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Wednesday, October 15, 2025

यूपीटीईटी आयोजन को लेकर चिंता में 1.86 लाख बेसिक शिक्षक, बिना टीईटी के नियुक्त शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष में टीईटी उत्तीर्ण करने का दिया है समय


यूपीटीईटी आयोजन को लेकर चिंता में 1.86 लाख बेसिक शिक्षक, बिना टीईटी के नियुक्त शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष में टीईटी उत्तीर्ण करने का दिया है समय

शिक्षा सेवा चयन आयोग में पूर्णकालिक अध्यक्ष के आने पर होगा परीक्षा के आयोजन पर निर्णय


प्रयागराजः एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने बिना शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए दो वर्ष में टीईटी उत्तीर्ण होने का समय दिया है तो दूसरी तरफ जिस शिक्षा सेवा चयन आयोग को यह परीक्षा करानी है, उसमें पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं हैं। 

टीईटी का आयोजन 29 व 30 जनवरी 2026 को कराए जाने का निर्णय एक अगस्त को जिस अध्यक्ष ने लिया था, वह 26 सितंबर को पद से त्यागपत्र दे चुकी हैं। ऐसे में अब इस परीक्षा के आयोजन पर निर्णय आयोग में आने वाले पूर्णकालिक अध्यक्ष को लेना है कि निर्धारित तिथि पर परीक्षा कराई जाएगी या नहीं। इस स्थिति में विशेष रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के 1.86 लाख वह शिक्षक चिंतित हैं, जो बिना टीईटी किए विद्यालयों में कार्यरत हैं।

उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) का आयोजन पहली बार उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग को कराना है। इसके पूर्व यह परीक्षा उत्तर प्रदेश परीक्षा नियामक प्राधिकारी (पीएनपी) कराता था। सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर को महत्वपूर्ण निर्णय दिया है कि बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में बिना टीईटी के चयनित शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए दो वर्ष के भीतर टीईटी उत्तीर्ण होना आवश्यक है। 

इस निर्णय का बिना टीईटी वाले कार्यरत शिक्षक विरोध कर रहे हैं। प्रदेश सरकार भी उनके साथ है और शिक्षकों के हित में सरकार पुनर्विचार की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट गई है। मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आना बाकी है, लेकिन शिक्षक टीईटी की तैयारी में जुट गए हैं, ताकि उनके विरोध में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने पर वह टीईटी उत्तीर्ण कर सेवा में बने रह सकें। 

उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट का निर्णय नहीं आता, तब तक शिक्षक टीईटी की तैयारी कर रहे हैं। उनकी चिंता को ध्यान में रखकर टीईटी आयोजन को लेकर स्थिति स्पष्ट कर जल्द परीक्षा कराई जाए, ताकि दो वर्ष के समय में दो बार परीक्षा कराए जाने पर शिक्षकों को टीईटी उत्तीर्ण होने के लिए दो अवसर मिल सकें।




प्रदेश में 1.86 लाख शिक्षक टीईटी उत्तीर्ण नहीं, टीईटी की अनिवार्यता से शिक्षकों के पदोन्नति की प्रक्रिया भी रुकी

परिषदीय विद्यालयों में वर्तमान में 4,59,490 शिक्षक कार्यरत

 लखनऊः प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में करीब 1.86 लाख शिक्षक ऐसे हैं जिन्होंने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण नहीं की है। कक्षा एक से आठवीं तक पढ़ाने वाले इन शिक्षकों के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सितंबर के आदेश के बाद चुनौती खड़ी हो गई है। आदेश के चलते शिक्षकों की पदोन्नति की प्रक्रिया भी रुक गई है। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। अब सभी की निगाहें कोर्ट और केंद्र सरकार के रुख पर टिकी हैं।

परिषदीय विद्यालयों में वर्तमान में 4,59,490 शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें से 1.86 लाख शिक्षक 2010 से पहले नियुक्त हुए थे और उन्होंने टीईटी उत्तीर्ण नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पांच साल से अधिक सेवा वाले शिक्षकों को दो वर्ष के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। पदोन्नति में भी यह शर्त लागू रहेगी। 

हालांकि प्रदेश सरकार चाहती है कि 2010 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू होने से पहले नियुक्त शिक्षकों की सेवाएं सुरक्षित रहें, भले ही उन्होंने टीईटी उत्तीर्ण न किया हो। इसी कारण विभाग के अधिकारी कानूनी विशेषज्ञों से लगातार सलाह ले रहे हैं। वहीं, टीईटी की अनिवार्यता को लेकर शिक्षकों में बेचैनी है। कई शिक्षक विरोध स्वरूप कालीपट्टी बांधकर पढ़ा रहे हैं। विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन ने केंद्र सरकार की चुप्पी पर नाराजगी जताई है।

एसोसिएशन की वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आरटीई एक्ट और 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से पहले नियुक्त शिक्षकों पर भी टीईटी की शर्त लागू कर दी है। केंद्र सरकार ने अब तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया, जो गंभीर चिंता का विषय है। वहीं, विधि सलाहकार आमोद श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश सरकार ने इस मामले को गंभीरता से उठाया है, लेकिन जब तक केंद्र सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी, तब तक शिक्षकों को पूरी राहत मिलना मुश्किल है।



