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य हो गया है। आदेश को आए कई दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक न तो एनसीटीई और न ही केंद्र या राज्य सरकारों की ओर से कोई स्पष्ट बयान जारी किया गया है। इस चुप्पी ने प्रभावित शिक्षकों की बेचैनी और तनाव को और गहरा कर दिया है।

शिक्षकों का कहना है कि फैसले में किन श्रेणियों पर टीईटी की बाध्यता लागू होगी, इस पर अब तक स्थिति साफ नहीं है। 23 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को लेकर विरोधाभासी बातें सामने आ रही हैं। ऐसे में हजारों शिक्षक असमंजस में हैं कि क्या उन्हें भी परीक्षा देनी होगी या नहीं। स्पष्टता के अभाव में एक ओर शिक्षक विरोध की राह पकड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर कई शिक्षक तैयारी शुरू कर चुके हैं।

इस ऊहापोह के बीच शिक्षकों के व्हाट्सएप समूहों पर टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्रियां, सामान्य ज्ञान और विषयवार नोट्स खूब साझा किए जा रहे हैं। कुछ शिक्षक पूरी तरह पढ़ाई में जुट गए हैं, लेकिन अधिकतर शिक्षक तनाव और चिंता में हैं। उनका कहना है कि “सिर्फ विरोध से कुछ हासिल नहीं होगा, और तैयारी शुरू करने पर भी यह स्पष्ट नहीं कि वास्तव में किसे परीक्षा देनी है।”

पांच साल से अधिक सेवा अवधि वाले शिक्षकों में सबसे ज्यादा असुरक्षा है। वे मान रहे हैं कि यदि स्थिति समय रहते स्पष्ट नहीं हुई तो उनकी नौकरी संकट में पड़ सकती है। वहीं, शिक्षामित्रों का उदाहरण भी उन्हें डरा रहा है, जिन्हें पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सहायक अध्यापक से फिर शिक्षामित्र बना दिया गया था।

शासन ने 29 और 30 जनवरी को टीईटी परीक्षा की तिथियां प्रस्तावित की हैं और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। परंतु जब तक एनसीटीई और सरकारें साफ-साफ नहीं बतातीं कि किन शिक्षकों पर यह अनिवार्यता लागू होगी, तब तक असमंजस और तनाव दूर होना मुश्किल है।

शिक्षक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि तत्काल स्पष्ट बयान जारी किया जाए, ताकि अफवाहों और आशंकाओं पर विराम लगे और शिक्षक तैयारी व सेवा को लेकर निश्चिंत हो सकें।




टीईटी की अनिवार्यता : विरोध और तैयारी के बीच ऊहापोह में आम शिक्षक

 लखनऊसुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अब अनिवार्य हो गया है। आदेश ने हजारों शिक्षकों को गहरी दुविधा में डाल दिया है। एक ओर, बड़ी संख्या में शिक्षक प्रधानमंत्री कार्यालय तक पत्र लिखकर इस निर्णय से राहत की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर, वे यह भी समझ रहे हैं कि केवल विरोध से बात नहीं बनेगी। इसी ऊहापोह में कई शिक्षक अब तैयारी की ओर भी मुड़ गए हैं।


वर्तमान समय में शिक्षकों के व्हाट्सएप समूह टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्री, सामान्य ज्ञान के प्रश्नों और विषयवार नोट्स से भरे पड़े हैं। कई शिक्षक दिन-रात पढ़ाई में जुट गए हैं, तो कई अब भी इस अनिवार्यता को लेकर तनावग्रस्त हैं। जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच साल से अधिक  है, उन्हें हर हाल में परीक्षा देनी होगी, अन्यथा नौकरी संकट में पड़ सकती है। यही डर शिक्षकों के बीच तनाव और असमंजस को और बढ़ा रहा है।

टीईटी को लेकर विरोध और तैयारी की इस दोहरी स्थिति में शिक्षक खुद को मानसिक दबाव में महसूस कर रहे हैं। एक वर्ग मानता है कि इतने वर्षों तक पढ़ाने के बाद भी पात्रता पर सवाल खड़ा होना अपमानजनक है, जबकि दूसरा वर्ग यह मान रहा है कि परिस्थिति को स्वीकार कर तैयारी ही एकमात्र रास्ता है। कई शिक्षक कहते हैं कि “न तो विरोध से राहत मिलती दिख रही है और न ही तैयारी से तनाव कम हो रहा है।”

शासन ने 29 और 30 जनवरी को शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव दिया है और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। ऐसे में शिक्षकों के पास ज्यादा समय भी नहीं है। वहीं कुछ शिक्षक संगठन के जरिए विरोध की रणनीति के साथ भी खड़े हैं। 

गौरतलब है कि इससे पहले शिक्षामित्रों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रों को फिर से शिक्षामित्र बनना पड़ा था। इस पुराने अनुभव की याद भी शिक्षकों की चिंता को और गहरा रही है।

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