किताबों के लिए खुले बाजार के भरोसे हैं बेसिक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों के छात्र
किताबों के लिए खुले बाजार के भरोसे हैं बेसिक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों के छात्र
लखनऊ: बेसिक शिक्षा परिषद के सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त किताबें मिलती है, उसी परिषद को अपने 74 हजार से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों की कोई फिक्र नहीं है। उनके लिए बाजार में भी परिषद की अधिकृत किताबें उपलब्ध नहीं है। परिषद अभी तक अपने अधिकृत प्रकाशकों को कवर छपवाकर नहीं दे सका है। प्राइवेट स्कूलों के बच्चों को खुले बाजार के भरोसे छोड़ दिया है। वे निजी प्रकाशकों की मनमाने दामों पर बिक रही किताबें खरीदने को मजबूर हैं।
इन छात्रों के लिए मुफ्त किताबे :
बेसिक शिक्षा परिषद के 1.32 लाख अपने सरकारी स्कूल है। वहीं 2,965 एडेड स्कूल है। इसके अलावा 746 कस्तूरबा गांधी विद्यालय है। इन सबमें पढ़ने वाले बच्चों को तो बेसिक शिक्षा विभाग मुफ्त किताबें छपवाकर देता है। इसके लिए विभाग ही टेंडर करता है और तय पाठ्य सामग्री होती है। कक्षा एक से तीन तक NCERT पाठ्यक्रम लागू है। विभाग NCERT की अनुमति से अपने अधिकृत प्रकाशकों से किताबें छपवाता है और बच्चों को मुफ्त दी जाती है।
किताबे भी अलग-अलग बेसिक
शिक्षा परिषद प्राइवेट स्कूलों को भी मान्यता देता है। ऐसे स्कूलों की संख्या 74,471 है। ये भी उसी परिषद से मान्यता प्राप्त है। इनके लिए बाजार में अलग-अलग प्रकाशकों की किताबें मौजूद है। सबके दाम भी अलग-अलग है। इतना ही नहीं किताबें भी वे अलग-अलग तरह की छाप रहे हैं। किसी प्रकाशक की किताब में काफी कम पेज और पाठ है और किसी में ज्यादा। प्राइवेट स्कूलों के छात्र इन किताबों को ही खरीदने के लिए मजबूर है।
'समान वोर्ड तो किताबें भी समान हो'
लखनऊ के ही एक स्कूल के प्रबंधक रामानंद सैनी कहते हैं कि बाजार में जो किताबें मिल रही है, वही बच्चे खरीद रहे है। हाल ही में विधान परिषद में भी यह मुद्दा उठाने वाले डॉ. मान सिंह कहते हैं कि सरकार ने बच्चों को बाजार के भरोसे छोड़ दिया है। शिक्षा की कोई चिंता ही नहीं है। वहीं प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन के अध्यक्ष विनय कुमार सिंह कहते हैं कि एक बोर्ड और एक कोर्स है तो किताबें एक जैसी ही होनी चाहिए।
क्या है प्रक्रिया
नियम है कि प्राइवेट स्कूलों के लिए भी सरकारी की तरह समान किताबें बाजार में आएंगी। सरकारी किताबें छापने का जो टेंडर प्रकाशकों को दिया गया है, वे ही बाजार में भी किताबें बेचेंगे। उन प्रकाशकों को विभाग सरकारी प्रिंटिंग प्रेस से कवर पेज छपवाकर देगा। अप्रैल से सत्र चल रहा है लेकिन ये कवर पेज छपवाकर अभी उन प्रकाशकों को दिया ही नहीं गया है। इसका फायदा उठाकर निजी प्रकाशकों ने पहले ही अपनी किताबें बाजार में उतार दीं। बच्चों की भी मजबूरी है कि पढ़ाई करनी है तो वे किताबें खरीदें।
सरकारी किताबे जो प्रकाशक छापते है, उनको कवर पेज छपवाकर दिया जाता है। प्रक्रिया चल रही है। उनको यह कवर पेज छपवाकर दिया जाएगा। - माधव जी तिवारी, पाठ्य पुस्तक अधिकारी
तो ये पूरा खेल मुनाफे का है
यहां पूरा खेल मुनाफे का है। सरकारी किताबे बाजार में जाएंगी तो उनके रेट भी तय होंगे। उसमें उन प्रकाशकों को बहुत मुनाफा नहीं होगा। इसलिए सरकारी किताबे छापने वाले प्रकाशक भी रुचि नहीं लेते कि वे उस रेट पर किताबे बेचे। जो प्रकाशक बाजार में किताबे बेच रहे है, वे मनमाना मुनाफा लेकर अपने हिसाब से दाम तय कर रहे है। सूत्रों के अनुसार अंदर की बात तो ये है कि ये प्रकाशक स्कूलों को भी कमिशन देते है। ऐसे में मुनाफा उनका है। विभाग की लेटलतीफी और सुस्ती भी आशंका पैदा करती है। इस तरह प्राइवेट प्रकाशको के इस खेल में सबका मुनाफा है।