टीईटी की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी एनसीटीई और केंद्र और राज्य सरकारों की चुप्पी, शिक्षकों में बढ़ रही बेचैनी और तनाव


लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य हो गया है। आदेश को आए कई दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक न तो एनसीटीई और न ही केंद्र या राज्य सरकारों की ओर से कोई स्पष्ट बयान जारी किया गया है। इस चुप्पी ने प्रभावित शिक्षकों की बेचैनी और तनाव को और गहरा कर दिया है।

शिक्षकों का कहना है कि फैसले में किन श्रेणियों पर टीईटी की बाध्यता लागू होगी, इस पर अब तक स्थिति साफ नहीं है। 23 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को लेकर विरोधाभासी बातें सामने आ रही हैं। ऐसे में हजारों शिक्षक असमंजस में हैं कि क्या उन्हें भी परीक्षा देनी होगी या नहीं। स्पष्टता के अभाव में एक ओर शिक्षक विरोध की राह पकड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर कई शिक्षक तैयारी शुरू कर चुके हैं।

इस ऊहापोह के बीच शिक्षकों के व्हाट्सएप समूहों पर टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्रियां, सामान्य ज्ञान और विषयवार नोट्स खूब साझा किए जा रहे हैं। कुछ शिक्षक पूरी तरह पढ़ाई में जुट गए हैं, लेकिन अधिकतर शिक्षक तनाव और चिंता में हैं। उनका कहना है कि “सिर्फ विरोध से कुछ हासिल नहीं होगा, और तैयारी शुरू करने पर भी यह स्पष्ट नहीं कि वास्तव में किसे परीक्षा देनी है।”

पांच साल से अधिक सेवा अवधि वाले शिक्षकों में सबसे ज्यादा असुरक्षा है। वे मान रहे हैं कि यदि स्थिति समय रहते स्पष्ट नहीं हुई तो उनकी नौकरी संकट में पड़ सकती है। वहीं, शिक्षामित्रों का उदाहरण भी उन्हें डरा रहा है, जिन्हें पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सहायक अध्यापक से फिर शिक्षामित्र बना दिया गया था।

शासन ने 29 और 30 जनवरी को टीईटी परीक्षा की तिथियां प्रस्तावित की हैं और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। परंतु जब तक एनसीटीई और सरकारें साफ-साफ नहीं बतातीं कि किन शिक्षकों पर यह अनिवार्यता लागू होगी, तब तक असमंजस और तनाव दूर होना मुश्किल है।

शिक्षक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि तत्काल स्पष्ट बयान जारी किया जाए, ताकि अफवाहों और आशंकाओं पर विराम लगे और शिक्षक तैयारी व सेवा को लेकर निश्चिंत हो सकें।




टीईटी की अनिवार्यता : विरोध और तैयारी के बीच ऊहापोह में आम शिक्षक

 लखनऊसुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अब अनिवार्य हो गया है। आदेश ने हजारों शिक्षकों को गहरी दुविधा में डाल दिया है। एक ओर, बड़ी संख्या में शिक्षक प्रधानमंत्री कार्यालय तक पत्र लिखकर इस निर्णय से राहत की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर, वे यह भी समझ रहे हैं कि केवल विरोध से बात नहीं बनेगी। इसी ऊहापोह में कई शिक्षक अब तैयारी की ओर भी मुड़ गए हैं।


वर्तमान समय में शिक्षकों के व्हाट्सएप समूह टीईटी पाठ्यक्रम की सामग्री, सामान्य ज्ञान के प्रश्नों और विषयवार नोट्स से भरे पड़े हैं। कई शिक्षक दिन-रात पढ़ाई में जुट गए हैं, तो कई अब भी इस अनिवार्यता को लेकर तनावग्रस्त हैं। जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच साल से अधिक  है, उन्हें हर हाल में परीक्षा देनी होगी, अन्यथा नौकरी संकट में पड़ सकती है। यही डर शिक्षकों के बीच तनाव और असमंजस को और बढ़ा रहा है।

टीईटी को लेकर विरोध और तैयारी की इस दोहरी स्थिति में शिक्षक खुद को मानसिक दबाव में महसूस कर रहे हैं। एक वर्ग मानता है कि इतने वर्षों तक पढ़ाने के बाद भी पात्रता पर सवाल खड़ा होना अपमानजनक है, जबकि दूसरा वर्ग यह मान रहा है कि परिस्थिति को स्वीकार कर तैयारी ही एकमात्र रास्ता है। कई शिक्षक कहते हैं कि “न तो विरोध से राहत मिलती दिख रही है और न ही तैयारी से तनाव कम हो रहा है।”

शासन ने 29 और 30 जनवरी को शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव दिया है और आवेदन प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। ऐसे में शिक्षकों के पास ज्यादा समय भी नहीं है। वहीं कुछ शिक्षक संगठन के जरिए विरोध की रणनीति के साथ भी खड़े हैं। 

गौरतलब है कि इससे पहले शिक्षामित्रों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रों को फिर से शिक्षामित्र बनना पड़ा था। इस पुराने अनुभव की याद भी शिक्षकों की चिंता को और गहरा रही है।

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