निपुण प्लस एप में विसंगतियों को लेकर बेसिक शिक्षक परेशान, विभाग से की सुधार की मांग
उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में कक्षा 1 से 8 तक के विद्यार्थियों की दक्षता जांचने के लिए 'निपुण लक्ष्य प्लस' नामक मोबाइल एप्लिकेशन लांच किया गया है। इस ऐप को डिजिटल नवाचार के रूप में प्रस्तुत किया गया है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कार्य कर रहे शिक्षकों और छात्रों के अनुभव इसके ठीक उलट कहानी बयान कर रहे हैं। प्रदेश के विभिन्न जिलों से प्राप्त शिक्षकीय फीडबैक के अनुसार इस ऐप में कई तकनीकी और संरचनात्मक खामियाँ हैं, जो इसके उद्देश्य और प्रभावशीलता दोनों को ही प्रश्नों के घेरे में खड़ा कर रही हैं।
शिक्षकों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि ऐप बच्चों द्वारा दिए गए सही उत्तरों को भी गलत बता देता है, जिससे बच्चे का आत्मविश्वास प्रभावित होता है। एक भी उत्तर गलत होने पर बच्चे को 'प्रगतिशील' श्रेणी में डाल दिया जाता है, चाहे उसने अन्य सभी उत्तर सही दिए हों। इससे छात्र के वास्तविक स्तर का मूल्यांकन नहीं हो पाता और न ही उसकी मेहनत का समुचित सम्मान होता है। इससे बड़ी विडंबना यह है कि ऐप में पूछे जा रहे सवाल अक्सर उस कक्षा के उन पाठों से होते हैं जिन्हें अभी पढ़ाया ही नहीं गया होता। बच्चों से ऐसे पाठों पर आधारित सवाल पूछना जिनसे वे अभी परिचित ही नहीं हैं, एक अव्यावहारिक और अवैज्ञानिक पद्धति प्रतीत होती है, जो केवल आँकड़ों के पीछे की होड़ को दर्शाती है, न कि बच्चे की वास्तविक समझ को।
एक अन्य बड़ी समस्या संयुक्त विषय मूल्यांकन की है, जहाँ कई विषयों को एक साथ जोड़कर बच्चे का स्तर निर्धारित किया जाता है। यदि बच्चा किसी एक विषय में गलती करता है तो वह पूरे मूल्यांकन को प्रभावित कर देता है, भले ही बाकी विषयों में उसका प्रदर्शन उत्कृष्ट हो। यह तरीका न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि अधिगम मनोविज्ञान के बुनियादी सिद्धांतों के भी विरुद्ध है। शिक्षक इस बात को लेकर भी असंतुष्ट हैं कि मूल्यांकन की प्रक्रिया में कोई लचीलापन नहीं रखा गया है। स्वाभाविक है कि कोई भी बच्चा यदि 12 में से 1 या 2 सवाल गलत कर देता है, तो उसकी दक्षता को पूरी तरह खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
शिक्षकों का कहना है कि इस ऐप को बिना फील्ड ट्रायल या उपयोगकर्ता फीडबैक के ही लागू कर दिया गया, जिससे जमीनी कठिनाइयों की पहचान ही नहीं हो सकी। निपुण प्लस ऐप के संचालन में तकनीकी खामियों की सूचना मिलने के बावजूद विभाग द्वारा अभी तक कोई स्पष्ट समाधान या दिशानिर्देश जारी नहीं किए गए हैं।
शिक्षकों की राय है कि किसी भी ऐप के निर्माण और लांच से पहले उसका सीमित स्तर पर परीक्षण आवश्यक होता है, जिसमें विभिन्न सामाजिक, भौगोलिक और मानसिक पृष्ठभूमियों के छात्र-छात्राओं को शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षक, जो इस पूरी प्रक्रिया के सबसे निकटवर्ती और अनुभवी प्रयोक्ता हैं, उनके फीडबैक को नजरअंदाज कर देना दूरदर्शिता नहीं बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह स्पष्ट है कि डिजिटल नवाचार का उद्देश्य केवल ऐप लांच करना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह नवाचार तब ही सार्थक होगा जब वह व्यवहारिक, मानवीय और शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से उपयुक्त हो। शिक्षकों की समस्याएँ, छात्रों की मानसिक स्थिति और स्थानीय शैक्षिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखे बिना किया गया कोई भी डिजिटल हस्तक्षेप शिक्षा के उद्देश्यों को पूर्ण करने के बजाय उन्हें भटका सकता है।
अतः विभाग को चाहिए कि वह निपुण प्लस जैसे किसी भी तकनीकी उपक्रम को एक निर्देश नहीं, बल्कि सुधार की एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखे, जिसमें शिक्षक और छात्र दोनों की सहभागिता अनिवार्य हो। तभी 'निपुण भारत मिशन' की संकल्पना सच्चे अर्थों में साकार हो पाएगी।
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