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Saturday, August 9, 2025

किसी चूक के लिए 14 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति रद्द करना गलत, हाईकोर्ट ने बर्खास्त करने के आदेश को किया रद्द

मनमाने तौर पर निरस्त नहीं कर सकते नियमित नियुक्ति : हाई कोर्ट



 प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अधिकारी अपनी लापरवाही के लिए 14 वर्ष बाद विहित प्रक्रिया से की गई अनुकंपा नियुक्ति को निरस्त नहीं कर सकते। याची पर फ्राड या मिथ्या तथ्य देकर नियुक्ति पाने का आरोप नहीं है, उसने अपनी मां के सहायक अध्यापक होने का तथ्य भी नियुक्ति के समय छिपाया नहीं था। अधिकारियों ने सभी दस्तावेजों का सत्यापन करके नियुक्ति की थी।

विभाग में ही कार्यरत मां के बारे में पता न लगा पाने वाले अधिकारी लंबे अंतराल के बाद तथ्य छिपाने के आरोप में याची लिपिक की अनुकंपा नियुक्ति निरस्त नहीं कर सकते।

नियुक्ति का ऐसा कोई फार्मेट नहीं था जिसमें मां के सरकारी सेवा में होने का जिक्र किया जाता, ऐसा करना बाध्यकारी नहीं था। नियमित नियुक्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया के मनमाने तौर पर निरस्त नहीं

किया जा सकता। सभी दस्तावेजों की समीक्षा के बाद हुई नियुक्ति वापस नहीं ली जा सकती। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने शिवकुमार की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने हाथरस में वरिष्ठ लिपिक शिव कुमार के खिलाफ 31 मई 2023 का बर्खास्तगी आदेश रद कर सभी सेवाजनित परिलाभों के साथ तत्काल बहाली का निर्देश बेसिक शिक्षा अधिकारी को दिया है।




किसी चूक के लिए 14 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति रद्द करना गलत, हाईकोर्ट ने बर्खास्त करने के आदेश को किया रद्द 

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति में कोई धोखाधड़ी या महत्वपूर्ण तथ्य नहीं छिपाया गया है तो वर्षों बाद नियुक्ति को निरस्त नहीं किया जा सकता। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मां के सरकारी स्कूल में शिक्षिका होने के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के तहत क्लर्क के पद पर कार्यरत कर्मचारी को बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने शिव कुमार की याचिका पर दिया।

हाथरस निवासी शिव कुमार के पिता सहायक अध्यापक थे। उनके निधन के बाद 2001 में शिव कुमार को अनुकंपा के आधार पर जूनियर क्लर्क पद पर नियुक्ति मिली। बाद में सीनियर क्लर्क बने। वहीं, 31 मई 2023 में उनकी सेवा यह कहकर समाप्त कर दी गई कि नियुक्ति के समय यह तथ्य नहीं बताया था कि उनकी मां सरकारी नौकरी में हैं। शिव कुमार ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।

अधिवक्ता ने दलील दी कि नियुक्ति आवेदन के समय कोई निर्धारित फॉर्म नहीं था जिसमें परिवार के सदस्यों की नौकरी की जानकारी देना आवश्यक हो। फिर भी उनकी मां ने हलफनामा देकर बताया था कि वे सरकारी विद्यालय में शिक्षिका हैं। दस्तावेजों की जांच की गई थी। ऐसे में अधिकारियों की किसी भी चूक के लिए याची जिम्मेदार नहीं है। 

कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति से पहले सभी दस्तावेज की जांच की गई है और कोई धोखाधड़ी नहीं पाई गई। ऐसे में 14 साल बाद की गई कार्रवाई न्यायसंगत नहीं है।

देखें कोर्ट ऑर्डर 👇 

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